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सह-सम्मत समीक्षा और अनुसंधान

समाज को अपनी परख के लिये प्रेरित करना और दिशा दिखाना

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

translated by Parveen Rattan


इस भाग का मुख्य लेख

समाज की जांच, परख और समीक्षा के लिये सद्स्यों को प्रेरित करने के तरीके

सबके सहयोग से समीक्षा:

एक समाज सेवक के रूप में आप पर एक बहुत महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है कि समाज के सद्स्य निष्पक्ष भाव से अपने समाज और उसके हालात की जांच करें, उसकी सभी समस्याओं की सूची बनायें, और अलग अलग वर्गों के लिये विभिन्न समस्याओं की प्राथमिकता पर गौर करें.

जब तक निष्पक्ष और एकमत रूप से इन पर गौर नही किया जायेगा, समाज के भिन्न वर्गों के लिये अलग अलग समस्यायें अलग अलग प्राथमिकता लेंगी; और साथ ही इनके साथ कई गलत ओर भ्रांति-पूर्ण धारणायें बनी रहेंगी.

इससे समाज के संगठन में बाधा आयेगी, और गरीबी दूर करने और स्वयं पर निर्भर रहने के कार्यक्रम भी कम प्रभावशाली हो जायेंगे

इसका मतलब हुआ कि एक समाज सेवक की भूमिका में आपको वह तकनीक आने चाहिये जिनसे आप सद्स्यों को मिल कर काम करने के लिये प्रेरित कर सकें, और वह खुद भी समझ सकें कि ऐसा क्यों ज़रूरी है, और साथ ही वह सहयोग से समीक्षा करने की कला सीख सकें.

समाज में अधिकारण उत्पन्न करने के एक अन्य चरण में (योजना की रूप-रेखा बनाना) आपको तय करना होगा कि सब समस्याओं में से प्राथमिकता किसे दी जाय.

इस विषय पर सभी सद्स्यों का एकमत होना ज़रूरी है कि चुनी गयी समस्या का समाधान ही सबसे आवश्यक है

बिना एकता के, और बिना निष्पक्ष समीक्षा के, समाज का एकमत होना बहुत कठिन है.

समीक्षा में अगर सब का सहयोग न हो तो अलग अलग वर्ग अलग अलग विषयों को ज़रूरी ठहरायेंगे.

पढ़े-लिखे लोगों को, अनपढ़ों के बनिस्बत, अलग समयायें नज़र आयेंगी. पुरुष, महिलायों से भिन्न समस्यायें देखेंगे.

ज़मीन्दारों को अलग समस्यायें नज़र आयेंगी और गरीबों को अलग.

युवा वर्ग, अलग प्रांत के लोग, अलग भाषा बोलने वाले, अलग धर्म के लोग, सभी जीवन को अपने अलग नज़रिये से देखते है, उनके अलग विचार होते है, अलग धारणायें होती हैं, इसलिये वह कभी भी स्वाभाविक रूप से विषयों की प्राथमिकता के बारे में एकमत नही हो सकते.

मान-चित्र बनाना:

समाज की जांच शुरु करने के लिये एक अच्छा तरीका है मान चित्र बनाने के लिये समय नियोजित करना. इसके लिये एक अलग दिन निर्धारित कीजिये.

जितने संभव हों उतने सद्स्यों को हाज़िर रहने के लिये कहिये. फिर सबके साथ उस गांव या इलाके की पैदल यात्रा करिये.

सिर्फ़ इलाके का बाहरी चक्कर ही न लगायें, उसमें पूरी तरह से अलग दिशायों से घूमें, जिससे सब लोग पूरी तरह से सब कुछः देख सकें. चलते चलते जो भी नज़र आये, उसकी चर्चा करें और मान चित्र पर उसका निशान बनायें.

एक सहायक के रूप में अगर आप देखें कि चर्चा कम हो रही है, तो आप उन्हें चर्चा जारी रखने में मदद कर सकते हैं. मान चित्र पर, एकमत हो कर, निर्णय लेना कि चर्चा के बाद क्या दिखाया जायेगा उतनी ही महत्वपूर्ण क्रिया है, जितनी कि मान चित्र बनाना.

इस मान चित्र में आप सभी बढ़ी इमारतें, सड़कें, और अन्य स्थापनायें भरेंगे (जैसे शौचालय, पानी के स्त्रोत, खेल के मैदान, धर्म स्थान, कचरे के डब्बे आदि). उन सुविधाओं के बारे में भी उल्लेख करेंगे जिन्हे मरम्मत की ज़रूरत है, या काम नही कर रही हैं.

हरेक ऐसा विषय जो चित्र में हो उसकी चर्चा भी सद्स्यों से होनी चाहिये. इससे बाद में कोई बाधा नही आयेगी और मनुमुटाव भी कम होगा क्यों कि ऐसा करने से इस क्रिया में"पारदर्शिता" आ जायेगी.

इलाके के मुआयने के बाद सब को एक जगह पर मिलना चाहिये (कदापि किसी पास के विद्यालय या किसी सभा-गृह मे) जहां सब मिलकर अपने विचार प्रस्तुत करें और चित्र को पक्का रूप दें. इस तरह की मिलकर चर्चा करनी ज़रूरी है, क्यों कि इससे सबको विश्वास हो जाता है कि जो भी काम होगा वह सबकी सहमति से होगा और हरेक कार्य बिल्कुल साफ तरह से होगा

इस चित्र का उपयोग समीक्षा के अगले चरण में भी हो सकता है,जब आप अपने गांव की विस्तृत सूची बनाने का कार्य करेंगे.

समाज की विस्तृत सूची:

जिस दिन मान चित्र बनाने का काम समाप्त हो, उसके तुरन्त बाद आपको विस्तृत सूची बनानी शुरु करनी चाहिये. ज़रूरी है कि यह काम सबके सहयोग से हो. समाज के सद्स्यों कॊ सूची बनाने के कार्य में भाग लेना चाहिये

समाज सेवक के रूप में ध्यान रहे कहीं आप स्वय ही सूची न बना डालें; इससे उसका मह्त्व ही समाप्त हो जायेगा. इस समय लाभदायक होगा अगर सहायक की भूमिका में आप दुबारा कुछ तकनीकों को लोगों के लिये दोहरायें, खास तौर से विचारों का खुला आदान-प्रदान.

लोगों को कहिये कि वह बिना विवाद किये सब की बात सुनें. सब के विचार एक बोर्ड पर लिखें, फिर उन्हें मिलाकर सामुहिक चर्चा के लिये संभाल कर रखें. सब विचारों को बिना किसी का नाम लिये चर्चा के लिये दें (किसी एक व्यक्ति के योगदान को मह्त्व न दें), अलग और विरोधी विचारों को आने दे (हर एक सुझाव को बोर्ड पर लिखें), और अन्त में फिर ज़ोर दें कि यह सामुहिक प्रयत्न है, किसी एक व्यक्ति या दल के विचार नही.

ध्यान में रहे कि अलग दलों के, अलग वर्गों के लिये समाज में अलग अलग विषय महत्वपूर्ण होंगे. जैसे किसी प्रध्यापक के लिये एक नया विद्यालय सबसे ज़रूरी हो सकता है.

पुरुषों के लिये अच्छी खाद सबसे ज़रूरी हो सकती है, जब कि महिलाओं के लिये पीने का पानी मिलना सबसे ज़रूरी हो सकता है. गांव के लिये ईमाम के लिये शायद एक नयी मस्जिद सबसे ज़रूरी हो, जब कि अन्य लोगों के लिये और बहुत सी अलग ज़रूरतें हो सकती हैं.

इसी कारण के लिये सिर्फ़ कुछ लोगों से सलह-मशवरा करके प्राथमिकतायें तय करना ठीक नही है. सामूहिक तौर पर यह कार्य करने से, जिसमें अधिक से अधिक लोगों का योगदान हो. सारा कार्यक्रम सबको बिल्कुल साफ लगता है, और इससे समाज की ज़रूरतों की समीक्षा भी सही ढंग से होती है

निष्पक्ष्ता लाने के लिये, सुझाव दें कि सूची बनाते समय दोनों की ही सूची बने--साधनों और समस्याऒं की. अगर साफ सुथरे शौचालये समाज के लिये गर्व की बात हैं, तो उन्हे भी लिखिये, सिर्फ़ यह नही कि वह टूटे हुए हैं .

मान चित्र को दीवार पर लगायें और उसका उपयोग करें. पूछें कि चित्र बनाते समय कौन कौन से साधन और कौन सी कमियां देखी गयी थी.

नाम में क्या रखा है?

आपने शायद देखा हो संक्षिप्त में, PRA, या PAR, का उपयोग अक्सर समाज की समीक्षा के संदर्भ में किया जाता है. इन शब्दों के विभिन्न अर्थ और परिभाषायें हैं.

एक समय में एक और तरीका प्रचलित था -- RRA, शीघ्र ग्राम समीक्षा संक्षेप में, यह तरीका तब अपनाया जाता था जब कोई दान देने वाली संस्था किसी विदेशी विषेश्ग्य को समीक्षा के लिये बुलाती थी. वह तब किसी पास के मशहूर और बढ़े होटेल में कुछ दिन रह कर अपनी रिपोर्ट बनाता था जिसके आधार पर संस्था अपनी योजना पक्की करती थी

ज़्यादा से ज़्यादा, कभी कभी वह विषेशग्य अपनी रिपोर्ट लिखने से पहले कुछ समाज के अधिकारियों से सलह-मशवरा कर लेता था . इस क्रिया के यानी "ऊपर से नीचे" दबाव डालने की शैली के विपरीत, यह साफ था (खास तौर से समाज सेवकों के लिये) कि समाज की समीक्षा बेहतर होगी अगर वह सब की सम्मति से बने और इतनी शीघ्रता न करी जाय.

इसके अलावा समाज शास्त्रियों ने भी गौर किया कि अगर सद्स्य शुरु से ही निर्णय लेने की क्रिया में भागीदार हों, तो वह पूरी योजना को अपनी समझ कर उसकी ज़िम्मेदारी लेते हैं, उसकी सफलता में योगदान करते हैं, और बाद में देख-भाल भी भली-भांति करते हैं. अगर पूरे समाज के सहयोग से कोई योजना बने तो उसका महत्व अधिक होता है, बनिस्बत इसके कि कुछ चुने हुए लोगों के ही विचारों पर आधारित हो.

इस तरह एक नया शब्द बना, PRA. यह संक्षिप्त रूप अंग्रेज़ी में उपयुक्त भी था: सहयोगी ग्राम समीक्षाl,या सहयोगी समीक्षा एवं अनुसंधान.

इन दोनो ही रूपों में सहयोगी या मिल कर कार्य करने की क्रिया का महत्व साफ था. कुछ लोगों ने इन विभिन्न अर्थों से अलग होने की कोशिश में एक और शब्द बनाया - PAR.

किन्तु इसके भी अनेक रूप बन गये, जैसे सामूहिक क्रिया और अनुसंधान; पर फिर भी दोनों ही शब्दों में एक चीज़ स्थायी रही, यानी PRA, PAR) दोनों ही में ज़ोर, मिल कर, सहयोग से, सम्मति से कार्य करने पर है. यहां मूल बात यह है कि समीक्षा की क्रिया सबके सहयोग से हो, और इसमें सारे समाज का सहयोग हो, सिर्फ़ कुछ चुने हुए लोगों का नही, क्यों कि इस समीक्षा से पूरे समाज की ज़रूरतों और संभव्ताओं को बाहर आना चाहिये

जानकारी किसके लिये?

कभी कभी आप सुन सकते हैं, खास कर उन अधिकारियों से जो समाज की योजनाओं से परे हैं (जैसे इन्जीनीयर्स, केन्द्र के योजना अधिकारी आदि) कि समाज की ऐसी समीक्षा ज़रूरी नही है. "हमारे पास पहले ही से सारे विभाग की जानकारी उप्लब्ध है, फिर उसे दुबारा एक ग्राम के लिये अलग से क्यों तैय्यार करें ?" उनकी खास दलील होती है.

आपको अपने पक्ष का बचाव करना पड़ेगा, खास तौर से अगर आप किसी एक क्षेत्र की योजना से जुड़े हुए हैं (जैसे पानी की प्राप्ति). संयोजक अक्सर जल्दी में होते हैं कि ठोस नतीजा जल्दी निकले (पानी का स्त्रोत बनाना) और सहयोगी समीक्षा की क्रिया समय लेती है.

मान चित्र और सूची बनाने की क्रिया से जो जानकारी मिलती है, ज़रूरी नही कि वह बिल्कुल वैसी ही हो जो अन्य सूत्रॊं से मिली हो - अलग भी हो सकती है. यह गलत धारणा है कि यह जानकारी मुख्यता: संस्था को अपनी योजना बनाने के लिये ली जाती है.

इस पूरी प्रक्रिया का लक्ष्य है पूरे समाज को इस निर्णय क्रिया में भागीदार बनाना, जिससे वह उन सभी सुविधाओं की ज़िम्मेदारी ले सके जो अभी या भविष्य में प्राप्त होंगी और इसके अलावा यह जानकारी दूसरे सूत्रों से मिली जानकारी को आगे बढाती है (जैसे उच्च तर के सर्वे, जन-समूह सर्वे आदि) जिनसे वर्तमान हालात का सही चित्र मिलता है

एक समाज सेवक की भूमिका में अगर आप यह जानकारी सब तक पंहुचा सकें - जैसे अपनी संस्था, वर्गीय अधिकारी, सरकारी अधिकारी, और वह लोग जो समाज की प्रगति की योजनायें बना रहे हैं -- तो आपका गरीबी दूर करने में और समाज का सामर्थ्य बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा

समाज सद्स्यों का प्रशिक्षण:

समाज के जिन वर्गों में बहुत गरीबी हो या लोग बहुत पिछड़ी हालत में हों, संभव है कि उनमें से बहुत लोगों के लिये भागीदारी से निर्णय़ लेने की क्रिया ही बिल्कुल अपरिचित होगी. और इनमे से बहुतों को पढ़्ना-लिखना नही आता होगा, और वह मान चित्र या सूची बनाने की क्रिया से भी अनजान होंगे

इनमे यह गुण आने से वह किसी भी निर्णय क्रिया में भाग ले सकेंगे और इससे ही उनके वर्ग का सामर्थ्य बढ़ेगा. यहां पर औपचारिक शिक्षन काम नहीं करेगा.

एक सहायक की तरह यह सब बातें आपको समाज के सद्स्यों को कर के ही सिखानी होंगी. इससे भी ज़रूरी है आपका उन्हें हर कार्य में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना क्यों कि इससे उनका उत्साह बढ्ता है और उनमें समाज के लिये योगदान देने की भावना जागती है

ऐसा करते समय याद रखें कि सद्स्य नयी कलायें सीख रहे हैं, और आप अपने काम को ऐसे करें कि हरेक बात सबको बिल्कुल साफ हो. किसी भी तरह की समीक्षा करने के लिये जो निपुणतायें सद्स्यों को चाहिये वह कोई बहुत कठिन नहीं हैं

अक्सर सद्स्य इस क्रिया के लिये तैय्यार होते हैं, और इसके लिये जो निपुणता चाहिये जल्दी ही सीख लेते हैं . आपका कार्य सीखने की इस क्रिया को सुगम करना है.

समीक्षा की इस क्रिया में समाज सद्स्यों के भाग लेने से, समाज के अन्य कार्यक्रमों के लिये भी कई फायदे होते हैं. उनकी समीक्षा के निष्कर्श समाज की प्रगति पर नज़र रखने के लिये भी उपयोग में आते हैं और इनके आधार पर विभिन्न अन्य कार्यक्रमों की भी लगातार जांच होती रहती है

यहां से किधर?

इस लेख में, समीक्षा की क्रिया में समाज के सद्स्यों को शामिल करने के लिये, उन्हें प्रेरित करने के, कई तरीके बताये गये हैं. इस पूरी प्रक्रिया में समाज के सभी सद्स्यों को शामिल करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये, न कि सिर्फ किसी खास दल या व्यक्तियों को

सभी प्रशिक्षण क्रियाओं में, यद्यपि सबका सहयोग प्राप्त करना सबसे बेहतर है, जहां शिक्षक एक सहायक की भूमिका लेता है, फिर भी ध्यान रहे PAR/PRA तकनीक सब जगह, बिना सोचे समझे, नही उपयोग करना चाहिये. उदाहरण के लिये जहां सद्स्यों ने किसी कार्य के लिये खुद ही कुछ खास कुशलतायें पहचानी हों, तब वहां और तरीके उपयुक्त होंगे, जैसे कर के दिखाना,या चर्चा करना आदि

यह सब बातें ध्यान में रखते हुए, फिर भी सद्स्यों को खुद कर के सीखने पर ही ज़ोर देना चाहिये. >देखिये कमल फुयाल का लेख "PRA क्यों," और डोरीन बोय्ड का "PAR से लाभों की सूची."

>इस विषय पर और चर्चा के लिये देखिये रोबेर्ट चेम्बेर्स द्वारा फाइल्स.

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समाज का मान चित्र बनाना:


मान चित्र बनाना

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: ०६.०८.२०११

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