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 रणनीति




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तत्वों की व्याख्या

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

अनुवादक - मितेष टान्क


समुदाय प्रबंधन रणनीति मे से

यह दस्तावेज रणनीति को पूर्ण स्वरूप मे समझाता है, जिसमे इसके बारे मे जानकारी और रणनीति के तत्वों के बीच के संबंधो का वर्णन प्रदान किया गया है। इस चित्र में रणनीति का संक्षिप्त वर्णन दिखाया गया है|

परिचय; रणनीति के तीन प्रमुख हिस्से :

रणनीति के तीन हिस्से इस प्रकार है - (1) सामुदायिक भागीदारी को प्रेरित करना, (2) प्रबंधन प्रशिक्षण, और (3) अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना। इस परिचय में इनकी समीक्षा कि गय़ी है और निम्नलिखित तीन भागों में विस्तार से बताया गया है।

प्रथम तत्व: सामुदायिक भागीदारी :

यह एक मानक या रूढ़िवादी हस्तक्षेप चक्र है, कभी कभी समस्या को हल चक्र कहा जाता है, जन समर्थन जुटाना का चक्र या सामुदायिक विकास का चक्र. सामुदायिक भागीदारी को आमतौर पर एक दम से समुदाय में नहीं होता. इसके लिये प्रशिक्षित कार्यकर्ताऔ का समुदाय में हस्तक्षेप करना आवश्यक है।

आम तौर से प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है : पहले तुम (कार्यकर्ता) काम करने की अनुमति और प्राधिकरण प्राप्त करता है। फिर आप समुदाय में वहाँ की समस्याएं के बारे मे हैं जागरूकता पैदा करते हो।

आप लोगों को बताते हो कि आप समस्याओं का समाधान अकेले नही प्राप्त कर सकते, लेकिन आप यह भी जताते हो कि समुदाय को अपनी समस्याओं को हल करने के लिए जिन संसाधनों की जरूरत है वह समुदाय मे ही उपल्ब्ध है। समाधान के लिये मात्र इच्छा शक्ति या तो फ़िर ज्यादा से ज्यादा कुछ प्रबंधन कौशल की जरूरत होगी जिसमे आप उनकी मदद कर सकते है। आप अपने समुदाय के एकीकरण मे मदद कर सकते है, जिस से समस्याओं के मूल्यांकन और लक्ष्य के प्राथमिकता पर सहमति मे सुविधा होगी। आप एक कार्यकारी समिति सन्गथित करने मे या फ़िर किसी मौजूदा समिति को सजीव करने मे मदद कर सकते है। आप को उन्हें कार्य योजना और परियोजना की रूप-रेखा बनाने में मदद करनी होगि। आप को उन्हे प्रोत्साहित करना होगा, जब आप के बजाय वह लोग इसको कार्यान्वित करते है, जिससे पारदर्शिता और निगरानी सुनिश्चित की जा सके। आपको इस परियोजना की सफ़लता का आनन्द उथाने मे और परिणामों के मूल्यांकन मे मदद करनी होगी।

दूसरा मूल्यांकन मे फिर से सारे कदम वापस उठाने होते है, इसिलिए इसे चक्र कहा जाता है। दूसरी बार वह ज्यादा मजबूत और अधिक आत्मनिर्भर होते है, और शायद आप चक्र के बनाये रखने के लिये जरूरी स्थानीय कार्यकर्ता की पहचान कर चूके होते है, जो आप के बाद इसे सम्भाल सके।

दूसरा तत्व : सामुदायिक प्रबंधन =

यह दो विधियों का समागम है, प्रबंधन प्रशिक्षण और व्यापार संघ के आयोजन। प्रबंधन प्रशिक्षण पहले बडे निगमों में उच्च स्तर के अधिकारियों के लिए, उनके संगठन बनाने और निर्णय की प्रक्रिया को और ज्यादा प्रभावी और लाभप्रद बनाने का एक साधन के रूप में विकसित किया गया था।

यह कोई भी निर्णय करने वाले संगठन को मजबूत बना सकता हैं वैसा माना जाता था। यह समुदाय के लिए सामुदायिक विकास चक्र के साथ संयोजन के रूप में लागू किया जाता है।

यह चार प्रमुख प्रश्न के आसपास कन्द्रित है "हमारे पास क्या है?" "हम क्या चाहते हैं?" "हम कैसे जो चाहते है उसे पाने के लिए जो हमारे पास है उसका उपयोग करते हैं?" और "जब हम करते हैं तो क्या होगा?" संरचित बुद्धिशीलता पर आधारित एक सहायक प्रबंधकों को एक बिना कोइ आलोचना किए, कुशलता और क्षमता में सुधार के लिए जरूरी संरचनात्मक पुनर्गठन से अवगत करवा सकता है।

इसके विपरीत ट्रेड यूनियन का आयोजन, व्यापार संघ के आंदोलन के साथ जोड़ने के लिए मजदूरों को संगठित करने के लिए था। साथ आने से मजदूर अधिक सशक्त हो जाते है और अपने अधिकारों के लिए बेहतर तरीके से लड़ने के लिए सक्षम हो जाते है (जैसे कि बेहतर काम करने की स्थिति, लाभ या भुगतान)। इन दोनो के संयोजन से प्रशिक्षण प्रशिक्षण पद्धति पैदा होती है, जो पुनर्गठन से सशक्तिकरण के लिए जरूरी कौशल हस्तांतरण से कई ज्यादा चिजे करता है।

तिसरा तत्व : सही वातावरण पैदा करना -

प्रत्येक समुदाय एक प्रशासनिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक वातावरण में मौजूद होता है। यह मुख्य रूप से कानून, नियमों, प्रक्रियाओं, व्यवहारों, सूचना और दृष्टिकोण से बना होता है। वातावरण के तीन मुख्य केंद्र-बिंदु इस प्रकार होते है (1) केन्द्रीय सरकार, (2) क्षेत्रीय या जिला प्रशासन, और (3) गैर सरकारी संगठन है. अलग अलग तरीकों से तीनो समुदाय पर अपना प्रभाव छोडते है।

हर एक देश भिन्न होता है और कई बार एक देश मे ही काफ़ि भिन्नता होती है। इसलिए रणनीति हर बार इसको ध्यान मे रख कर ढालनी होती है।

यह रणनीति परिस्थिति को इस तरह से बदलने पर केन्द्रित होती है जिससे कि कम आय वाले समुदायों, गरीबी उन्मूलन, जिस मे स्वयं सहायता के विकासात्मक गतिविधियों, समुदायिक सन्गठनो कि वैधता, कम आय वाले निजी निवेश के लिए ऋण की उपलब्धता और सांप्रदायिक निवेश (मानव बस्तियों सेवाओं और सुविधाओं) भी शामिल होते है के सशक्तिकरण के लिए ज्यादा अनुकुल होता हो।

इसमे यह सारी चिज़े शामिल होती है जैसे कि वकालत, कुशलता और धन का प्रावधान, दिशानिर्देशों तय करना, दस्तावेज बनाना, कौशल प्रशिक्षण, अंतरराष्ट्रीय और आन्तराष्ट्रीय मिलाप और अनुभवों और लक्ष्यों के साझा आदान-प्रदान। यह सारी चिजे कानूनों, नियमों, प्रक्रियाओं, व्यवहारों और दृष्टिकोण में परिवर्तन करने के उद्देश्य से होती है।

रणनीति के अलग अलग स्वरूप :

जिन कारणॊ से रणनीति में भिन्न रूपों की आवश्यकता होती है इधर समझाये गये है

वातावरण कितने हद तक सशक्तिकरण के लिये अनूकुल है :

जहाँ वातावरण सशक्तिकरण और गरीबी कम करने के लिए अनुकूल होता है, हम इस रणनीति मे पहले दो भागों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। जहाँ सरकार ज्यादा पदानुक्रमित और केंद्रीकृत होती है , ज्यादा प्रयास तीसरे भाग में अधिक से अधिक हो जाएगा, यह शायद अन्य सन्स्थान के साथ द्विपक्षीय सहायता, और UNCHS के अन्य उपायों जैसे की शहरी प्रबंधन कार्यक्रम। यह ज्यादातर स्थायी शहरों मे होता है। जहाँ स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों ज्यादा मौजूद ना हो, वहाँ रणनीति ज्यादातर इन सन्गठन के निर्माण, स्वीकृति और अधिवक्ता प्राप्त करने मे केन्द्रित होती है।

समुदाय की भागीदारी का वर्तमान स्तर और की किस्में :

जहाँ सामुदायिक भागीदारी अच्छी तरह से स्वीकॄत और प्रचलित होती है, रणनीति प्रबंधन प्रशिक्षण पर अधिक केन्द्रित होती है(हम यह मान के चलते है कि वातावरण पहले से ही ज्यादा अनुकूल होगा)। जहाँ सामुदायिक भागीदारी अच्छी तरह से स्वीकॄत और प्रचलित नही होता, रणनीति वकालत और ईन विधियों में प्रशिक्षण पर (उदाहरण के लिए, जाम्बिया, बोलीविया और श्रीलंका में CDP के समुदाय की भागीदारी प्रशिक्षण कार्यक्रम) ज्यादा केन्द्रित होती है।

शहरीकरण का स्तर, जातीय भिन्नता और शहरी सुविधाएं :

जहाँ शहरीकरण ज्यादा है, जैसे की एशिया के कई भागों में, सामुदायिक सशक्तीकरण के लिए ईक्ठा करने के चक्र को अपनी परंपरागत ग्रामीण शैली से थोडा बदलना होगा। जहाँ जनसंख्या कम निहित होती है, जिस मे सांप्रदायिक वफादारी (अधिक किरायेदारों, क्षणिक प्रवासियों के छोटे निवास और भाषा मे भिन्नता) कम होती है या जहाँ परिष्कृत शहरी सुविधाओं और सेवाओं धनी इलाकों में मुफ्त होती है, रणनीति वकालत, निवासियों के अधिकार, अपराध निवारण, सर्वसम्मति बनाने और सामाजिक सेवाओं पर अधिक ध्यान देगा और सुविधा निर्माण एवम कृषक समुदाय के लिए समर्थन पर कम ध्यान देगा।

समुदाय के भीतर सहमति और एकता का स्तर :

समुदाय की सहमति और एकता समुदाय की प्राथमिकता के लक्ष्यों को निर्धारित करने के लिए जरूरी है। जहां इसकी कमी है, इसे प्रथम लक्ष्य मान कर निपटना होगा, बाद मे ही ध्येय निर्धारित किये जा सकते है और प्रबंधन प्रशिक्षण आरंभ किया जा सकता हैं। जहां यह पहले से ही मौजूद है इसे समस्या को सुलझाने के लिए चक्र के नींव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

तकनीक और अर्थव्यवस्था का मुख्य विशेषताएं (उदा: मत्स्य पालन, कृषि, औद्योगिक, वाणिज्यिक) :

जब की तकनीक और अर्थव्यवस्था समुदायों की सामाजिक संगठन को प्रभावित करता है (उदा: विभिन्न व्यवस्थाओं और मत्स्य पालन, कृषि, वाणिज्यिक या औद्योगिक समुदायों की तुलना की प्रथा), प्रबंधन प्रशिक्षण इतना लचीला और परिवर्तनीय होना चाहिए, जिससे वह बदलाव के समान संवेदनशील हो। कार्यकर्ता और प्रबंधन प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण मे समुदायों के कार्य प्रकृति का निरीक्षण और विश्लेषण करने की क्षमता भि शामिल होनी चाहिए।

प्रबंधन कौशल और संगठन का स्तर और स्वरूप :

जहाँ प्रबंधन कौशल और सामुदायिक संगठनों पहले से ही मौजूद हैं, प्रबंधन प्रशिक्षण एक साधन-बढ़ प्रभावशीलता बढाने के लिये (क्षमता निर्माण के बदले क्षमता पुनः निर्माण) संगठन के रूप में चार प्रमुख प्रश्नों का उपयोग करने पर अधिक ध्यान देगा। है इसलिए निरीक्षण करना, विश्लेषण करना और उन स्तरों के प्रति संवेदनशील होना , प्रबंधन प्रशिक्षकों की जिम्मेदारी का हिस्सा है और उचित प्रशिक्षण अनुकूलित किया जाना चाहिए।

गैर सरकारी संगठनों की प्रकृति, स्थिति और प्रभाव :

गैर सरकारी संगठनों या तो (अ) स्थानीय या राष्ट्रीय, या (ब) अंतर्राष्ट्रीय हो सकते है। नागरिक और सामुदायिक भागीदारी को बढावा देने के लिये स्थानीय गैर सरकारी संगठन का निर्माण और उन्हे मजबूती प्रदान करने से नागरिकों की भागीदारी बढ़ायी जा सकती है। यदि उन्हे सक्रिय करने और आत्म निर्भरता का अवसर दिया जाए तो वह सरकारी प्रयासों के पूरक साबित हो सकते है। इसलिए रणनीति को इस तरह ढालना होगा कि वह गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियों का अस्तित्व, वैधता, स्वीकृति और प्रभाव का मूल्यांकन कर पाये।

प्रशिक्षण :

रणनीति के तहद सारा प्रशिक्षण (कौशल हस्तांतरण, जागरूकता बढ़ाने के लिए, सूचना प्रसार और पुन: संगठन)

  • अनौपचारिक;
  • अपरंपरागत (पारंपरिक प्रथाओं और मान्यताओं से जो बन्धा ना हो);
  • मांग पर आधारित (प्रतिभागियों की कथित और व्यक्त जरूरत पर आधारित और कभी कभी प्रशिक्षक द्वारा प्रेरित);
  • नौकरी करते समय (जहां प्रशिक्षण विषय के प्रासंगिक कार्रवाई होती है);
  • संदर्भ के उन्मुख (वर्तमान कार्य या फिर चरण के साथ जुडी जरूरतो पर आधारित है);
  • कक्षा से बाहत (जितना हो सके उतना बाहर और कक्षा से दूर);
  • व्यावहारिक (व्याख्यान और प्रस्तुतियाँ के बजाय सहभागिता जिस मे शामिल हो);
  • सुविधाजनक (जहां प्रशिक्षक प्रतिभागियों से ही सारे जवाब निकालता है); और
  • भागीदारी (जहां प्रतिभागियों एक निष्क्रिय श्रोता के रूप में नही बल्कि प्रशिक्षण के मुख्य अभिनेता के रूप में भाग ले)।

लिंग संतुलन :

लिंग संतुलन मात्र महिलाओं के बारे में न हो कर, पुरुषों और महिलाओं के बीच के संबंध, और दोनों के जैविक और सामाजिक लक्षण से प्रभावित न हो कर उनकी पूर्ण भागीदारी के बारे में है। यह केवल मानव अधिकारों के दिखावे के लिए नहीं हो कर, व्यावहारिक वास्तविकताओं पर आधारित है।

अनुभव से पता चलता है कि जब महिलाओं को धन पीढ़ी की गतिविधियों में भाग लेती है, वे अपने साथ कई विशेषताएं लेकर आती है जो मात्र पुरुष के भाग लेने से प्राप्त नही हो सकती। वैसे भी अर्थव्यवस्था ठीक से कार्य नहीं कर सकती अगर पचास प्रतिशत जनसंख्या के बकायदा उससे बहार रखा जाये।

सुशासन भी समान अपवर्जन द्वारा प्रभावित होता है। संस्कृति जीवित है, इसलिए उसे बढना चाहिए और बदलते रहना चाहिए। संस्कृति जिसे मे परिवर्तन नही होते वह मर चुकी होती है।

लिंग संतुलन के लिए जिस सक्रिय और सकारात्मक कार्रवाई की जरूरत होती है, वह दृष्टिकोण हमेशा संस्कृति के विरोध में हो वैसा नही है। वह संस्कृतियों को लचिला और जिवित रख कर ज्यादा बढाने का मौका देते है।

प्रथम भाग - सामुदायिक भागीदारी :

समुदाय के सारे सदस्यो की भागिदारी(जैविक या सामाजिक विशेषताओं से परे) गरीबी में कमी और समुदाय को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है। इधर "भागीदारी" का मतलब सारे समुदाय(केवल कुछ गुटों का ना हो कर पूरे समुदाय) का नियंत्रण और निर्णय लेने में भाग लेना होता है।

मुख्य किए जाने वाले निर्णयों और नियंत्रण का प्रयोग करने मे यह सारे शामिल होते है : स्थितियों का मूल्याकन (जरूरतों और क्षमता); प्राथमिक समस्याओं निर्धारित करना (और लक्ष्य तय करना); इस के लिये जाने वाले कदम तय करना (समुदाय कार्रवाई की योजना, परियोजना की रूप-रेखा): उन्हें लागू करना और निगरानी करना, और उनके परिणाम का मूल्यांकन करना। समुदाय ही पूरी तरह इसकी जिम्मेदारी लेता है (बाह्र कि किसी सन्स्था पर निर्भर ना होकर)।

संसाधनों का योगदान (जैसे की योगदान, श्रमदान, श्रोत), वार्तालाप और बाहरी सन्गठन से परामर्श को प्रोत्साहित किया जाता है। भले ही इस रणनीति मे "भागीदारी" की अहमियत "योगदान" या "परामर्श से कई गुना ज्यादा है।

सामुदायिक भागीदारी को बढावा देना :

इस सन्साधन जुटाने का चक्र, समस्या हल करने का चक्र, या सामुदायिक विकास चक्र :

  • एक तार्किक और प्रगतिशील क्रम में हस्तक्षेप की एक श्रृंखला है ;
  • यह वैध, अधिकृत और मान्यता प्राप्त कार्यकर्ता (या कार्यकर्ताऔ) द्वारा किया जाता है ;
  • वह लोग समुदाय के पसन्द की कार्रवाई को आखरी पडाव ना मान कर समुदाय को मजबूत बनाने का एक साधन के रूप मे इस्तमाल करते है;
  • इसके लिये कार्यकर्ता को समुदाय विशेषताओं से अवगत होना चाहिये और उनके प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है ;
  • यह या तो मंत्रालय या विभाग या जिला स्तर या सेंट्रल या किसी गैर सरकारी संगठन द्वारा कार्यान्वित की जा सकती है;
  • पहले से शायद यह निचले तबके से शुरु ना होता हो, लेकिन इस प्रक्रिया का लक्ष्य उन्ही लोगो को मजबूती प्रदान करना है;
  • यह पूरे समुदाय को प्रभावित करने वाले विषयो पर नियंत्रण और फैसला करने मे पूरे समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा देता है (जिसमे प्रोत्साहित करना, आवश्यक कौशल्य के लिये प्रशिक्षित करना और समर्थन करना शामिल होता है) ;

इस चक्र में मुख्य कदम :

  • एक दूसरे से तर्कसंगत तरीके से जुड़े रहे हैं और चक्र के साथ भी उसी तरह से जुडे है ;
  • इन सारे तत्वो की आवश्यक है क्योकि किसी भी एक के अभाव से प्रक्रिया के प्रभाव को कमजोर कर देगा ;
  • निम्नलिखित क्रम में कदम शुरू किये जाते है, लेकिन कई जगहो पर एक कदम खतम होने से पहले ही दूसरा शुरू हो जाता है या तो दूसरे कदम के साथ पहले कदम का कार्य भी चालू होता है ;

अधिकारियों को समस्या से अवगत करवाना और अनुमति प्राप्त करना :

समुदाय के कार्यकर्ताऔ को प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त करनी चाहिए और कानूनी दर्जा प्राप्त करना चाहिए जिससे विद्रोहात्मक आंदोलनकारियों के रूप में उन्हे परेशान न किया जाए। कई बार पुलिस और कानून और व्यवस्था बनाए रखने वाले सन्स्था ऎसा कर सकते है।

इसके अलावा, इन्ही अधिकारियों को "प्रावधान" दृष्टिकोण बनाए रखने से सबसे ज्यादा फ़ायदा होता है और उन्हे ही सशक्तिकरण का डर होता है। अधिकारियों, नेताओं, पारंपरिक और नए नेता, और तकनीकी विशेषज्ञों को "प्रावधान" दृष्टिकोण से तत्काल लाभ दिखता है क्योकि इसी से उनकी लोकप्रियता, मत, पदोन्नति और तरक्की होती है।

संवेदीकरण सिर्फ एक औपचारिकता है, लेकिन उसे अच्छी तरह से सुनियोजित करके और अमल मे लाना चाहिए।

जागरूकता समुदाय के सदस्यों के बीच जागरूकता पैदा करना :

समुदाय को सुनियोजित योजनाए का अमल करने के लिये प्रोत्साहित करने से पहले (जिससे वह ज्यादा सिख कर और ताकतवर बन सके), कार्यकर्ता को समुदाय को विशेष वास्तविकताओं से परिचित करना होगा, जिनमे यह सारे शामिल होन्गे :

  • यदि वह निष्क्रिय रहते है और सरकार या अन्य बाहरी मदद की अपेक्षा करते है, तो वह तभी भी गरीबी और कमजोरी के बोझ के साथ ही रहेन्गे।
  • कोई समुदाय पूरी तरह से गरीब नही होता, अगर जीवित मनुष्य वहाँ रहते है, तो उधर संसाधनों और क्षमता की कमी नही होती जैसे की श्रम, रचनात्मकता, जीवन, इच्छाओं और जिवन शैली की विशेषताओं ;
  • अगर समुदाय ही खुद की मदद कर रहा है तो और लोग उसी प्रक्रिया मे जुडेन्गे और ज्यादा मदद करते है।
  • कार्यकर्ता या उसकी सन्स्था या विभाग, अपने साथ संसाधन (धन, पाटन सामग्री, पाइप) नही लेकर आते है लेकिन वह इस प्रक्रिया मे लोगो को प्रोत्साहित करने और प्रबन्धन प्रशिक्षण मे मदद प्रदान करते है।

इस चरण के दौरान, यह ज्यादा उम्मीदें जगाने से बचने के लिए यह महत्वपूर्ण है की अपरिहार्य मान्यताओं और सहायता की अफवाहों को ठीक तरीके से सम्भाला जाए।

स्थिति का विश्लेषण और भागीदारी का आकलन :

हालांकि कार्यकर्ता पहले से ही समुदाय के संसाधन, क्षमता, अवरोधो और आवश्यकताओं का आकलन किया होता है, लेकिन सन्साधन जुटाने के चक्र की रणनीति के हिसाब से एक बार फिर से पूरे समुदाय के साथ आकलन करना आवश्यक है। यह सब एक ही बार में करना जरूरी नही है और बाद मे जब कोई समुदाय की कार्यपालिका सन्गठित हो जाये तब भी कर सकते है।

भविष्य की सारी योजनाओं और हस्तक्षेप की कार्रवाई वास्तविकता के आधार पर होनी चाहिए, न कि समुदाय के भीतर के किसी विशिष्ट घटकों के विशेष हितों को ध्यान मे लेकर। जरूरते और क्षमता को समुदाय के सभी वर्गो से मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।

एकता का आयोजन; सर्वसम्मति बनाना :

कोई समुदाय एकीकृत नहीं होती है, सभी जगहो पर कई गुट होते है और हर गुट का प्रभाव भिन्न होता है।

जब ज्यादा सामाजिक असमानता है, तब समुदाय की प्राथमिकता तय करने मे ज्यादा दिक्कत आती है और उसी तरह प्राथमिक लक्ष्य तय करना भी मुश्किल हो जाता है। एकता का आयोजन समुदाय के सन्साधन जुटाने के लिये बेहद जरूरी है और पूरे चक्र मे इसे प्राप्त करने या बढाने के लिये कार्य करते रहना जरूरी है।

प्राथमिकताओं, समस्याओं और लक्ष्यों तय करना :

जब समुदाय पर्याप्त तरह से एकीकृत है और जब सभी गुटों मे, महिलाओं और विकलांग और अन्य व्यक्तियों जिनको समुदाय के फैसले में पूर्ण भागीदारी का आनंद नही होता था, उन्हे भी शामिल किया जाता हैं, तब आप समझ सकते हो कि समुदाय की गतिविधियो मे बढोतरी का समय आ गया है। यह प्राथमिक समस्या के लिये आम सहमति प्राप्त करने के द्वारा किया जाता है और इससे ही प्राथमिक ध्येय तय करने मे मदद मिलेगी। इन बातो पर मन्थन करना इधर इस्तमाल करने लायक है।

समुदाय की कार्य योजना बनाना :

समुदाय को अगली अवधि जो एक या पाँच वर्षों (आमतौर पर जिला की योजनाऔ की अवधि जितना) की होती है, उसमे क्या प्राप्त करना है, वह तय करना होगा। इसमे एक या कई सामुदायिक परियोजनाओं शामिल हो सकती है।

CIC या कार्यकारी समिति का आयोजन करना :

क्योंकि एक परियोजना की रूप-रेखा सैकड़ों लोगों की किसी एक सार्वजनिक बैठक मे तय नही कि जा सकती, एक कार्यकारी समिति बनाना जरूरी हो जाता है (जैसे की परियोजना समिति, विकास समिति, CIC या समुदाय क्रियान्वयन समिति) है। अगर मतदान करवाने से गुट्टबाज़ी और मत-भेद होते है तो आम सहमति से समिति के लोग चुने जाने चाहिए, यहाँ कार्यकर्ता को सामुदायिक मूल्यों और प्रथाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

कार्यकर्ता को अब समिति को भागीदारी प्रबंधन और नेतृत्व में समिति को प्रशिक्षित करना होगा। इससे प्रक्रिया समुदाय के लिये पारदर्शक रहेगी। समिति को परियोजना की समीक्षा करनी चाहिए, जहा जरूरत हो उधर विवरण जोडना चाहिए, और इस तरह परियोजना की रूप-रेखा तैयार करनी होगी। इसमे कार्यकर्ता को ऎसे तरीको को प्रोत्साहित करना चाहिए जो भागीदारी से चिजे तय करता हो।

इधर समुदाय प्रबंधन की रणनीति मे ज्यादा गौर देने होगा (दूसरे भाग मे) और उसे सन्साधन के जमावडे के चक्र के साथ एकीकृत करना होगा।

कार्यान्वयन और निगरानी :

इस समय, समुदाय और उसके नेताओं और पत्रकारों को कार्यों और परिणामों मे अधिक दिलचस्पी होगी (जैसे की शौचालय का निर्माण, जल आपूर्ति, या क्लिनिक या स्कूल की इमारत बनाना) और उन्हे याद दिलाना होगा की निगरानी और रिपोर्टिंग कार्रवाई के साथ साथ होनी चाहिए। यहां समुदाय उत्साह या तो गिर सकता हे या कइ किस्सो मे तो खतम भी हो सकता है। वह भी अगर कार्रवाई (विशेषकर वित्तिय तरीके से ) पारदर्शी न हो और समुदाय के सभी सदस्यों को साफ तरीके से पता न हो।

हालांकि समुदाय का लक्ष्य को सुविधा प्राप्त करना है, लेकिन रणनीति और कार्यकर्ता का लक्ष्य समुदाय शक्ति और क्षमता बढाना है। इसलिए निगरानी और रिपोर्टिंग (मौखिक और लिखित) पर ज्यादा गौर किया जाता है।

इसी पडाव पर समुदाय को कार्रवाई के सम्बन्धित कौशल के लिये जो प्रशिक्षण जरूरी होता है, उससे अवगत होते है और इधर फ़िर से रणनिती के दूसरे भाग को सन्साधन जुटाने के चक्र के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।

प्रभाव का आकलन एवं मूल्यांकन :

जहां निगरानी और रिपोर्टिंग का उद्देश्य कार्रवाई के पालन पर नजर रखना है जिससे छोटे फ़ेर-बद्ल करके गाडी को पतरी पर रखा जा सके। उसके साथ मे ही गहन आकलन एवं मूल्यांकन करना जरूरी है।

इसमे कार्रवाई के प्रभाव का आकलन, और कार्रवाई किस प्रकार से कि गयी थी, किस तरीके से की जानी चाहिए और इसके बदले क्या सुनियोजन किया जा सकता था उसपे ध्यान देना होगा। इससे यह चक्र चलाने का एक और मौका मिल जायेगा, जिससे प्रारंभिक स्थिति का विश्लेषण और समुदाय के मूल्यांकन करने मे मदद मिलती है।

चक्र दोबारा चलाना :

यह मात्र एक बार की जानेवाली कार्रवाई नहीं होकर. सामाजिक परिवर्तन की एक प्रक्रिया (विकास) है और निरंतर इसे चलते रहने देना चाहिए।

भले ही सामुदायिक सशक्तिकरण एक नये उच्च स्तर पर आ गया होगा लेकिन इसे फ़िर से चालू करना होगा। इसके अलावा कार्यकर्ता को एक ऎसे व्यक्ति को प्रशिक्षित करना होगा, जो उसके चले जाने के बाद इस कार्य को आगे बढा सके। सारे कार्यकर्ताऔ को मिलकर ऎसे लोगो की पहचान करनी होगी जो समुदाय को सशक्त करने के बजाय अपने फ़ायदे के लिये इन तकनीको का इस्तमाल न करे। यही लोग कार्यकर्ता की सन्स्था या मन्त्रालय के चले जाने के बाद इन गतिविधिऔ चालू रख सके।

सन्साधन जुटाने के चक्र का प्रत्येक चरण उससे पहले और बाद मे आनेवाले चरण से संबंधित होता है। सारे चरणो का एक तार्किक और कार्यात्मक क्रम होता है। जब कभी चक्र दोहराया जाता है, हर बार यह पिछले चक्र के दौरान किये गये मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है और अभी तक जो अनुकूल परिणाम प्राप्त होते है उससे इसे फ़ायदा होता है।

अन्य क्षमताऔ के विकास के लिये किया गया हस्तक्षेप :

निम्नलिखित हस्तक्षेप भी सन्साधन जुटाने की रणनीति का हिस्सा होते है, पर चक्र के विभिन्न भागो मे बटे होते है। अगर कार्यकर्ता ज्ञानी है और समुदाय में बदलती परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील है तो वह इनको निर्धारित कर सकता है।

  • स्थानीय संगठनों वर्तमान का मूल्यांकन और विश्लेषण (बुजुगो या अन्यो के लिये परिषदों, महिला समूहों, ऋण के समूहों, जन आंदोलनों, निष्क्रिय या अन्य संवेदनशील समूहों जैसे विशेष रुचि समूहों के संघों), चक्र से पहले, दौरान और प्रत्येक चक्र के बाद ;
  • स्थानीय संगठनों को बढ़ावा देना जिससे स्त्रि पुरुष की भागीदारी समान प्रतिनिधित्व हो, सामुदायिक संगठनों की कानूनी स्थिति में सहायता और सामुदायिक मामलों में भागीदारी सुनिश्चित करना ;
  • विभिन्न संगठनों के बीच मदद और कार्यात्मक संबंध कायम करना, जिससे स्थानीय संसाधनों (मानव पूंजी, आपूर्ति, भूमि) का मिल बाट कर उपयोग करने के अवसरों को बढ़ावा मिलेगा ;
  • प्रशिक्षण, ऋण और विपणन पर बल डाल कर आय और रोजगार के अवसर पैदा करना ;
  • निपटान आश्रय और बुनियादी सुविधाओं का उन्नयन ;
  • पर्यावरण के सम्बन्धित गतिविधियों (जैसे जो प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा आधारित कचरा प्रबंधन प्रणाली), और
  • भागीदारी द्वारा आपदा निवारण एवं प्रबंधन (शरणार्थी शिविर, पुनर्वास)

सन्साधन जुटाने का लक्ष्य हर समुदाय के लिये भिन्न हो सकता हैं। लेकिन सब मे थोडी समानताए होती है जिसमे यह शामिल सारी चिजे शामिल होती है : गरीबी उन्मूलन, सुशासन, सामाजिक संगठन मे विकास के लिये बदलाव, समुदाय के क्षमता निर्माण, कम आय और सीमांत लोगों को अधिकार दिलाना और लिंग संतुलन।

दूसरा भाग : सामुदायिक प्रबंधन :

"समुदाय प्रबंधन प्रशिक्षण" की मुख्य विशेषता यह है की प्रशिक्षण के रूढ़िवादी से कही बढकर है, उद्देश्य अच्छी तरह से निर्धारित है, (प्रशिक्षुओं, जागरूकता बढ़ाने, जानकारी का स्थानांतरण करने के लिए कौशल का स्थानांतरण, और प्रोत्साहन) और सबसे महत्वपूर्ण बात है की यह संगठन को मजबूत बनाने काम मे आता है।

जहाँ कोई संगठन अस्तित्व में नहीं रहा हो, समुदाय द्वारा वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए यह नई संरचनाओं को तैयार करता है। जहां कुछ संगठन पहले से ही अस्तित्व मे है, समुदाय द्वारा चुने और उत्पन्न किये गये उद्देश्य प्राप्त करने के लिये यह पुन: संरचना करके उसकी प्रभावशीलता मे वृद्धि लाता है।

यह आयोजन इन चार केन्द्रिय प्रबंधन सवालों पर बनाया गया है। (हम क्या चाहते हैं? हमारे पास क्या है? हम क्या चाहते है वह पाने के लिए अपने सन्साधनो का बेहतरीन उपयोग कैसे कर सकते हैं? और क्या जब हम ऎसा करेन्गे तो क्या होगा?)

समुदायिक प्रबंधन का प्रशिक्षण :

समुदायों को मजबूत बनाने के लिए प्रबंधन प्रशिक्षण को सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने और सन्साधन जुटाने के चक्र के साथ एकीकृत किया गया है। इस प्रशिक्षण आयोजन और कौशल को बाटने के लिये किया गया है।

समुदाय और उसकी कार्यकारी को निर्णय लेने के लिये आयोजित करना :

कार्यकारिणी का गठन समुदाय के सभी सदस्यों की एक बैठक में किया जाना चाहिए। ऎसे मे कार्यकर्ता को हर भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति की विशेषताओं बतानी होगी। खासकर कोषाध्यक्ष जिसमे विश्वसनीयता शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण होगा।

जब कार्यकारी गठित हो जाती है, तो कार्यकर्ता भागीदारी मे योजना बनाने मे, नेतृत्व और प्रबंधन तकनीकों में कार्यपालिका के प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था तैयार कर देता है। इसमे पारदर्शिता पर जोर दिया जाता है, ताकि पूरा समुदाय कार्यपालिका के प्रमुख निर्णयों में भाग ले, और सारी जानकारी उन्हे उपलब्ध हो, विशेष रूप से वित्तीय जानकारी। तकनीकी बुद्धिशीलता का प्रशिक्षण भी इधर आयोजित किया जा सकता है।

प्रबंधन प्रशिक्षण के चार मुख्य प्रश्न :

ऐसे आयोजन के दो प्रकार होते हैं (1) निर्णय करने के लिए आयोजित, और (2) प्रभावी कार्रवाई के लिए आयोजित

उपरोक्त चिजो का उद्देश्य निर्णय लेने के लिये किये गये आयोजन का है, जिसमे पूरे समुदाय के फैसले को शामिल करना होगा। यह निवेश प्रभावी कार्रवाई के लिए आयोजित किया गया है और इधर उसे निर्धारित किया गया है (जैसे कि भूमिकाओं, समय, मात्रा, कार्यों, सुनियोजित योजनाऔ मे जिम्मेदारियों तय करना)।

आयोजन इन चार प्रमुख प्रबंधन के सवालों पर केंद्रित है।इनका इस्तेमाल मात्र योजना के उद्देश्यों तय मे नही किया जाता, लेकिन उसका उपयोग समुदाय की रणनीतियों गठित करने मे, और श्रम के संगठनात्मक विभाजन करने मे भी इस्तमाल किया जाता है। यह कार्रवाई के लिए आयोजित किया गया है।

परियोजना के रूप-रेखा और कार्यवाई के लिये संगठित करना :

इस परियोजना की रूप-रेखापूरी पर कार्यपालिका को पूर्ण तरीके से सोचना होगा, फिर उसे पूरे समुदाय के सामने कोई आवश्यक संशोधनों और अनुमोदन के लिए प्रस्तुत करना होगा लिए कोई आवश्यक संशोधनों और अनुमोदन के लिए प्रस्तुत करना होगा। इसमे निम्नलिखित भी शामिल होते है :

  • प्राथमिक समस्या की पहचान करना ;
  • अपने लक्ष्य को पहचानें (पहचाने गयी समस्या का सामान्य हल तय करना) ;
  • विशिष्ट उद्देश्यों को पहचानें (लक्ष्य पर आधारित उद्देश्यों SMART औसती, यथार्थवादी, जो प्राप्त किये जा सके , विशिष्ट और समय बाध्य होते है)। वह सारे उद्देश्यो का निरीक्षण हो सके वैसे होने चाहिये, परिमित होने चाहिए और उसे प्राप्त करने की तारीख तय होनी चाहिये ;
  • वास्तविक और संभावित संसाधनों पहचानें (समुदाय के भीतर से और बाह्य) ;
  • संभावित बाधाओं और उन पर काबू पाने के संभव तरीके पहचाने ;
  • कई रणनीतियों तैयार करे और उन में से सर्वश्रेष्ठ चुने ;
  • परियोजना के सभी चरणों मे निगरानी कैसे होगी वह तय किया जाना चाहिये और किन पक्षों द्वारा होगा वह भी तय किया जाना चाहिये।

सामुदायिक परियोजना की रूप-रेखा के परिशिष्ट :

थोडे परिशिष्ट जो जोडे जा सके वह इस प्रकार है :

  • बजट ( राजस्व के सभी स्रोतों का संकेत और गैर मौद्रिक दान एवम व्यय का उल्लेख) ;
  • समय अनुसूची या पट्टी चार्ट ;
  • कोइ अन्य विवरण जो सूचीबद्ध तर्क के ऊपर का जोडा जा सके ;
  • सारी जरूरी सूचीया (कार्यकारिणी के सदस्यों, भूमिकाओं, उपस्थिति और दूसरी सूचीया)।

परियोजना की रूप-रेखा तय होनी चाहिये, जिसकी प्रतियां कार्यपालिका, सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए और या जिला नियोजक क्षेत्रीय और परिषदों के लिये बनायी जानी चाहिए। इस परियोजना की रूप-रेखा का प्रारूप एक प्रस्ताव की तरह इस्तमाल किया जाना चाहिये, जो संभावित दाता सन्सथानो को दी जा सकती है। कार्यकर्ता को खुद परियोजना की रूप-रेखा न बनाते हुए समुदाय के कार्यकारी को लेखन मे प्रोत्साहित और मदद करनी चाहिये।

कौशल्य प्रशिक्षण :

जैसे जैसे परियोजना की योजना बनाई जा रही होती है, कार्यपालिका प्रबंधन और प्रशासनिक कौशल की कमी से अवगत होगी (जैसे की प्रबंधन, वित्तिय, ऋण और या शिल्प या तकनीकी कौशल)। अगर कार्यपालिका की नजर से कुछ छूट रहा हो तो, इसमे कार्यकर्ता अपने सुझाव दे सकता है।

इसके लिये आयोजित कोई भी प्रशिक्षण उपरोक्त संकेतो से बन्धा होना चाहिए (प्रशिक्षण की व्यवस्था सुविधाजनक, अनौपचारिक और नौकरी के साथ साथ होनी चाहिये)। इस तरह के सारे प्रशिक्षण समुदाय मे कार्रवाइ के चरण या समुदाय परियोजना या सन्साधन जुटाना के चक्र के कदम से संबंधित होने चाहिए।.

निगरानी और रिपोर्टिंग :

यह रणनीति बताती है कि निगरानी समुदाय की कार्रवाई की सफ़लता मे अति महत्वपूर्ण है।

निगरानी केसे की जाती है वह समुदय के सारे लोगो को सिखाया जाता है और मौखिक एवम लिखित तरह से निगरानी करने का प्रशिक्षण इसमें शामिल किए जाते है। निगरानी से प्राप्त सूचना के संप्रेषण करने के लिये धाचा तैयार किया जाना चाहिये जिससे कार्यपालिका और समुदाय इस परियोजना के कार्यान्वयन को पतरी पर रखने के लिये उचित और जरूरी कदम उठा सके।

प्रबंधन के बारे मे सूचना और सूचना का प्रबंधन :

कार्यपालिका और समुदाय को यह समझाना होगा की इस परियोजना के लिए आवश्यक जानकारी को ठीक तरीके से सम्भाल कर रखना होगा। (जैसे की एकत्र और संग्रहीत कर के विश्लेषण मे प्रयोग किया जाना चाहिए)। आम तौर से प्रबंधन से जुडी हुई जानकारी की जरूरत होती है (वित्तीय प्रवाह ,कार्यों के परिणाम)। ऐसे संचार प्रणाली की स्थापना करना प्रबंधन प्रशिक्षण मे शामिल होना चाहिये।

स्त्रि पुरुष समानता के सम्बन्धित प्रशिक्षण :

यह प्रशिक्षण राजनैतिक तरह से सही होने के बजाय (और कैसे अगर कोई समानता होती तो कितना अच्छा होता), लेकिन यह दर्शाता है कि संतुलित योजना और स्त्रि पुरुष समानता से इस संदर्भ में कैसे अधिक कुशल विकास प्राप्त किया जा सकता है और मौजूदा सांस्कृतिक प्रथाओं और दृष्टिकोण को विकसित किया जा सकत है।

संघर्ष निवारण और अच्छा समूह तैयार किया जाना :

जब भी कार्रवाई और सामाजिक बदलाव होता है, वहाँ विचारों के मतभेद पैदा होते है और निहित स्वार्थों, वैकल्पिक रणनीतियों, व्यक्तित्व के बीच मे संघर्ष और संरचनात्मक दरारे पैदा होती है। अच्छा समूह तैयार करने से इन प्रतिक्रिया के नकारात्मक प्रभावों को कम से कम करने की कोशिश कि जाती है (सकारात्मक ऊर्जा गतिशीलता को बिना खोये)। अगली चाल पर सहमत होने के साथ यह समुदाय के उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरफ़ अग्रसर होते है।

संपर्क बनाना (ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज) :

सशक्तिकरण के लिये कैसे काम करने की जानकारी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी उस बात की जानकारी की किन लोगो से काम से अपना काम निकलवाया जा सकता है। देखिये समुदाय की शक्ति के तत्व यह रणनीति समुदायों के सशक्तिकरण में आवश्यक संबंधों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए सम्मेलनों की व्यवस्था करके सहायक के रूप में कार्य करती है।

भागीदारी :

सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठनों, CBOs और समुदायों के बीच भागीदारी को विकसित करना :

जहाँ कम आय वाले समुदायों और जिला एवम केन्द्रिय सरकारों के बीच रिश्तों मे काफी असमानता होती है (अधिकारियों द्वारा वित्त और सूचना को अपने तक ही रख कर), वहाँ रणनीति अधिक से अधिक समानता और अधिक संतुलित संबंध बना क्र मजबूत साझेदारी बनाने मे मदद करती है। इसे और विस्तरित करके रणनीति प्रक्रिया के अन्य कलाकारों जैसे की CBOs, गैर सरकारी संगठनों और निजी या वाणिज्य के क्षेत्र के सन्सथान के साथ भी ऎसी मजबूत साझेदारी बनाने का प्रयास करते है।

संसाधन अधिग्रहण और कोष की स्थापना :

समुदायों के पास राजस्व के कई विभिन्न स्रोतों होते है, जिन को विकास और आत्म प्रबंधन में निवेश कर सकते है। देखिए "संसाधन अधिग्रहण."

इन मे कर से होने वाली आय शामिल है (जहाँ कानूनी तौर से यह जायज है), लेकिन इससे निधि सीमित नहीं होती। समुदाय के सदस्यों से या बाहर के दाताओं से, पैसे इक्ठा करने के अभियान से, आवंटित कोष के लिए, पैरवी और उपयोगकर्ता शुल्क से और सेवाओं या सुविधाओं के लिए सपाट दर के कर से भी आय होती है। यह रणनीति इन विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और इसके सम्बन्धित प्रशिक्षण और कौशल और संसाधनों के अधिग्रहण की तकनीक में दिशा निर्देशों प्रदान करने का प्रयास करता है।

नेतृत्व प्रशिक्षण; अच्छा समूह तैयार किया जाना ;

अगर मजबूत बनाने की प्रक्रिया को स्थाई स्वरूप देना हो तो नेतृत्व, सहमति और एकता बनाने में कौशल की ज़रूरत होती है। समुदाय के नेताओं (समुदाय कार्यपालिका के साथ) को प्रोत्साहन देना और उनका प्रशिक्षण करना रणनीति का एक हिस्सा है।

लघु उद्यम संरचना और सुदृढ़ीकरण :

इस रणनीति मे निम्नलिखित तरीको से गरीबी में कमी लाना शामिल हैं (1) सांप्रदायिक सुविधाओं और सेवाओं के स्वयं सहायता निर्माण से समुदाय को मजबूत बनाना (2) सन्साधन जुटाने की तकनीकों का प्रयोग करके व्यावहारिक सूक्ष्म उद्यमों का निर्माण करके। यह उद्यम कम आमदनी महिलाओं पर कन्द्रित होते है और इसमे प्रशिक्षण सहित, व्यवस्थित करने और जहाँ उपयुक्त हो वहाँ कुछ ऋण समर्थन भी शामिल होता है।

देखें "लघु उद्यम योजना,"  "धन पैदा करने के तरीको पर किताब," और "आय सृजन के तरीके," अधिक जानकारी के लिए|

लघु उद्यम के लिए सहायता :

नए उद्यमों के निर्माण को प्रोत्साहित करना और मौजूदा उद्यमों को बढ़ावा देना :

लघु उद्यम के लिये रणनीति इस प्रकार होती है : सरल और छोटी। ग्रामीण बैंक का अगर उदाहरण लेते है तो ऋण $ 20 से $ 200 तक होता है। यह सहकारी सन्गठन और छोटे व्यवसायों कि $ 30000 या अधिक के ऋण की जरूरत को पूरा करने के लिये नही बनाये गये। य़ह प्रयास कम आय वाले महिलाओं के प्रशिक्षण और सहायता के लिये बनाये जाते है। अगर वह लोग $ 100 के ऋण लेकर नुकसान करते है तो, उन्हे प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त करने के बाद ही ज्यादा ऋण लेना चाहिए।

ऋण :

बचत को प्रोत्साहन करनेवाली ऋण सम्बन्धित सन्सथा का निर्माण करना चाहिए और बढावा देना चाहिए।

ऋण की सन्सथा जो पैसा समाज मे उधार पर देता है, अफ्रीका, एशिया और दुनिया के अन्य भागों में परंपरागत हैं। इन समूहों की रणनीति तहद सारी बचत के पैसे को एकत्र करके क्रेडिट यूनियनों और वाणिज्यिक बैंकों के साथ जोड़ चाहिए। उन संस्थाओं से ऋण प्राप्त करके, सदस्यों के लिए छोटे ऋण में तबदील करके, सूक्ष्म उद्यम में शामिल हो सकते है।

आश्रय :

आश्रय और समुदाय के बुनियादी ढांचे का निर्माण और विकास, निजी ठेकेदारों, विशेषकर महिलाओं और कमजोर वर्गों, के प्रशिक्षण, विकास और उन्नयन पर बल देना चाहिए।

सामुदायिक सुविधाओं के निर्माण में कुशल श्रमिकों की जरूरत को ध्यान मे रखकर, प्रशिक्षण उन महिला और समुदाय के विकलांग लोगों पर केन्द्रित होगा जो इस तकनीकी कौशल का प्रयोग निजी आय प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं।

तकनीकी और व्यावसायिक कौशल मे बेहतरी :

कारीगर कौशल में महिलाओं का प्रशिक्षण (जैसे की बढ़ईगीरी, चिनाई, निर्माण) जिसमे परंपरागत तौर से पुरुषो का दबदबा हो, उसी रणनीति के तहद है कि महिलाओं उस कार्य मे साथ जुड़े जिससे उनकी कार्यस्थल में लिंग बाधा तोड़ने मे मदद हो।

समूह का विकास करना और बढ़ाना :

मौजूदा समूह (जैसे की पारंपरिक क्रेडिट रोटेशन) को ऋण प्राप्त करने मे, ऋण के प्रबंधन मे, बचत, प्रबंधन और वित्तीय प्रशिक्षण चालू करके बढ़ावा देना चाहिए, जिससे आगे जाकर यह लाभदायक उद्यम बन सके।

यह रणनीति कम आय वाली महिलाओं (और पुरुषों में) पर केन्द्रित है, और उन लोगो के लिये नही है जो पहले से ही ऋण प्राप्त कर सकते है। परंपरागत संस्थाओं का उपयोग करके यह उन्हे गरीबी उन्मूलन के एक साधन के तौर पर ढालता है।

प्रबंधन प्रशिक्षण के उपकरण :

प्रबंधन प्रशिक्षण कौशल में सुधार लाने के लिये निम्नलिखित मे से थोडे तरिको का उपयोग किया जा सकता है

सम्मेलन :

जागरूकता बढाने के लिये किये गये सम्मेलन और जानकारी के आदान प्रदान के लिये आयोजित सम्मेलन, दोनो की रणनीति मे अहम भूमिका होती है।

सेमिनार में प्रस्तुतियों अधिक तकनीकी चिजो पर गौर करती हैं, जबकि सम्मेलन मे नीतिया ढालने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। लेकिन दोनो ऎसे मंच है जिन पर अनुभवों को साझा आदान प्रदान होता है और सशक्तीकरण प्रक्रिया में उपयोगी हो ऎसे नए विचारो और अवधारणाओं का विकास किया जा सकता है।

कौशल प्रशिक्षण कार्यशाला :

कार्यशाला एक ऎसा स्थान या घटना है जिसमे काम करने के लिए लिये लोग एकत्रित होते है, न कि मनोरंजन के लिए। देखें "कार्यशाला की तैयारी करना"." हर एक कार्यशाला का आमतौर पर एक दस्तावेज, घोषणा, दिशानिर्देश या किसी अन्य उत्पाद होता है।

यदि यह एक प्रशिक्षण कार्यशाला है, कार्यशाला के अंत में ऎसा प्रतित होना चाहिए कि प्रतिभागियों मे कोई नए कौशल प्राप्त किया हो या फिर उस बात का सबूत होना चाहिए कि वह इस से ज्यादा आयोजित तरीके से कार्य कर सकते है। प्रबंधन प्रशिक्षण में, विषयों और परिणाम सामुदायिक सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन के समग्र रणनीति से जुड़े हुए होने चाहिए।

बैठकें (और पुनः मिलन ) और सत्र का आयोजन करना :

यह कौशल हस्तांतरण के विपरीत आयोजित करने का एक साधन है जो खासकर प्रबंध प्रशिक्षण के लिये होता है। बुद्धिशीलता जैसी तकनीको का उपयोग करके सहायक प्रतिक्रियाओं को इस प्रकार प्रक्रिया मे शामिल करता है जिससे निर्णय करने के लिए समूह का र्निर्माण या पुनर्निर्माण किया जा सके या फिर कुछ कार्य सम्पन्न किया जा सके।

सम्पर्क बनाने के मंच :

मंच सम्पर्क बनाने के लिये, आन्तर जिला, आन्तर राष्ट्रिय और अंतर राष्ट्रीय|

प्रमुख मुद्दों यह होते है जिससे कम आय वाले समुदाय का सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन, अनुभव का आदान प्रदान और अन्य समूहों, प्रतिभागियों, और कार्यकर्ताऔ के साथ से सम्पर्क बनाना जिससे समस्याऔ को अधिक सार्वभौमिक रूप में हल किया जा सके है।

सार्वजनिक सूचना प्रसार के माध्यम से :

इस रणनीति के तहद सार्वजनिक जागरूकता के भाग के रूप में, सभी तीन भागों में, सिद्धांतों सार्वजनिक सूचना प्रसार में डाला जा सकता है (रेडियो, टीवी, समाचार पत्र), विज्ञापनों के रूप में, पत्रिका या दस्तावेजी लेख के रूप में, और आपबीती के के रूप में भी डाला जा सकता है। उदाहरण के लिए सभी समुदाय कार्यो (समारोह, प्रमुख घटनाओं) मे तीनो सूचना प्रसार के माध्य्म के पत्रकारों मौजूद होना चाहिए।

प्रशिक्षण, रणनीति और योजना निर्देशरेखाओं :

प्रशिक्षण, रणनीति और योजना दिशा निर्देशों का निर्माण और विकास :

जिला और स्थानीय आयोजको और कार्यकर्ताऔर को सरल अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में प्रशिक्षण सामग्री तैयार करने के लिए प्रयास करना चाहिए (जहा जरूरत हो वहा सलाहकार का प्रयोग करना चाहिए)। प्रशिक्षण के आम दिशा निर्देशों जो प्रशिक्षकों और सह आयोजको के विचारों और विधियों को एकत्र करने में उपयोगी हो सकता है, और समानता लाने मे योगदान कर सकते हैं(स्थितियों के अनुसार इसे ढाला भी जा सकता है)। सामान्य दिशानिर्देश को ऎसे व्यावसायिक कागजात के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जो आन्तराष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और कार्यशालाओं में वितरण किया जा सके।

आम और स्थानीय प्रशिक्षण सामग्री का विकास

दिशा निर्देशों में वर्णित पद्धति और सिद्धांतों को मानकर बनाये गये प्रशिक्षण सामग्री को अंग्रेजी (फ्रेंच, स्पेनिश या कोई अन्य भाषा) और जरूरत के हिसाब से स्थानीय भाषाओं में भी बनाये जाने चाहिए।

प्रशिक्षण सामग्री मे ऎसी किताब होती है जिसमे सारी चिजो की जानकारी दी गई है, पर्चे, प्रस्तुतिया, छ्पे हुए दस्तावेज़ों, वेब पेज, प्रशिक्षकों के लिए मार्ग दर्शक किताब, वीडियो टेप, ऑडियो टेप, भूमिका निभा दिशानिर्देश, नाटक और सुविधा के बारे मे युक्तियाँ दी जाती है।

स्थानीय भाषाओं में अनुवादित प्रशिक्षण सामग्री को छापना :

रणनीति मे इन सामग्रियों के छपने के लिए दिशानिर्देश तैयार करना चाहिए। इस कार्य को स्थानिय स्तर पर करने के लिये इसके लिये जितने पैसे की जरूरत हो उसका इन्तजाम करना चाहिए।

पोस्टर, लक्षण, और प्रस्तुत करने योग्य प्रतिलिपि :

रणनीति के सम्बन्धित लोकप्रिय और रंगीन पोस्टर और लक्षण, कैलेंडर, नारे और मूल्य के सिद्धांत का उत्पादन किया जा सकता है और सार्वजनिक स्थानों, कार्यालयों में और सामुदायिक परियोजनाओं के स्थान पर इसका प्रयोग करना चाहिए।

अभियान, प्रतियोगिता और लोक समारोह :

पर्यावास दिवस, संयुक्त राष्ट्र के दिन, और अन्य सार्वजनिक आयोजनों मे इन चिजो पर गीत पेश करके, नृत्य, नाटकों, और अन्य मनोरंजक तरीको (नेताओं और अवसरवादी द्वारा उबाऊ भाषण के बजाय) से रणनिति के सिद्धांतो और तरीको के बारे मे बात कि जा सकती है।

तीसरा भाग : सक्षम करने के अनुकूल पर्यावरण :

इस रणनीति का यह हिस्सा इस तरफ काम करता है कि ऎसा प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण बनाया जा सके जिसमे स्वयं सहायता सुधार, आत्म निर्भरता, सामुदायिक सशक्तिकरण की दिशा में कार्रवाई, और गरीबी के उन्मूलन के तरफ काम करने को प्रोत्साहित किया जा सके।

विधान नीति को शुरू करने और उसको संशोधित करने के दिशा निर्देश :

विधान नीति मे बदलाव के लिये बनायी गयी समितियों को मदद करना (सामुदायिक सशक्तिकरण क्षेत्रों मे) देखे "नीति पत्र तैयार करने के लिए दिशानिर्देश."

वकालत के परिणामस्वरूप, सरकार नीति और कानून में सुधार के लिये समितियों की स्थापना या उसे पुनर्जीवित कर सकती हैं। रणनीति के तहद समिति की बैठकों के लिए वित्तीय समर्थन का भी ध्यान रखना चाहिए (यह बैठक मात्र राजधानी मे न हो कर सारे क्षेत्र मे होते रहनी चाहिए)। रणनीति मे इन चिजो का भी ख्याल रखना होगा - किराये, नाश्ता, दैनिक भत्तों, और तकनीकी सहायता (तकनीकी विशेषज्ञों और सहायको जो समिति की बैठकों में वांछित परिणाम लाने के लिये मदद कर सके)।

मंत्रालय के नियम :

मंत्रालय के नियमों और प्रक्रियाओं को संशोधित करने के दिशा निर्देश :

रणनीति का वर्णन करने वाले दस्तावेज़ तैयार किये जा सकते है और वह समितियों और दूसरी नीतिया बनाने वाले, विनियमों और नियमों, और कानून में बदलाव लाने वाले की मदद कर सकता है।

गैर सरकारी संगठन के लिए निर्देशरेखा :

गैर सरकारी संगठनों को समुदाय में सक्रिय करने के संबंधित क्षेत्रों के निर्देश :

गैर सरकारी संगठनों (अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय) की स्वीकार्यता और कानूनी स्थिति के आधार पर उन्हे समर्थन दिया जा सकता है। इससे एक दूसरे और सरकारी प्रयासों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। बैठकों के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता दे कर, कार्यशालाओं की समितियों मे , और दस्तावेज़ (जैसे दिशानिर्देश) तैयारी, मुद्रण, और वितरण मे मदद करके समर्थन दिया जा सकता है।

जागरूकता बढ़ाने के कार्यक्रम :

जितना जनता लक्ष्यों और इस रणनीति के तरीकों के बारे में ज्यादा जानती होगी, उतना ही वातावरण इच्छित दिशा में सामाजिक परिवर्तन के लिए अनुकूल बनता जायेगा। इन कार्यक्रम इस प्रकार के हो सकते है - सम्मेलनों, कार्यशालाओं, प्रतियोगिताएं, पुरस्कार सम्मेलन, नाटकों, संगीत, और अभियानों।

सार्वजनिक सूचना क्रिया :

इनमे पोस्टर, रेडियो, टीवी और समाचार पत्रों मे विज्ञापनों और पत्रिका लेख शामिल होते हैं। पत्रकार को शोध करने के लिए मानदेय दिया जा सकता है और वह सशक्तिकरण की प्रक्रिया को वर्णन और गरीबी में कमी लाने मे उपयोग किये गये तरीके के विशेष लेख लिख सकता है।

केन्द्र सरकार और सशक्तिकरण :

जनतंत्रीकरण, राजनीतिक और प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण, वित्तीय अधिकार का हस्तांतरण, विकास मंत्रालयों के केन्द्रियकरण, कानूनों, नियमों और प्रथाओं के संशोधनों को प्रोत्साहित करने के लिए, समुदाय को मजबूत बनाने और आत्म निर्भरता को बढावा देते है। नीति के कागजात और संबंधित उपकरणों के लेखन के लिए दिशा निर्देश (समुदाय को मजबूत बनाने के लिये) होते है जिससे सन्सद मे उस पर चर्चा कि जा सके।

विशेषज्ञता में सहायता इन चिजो मे यह सब शामिल होता चाहिए - नीति के कागजात बनाने के लिखित निर्देशों और य़ह निर्देश भागीदारी और परामर्शी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करेगा, जिस मे समुदाय के लोग भी शामिल होन्गे। इससे समुदाय को मजबूत बनाने के लिए अनुकूल माहौल बनेगा और नीति के कागजात और संबंधित उपकरणों बनाने को भी बढावा मिलेगा।

विकेन्द्रीकरण :

समुदाय प्रबंधन के समर्थन के लिए अधिकार और वित्त विकेन्द्रियकरण मे विश्लेषण और उचित सलाह की आवश्यकता होगी। विषय विशेषज्ञ जिनको तकनीकी विशेषज्ञता हे, उनको विकेन्द्रीकरण के निर्णय और वित्तीय निहितार्थ पर सलाह और विश्लेषण करना चाहिए।

भूमि कानून सुधार मे में सहायता :

भूमि, भूमि कार्यकाल, भूमि पद्धतियों से संबंधित भूमि कानून समुदाय के सशक्तिकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करते है। देखें "समुदाय परिप्रेक्ष्य मे भूमि प्रबंधन." 

इन्हे ऎसे कानून बन जाने चाहिए जिससे सुविधाओं और सेवाओं के प्रबंधन में समुदाय को बढ़ाने में मदद हो, लिंग और अल्पसंख्यकों के मानव अधिकार सुनिश्चित हो, और भूमि स्वामित्व और उसका उपयोग करने के संबंधित निष्पक्ष कानून मे सुधार हो।

हस्तांतरण मे सहायता :

मंत्रालयों की प्रक्रिया मे सहायक बनना जिससे वह नीति, मानकों, प्रक्रिया और दिशा निर्देशों की सहायता पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर सके और क्रियान्वयन, संचालन स्टाफ, नियोजन, निर्णय लेने और प्रबंधन जिले का दायित्व हो।

विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया से केंद्रीय मंत्रालयों के सभी कार्यों समाप्त नहीं हो जाती, उसकी भूमिका ज्यादातर मार्गदर्शन, नीति निर्माण और चिजे ठीक से चल रही है वैसा देखनी की हो जाती है। तभी संक्रियात्मक कार्यों को जिलों का दायित्व होता है। इसको प्राप्त करने के लिए जिले को प्रशिक्षण और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और केंद्रीय मंत्रालय को अपनी भूमिका को बदलने के लिए सहायता की जरूरत होगी। रणनिति के तहद उन मंत्रालयों की सहायता करनी चाहिए जो सामुदायिक विकास की प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करते हो।

CBOs को कानूनी मान लेना

समुदाय के आधार पर बने संगठनों को परिभाषित करने और कानूनी दर्जा प्राप्त करने मे मदद करना।:

सहायता के रूप मे यह सारी चिजे शामिल होती है - विशेषज्ञता, बैठकों को वित्तीय सहाय, कार्यशालाओं, वकालत और समुदाय को मजबूत करने के लिये बनाये गये संगठनों को कानूनी मान्यता प्राप्त करवाने मे और उन संगठनों को मजबूत करने मे।

नगर-सामुदायिक सूचना वितरणं :

पडोस से नगर पालिका तक और सामुदायिक संगठनों से स्थानीय प्राधिकारी के सूचना के प्रवाह के लिये कानूनी और प्रक्रिया संबंधी तंत्र की स्थापना करनी होगी।

इस लेख मे बताये गये जानकारी प्रबंधन की आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से संचालन करने के लिए कानूनी और प्रक्रिया संबंधी वातावरण को प्रभावी होना होगा।

वकालत :

इन नीति और कानूनी मुद्दों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए पक्षपोषण|

उपर बताये गये सभी सार्वजनिक सूचना गतिविधियों, और प्रशिक्षण और संवेदीकरण सत्रों की सामग्री, कानून में जरूरी बदलाव की स्वीकृति में सुधार लाने के उद्देश्य से किये गये है। इससे नियमों, प्रक्रियाओं, समुदायों के पर्यावरण को और मजबूत बनाने की प्रक्रिया के लिये जरूरी दृष्टिकोण बनाता है।

पाठ्यक्रम बनाना :

विश्वविद्यालयों सहित, प्रशिक्षण संस्थानों को उसके पाठ्यक्रम संशोधित करने मे मदद करनी चाहिए जिससे भागीदारी विधियों और उपरोक्त मुद्दों को उसमे शामिल किया जाना चाहिए।

समुदाय को मजबूत बनाने तथा गरीबी कम करने की पहल को लागू करने के संबंधित मंत्रालयों और गैर सरकारी संगठनों के पेशेवर लोगो को उन्नत प्रशिक्षण और शिक्षा की जरूरत होती है।

इस बीच शैक्षणिक पेशेवर लोगो को विशेषज्ञता का एक ऎसा समूह का गठन कर सकते हैं जो वक्त आने पर रणनीति को लागू के लिए तैयार रहे। प्रशिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम जिनको समय समय पर उन्नयन की आवश्यकता है, इस रणनीति और पद्धति के बदलावों को शामिल करने के लिए यह लोग सहायता प्रदान कर सकते है।

आम तौर से कानून, विनियमों और प्रक्रियाओं में परिवर्तन करने के लिए और एक अनुकूल माहौल के विकास का समर्थन के लिये केन्द्र सरकार की सहायता की जाती है।

जिला और स्थानीय सरकारों की भूमिका :

जिला और स्थानीय स्तर पर भागीदारी योजना और प्रबंधन के लिए पक्षपोषण :

अनुकूल माहौल बनाने की प्रक्रिया मे, जिला प्रशासन और सरकारों की क्षमता को समवर्ती रूप से मजबूत करना चाहिए। जिला अधिकारियों को भागीदारी योजना, प्रबंधन और समुदाय के साथ बातचीत के लिए संवाद और सुविधा में कौशल से अवगत करवाना होगा।

भागीदारी योजना और प्रबंधन के कौशल में प्रशिक्षण :

इस रणनीति मे , अनुकूल माहौल के प्रोत्साहन और पैरवी का समर्थन करने के लिए आवश्यक कौशल भागीदारी में प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए।

स्थानीय कानून :

स्थानीय और जिले कानून, नियमों और प्रक्रियाओं के लिए निर्देशों विकसित करने :

जहाँ जिला परिषद को कानून या नियम बनाने के अधिकार है वहाँ कन्द्रिय सरकार को जिस स्तर पर सहायता की गयी थी उसी तरह की मदद प्रदान करनी होगी। इस बीच, अगर जिला प्रशासन अपनी प्रशासनिक नियमों, प्रक्रियाओं और व्यवहार बदलने में मदद करनी है तो इसी तरह की सहायता उन्हे भी उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

सम्पर्क बनाना

सम्पर्क बनाने के लिये और अन्य जिलों और देशों के साथ अनुभवों को साझा आदान प्रदान करने के लिए संदर्भों :

जानकारी का आदान प्रदान करने के लिए, वकालत, प्रोत्साहन और कौशल हस्तांतरण के लिए रणनीति मे यह सारे शामिल होने चाहिए : सम्मेलनों, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों तथा अन्य जिला अधिकारी (और समुदाय के सदस्यों) के साथ बैठकें जिससे देश-विदेश मे सम्पर्क बनाये जा सके।

व्यक्तियों के तीन मुख्य प्रकार हैं जो समुदाय को प्रभावित कर सकते है :

  • जिला के सरकारी आला अफसर :
  • जिले के नेताओं और राजनेताओं, और
  • तकनीकी विशेषज्ञ

भागीदारी के तरीको को प्रोत्साहित करने और प्रशिक्षण में इन लोगो से सहायता प्राप्त हो सकती है।

नके "प्रदाता" से "सहायक" के बदलने की प्रकृति उनकी शक्ति के स्रोत के अनुसार भिन्न होता है। अपने अवलोकन और स्थिति के विश्लेषण के आधार पर कार्यकर्ता और प्रबंधन प्रशिक्षक को उन परिवर्तनों लागू करने के उपायों निर्धारण करने होन्गे।

गैर सरकारी वातावरण ::

समुदायिक भागीदारी के विकास के लिए गैर सरकारी संगठन को एक बडी ताकत के रूप मे देखा जा सकता है। स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए उन्हे कुछ मार्गदर्शन और समन्वय की जरूरत होती है।

अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :

  • राहत, दान या आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिये और
  • विकासात्मक

दोनों की अपनी भूमिका होती है और पहले प्रकार से दूसरे प्रकार के संगठनों को जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

कई बड़े अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों दोनों दृष्टिकोण रखते है।

  • उनके महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार से हो सकते है - संसाधनों (मुख्य रूप से, वित्तीय तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता);
  • अक्सर भागीदारी तरीकों उनकी नीति के रूप में शामिल होते हैं, और
  • आमतौर से यह एक सत्कारशील सरकार के साथ सहयोग करने के लिए तत्पर होते है, खासकर इस रणनीति में शामिल सिद्धांतों और विधियों को लागू करने मे।

दूसरी तरह के संगठनों को निर्देशित और सहायता प्रदान की जा सकती है और यह एक राष्ट्रीय और जिला योजनाओं के भीतर रणनीति के हिस्से के रूप में शामिल किया जा सकता है।

स्थानीय और राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों :

लोकतांत्रिक नागरिक भागीदारी की प्रकिया, विशेषकर वकालत और मानव अधिकारों में योगदान करते हैं। आमतौर अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों से आर्थिक रूप मे अधिक कमजोर होते है लेकिन उन्हे कई बार कुछ अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन, संयुक्त राष्ट्र और द्विपक्षीय दाताओं द्वारा समर्थित किया जा सकता है;

मुख्य रूप से उनकी दो किस्म होती है :

  • CBOs, छोटे स्वैच्छिक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों, और
  • निजी धन्धे जो स्वैच्छिक सन्गठन के भेष आय बनाने के लिए काम करते है।

दोनो का इस रणनिते मे अपनी अपनी भूमिका होती है, पहली किस्म के संगठन को बार कम आय वाले समुदायों को सशक्त बनाने के लिए हमारी मदद कर सकती है और दूसरी किस्म के संगठन छोटा परामर्शी के रूप में काम आते है।

गैर सरकारी संगठन और CBO के मंच :

इन मंचों से समुदाय मे सहभागिता बनाने और गैर सरकारी संगठन और CBO के लिए दिशा निर्देशों में संशोधन के लिए कार्य करते है।

कार्यशालाओं और सेमिनारों के मुख्य लक्ष्य ऎसे दिशानिर्देश और संशोधन का निर्माण करना है जिससे समुदाय का समर्थन और गरीबी उन्मूलन की प्रक्रिया को मजबूत किया जा सके। इस कार्य मे सरकारी अधिकारियों (दिशानिर्देशों के उत्पादन के लिए) और गैर सरकारी संगठनों (दिशा निर्देशों का पालन करने के लिए) के बीच पेशेवर नाते बनाना आवश्यक है।

गैर सरकारी संगठन और सरकारी मंच :

यह मंच गैर सरकारी संगठनों, CBOs, और कन्द्रिय और स्थानीय सरकारों के बीच बातचीत के लिए जरूरी होते है :

इस रणनीति के तहद गैर सरकारी संगठनों, CBOs, और और जिले के अधिकारियों के बीच संवाद को मजबूत करना चाहिये जिससे विनिमय जानकारी, तकनीक और समुदाय को मजबूत बनाने मे मदद हो सके।

तरीकों पर समझौती :

सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन के तरीकों पर समझौती बनानी चाहिए हो लम्बे अरसे तक चल सके :

दोनो मंच से हम ऎसे दस्तावेज की उम्मीद कर सकते है जो एक समर्थनकारी वातावरण का निर्माण और स्वयं सहायता, समुदाय प्रबंधन और धन सृजन को प्रोत्साहित करने के लिये घोषणाओं, समझौतों, दिशानिर्देश और तरीकों के बारे मे विवरण प्रदान करता हो।

यह जानकारी एक संगत राष्ट्रीय नीति और प्रक्रिया में योगदान करेगा (वह इतना लचीला भी होगा जिससे के विभिन्न स्थितियों और संबंधित उपायों के अनुसार ढाला जा सके)।

स्थानीय-अंतर्राष्ट्रीय सहायता के समझौतों :

अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के बीच वित्तीय और विशेषज्ञ की सहायता के समझौतों :

उपरोक्त मंचों से, और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और उनके संभावित दाताओं के बीच सूचना आदान प्रदान से, यह समझौतों कुछ राष्ट्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने में, और इस रणनीति के पहले और दूसरे भाग के उद्देश्य परिपूर्ण करने मे मदद कर सकते है।

भागीदारी के तरीको को प्रोत्साहित करना :

भागीदारी के तरीको से सामुदायिक सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहन और प्रशिक्षण देने में सहायता हो सकती है|

इस रणनीति के तहद दोनो अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय गैर सरकारी को मदद प्रदान की जाती है। जैसे की वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण सत्र जो गरीबी उन्मूलन और समुदाय को मजबूत बनाने में शामिल गैर सरकारी संगठनों, केन्द्रिय सरकार और जिला परिषद के बीच मे स्थिरता और समन्वय को प्रोत्साहित करेंगा।

यह रणनीति ऎसे वातावरण बनाने से लिये काम करता है जो सरकार, समुदाय और निजी क्षेत्र के सभी स्तरों के साथ गैर सरकारी संगठनों और CBOs को जोडता है।

निष्कर्ष :

CMP रणनीति की तीन संबंधित और एकीकृत भाग है। सारे भागो का लक्ष्य कम आय वाले समुदायो को सभी निर्णय लेने के लिए और अपने स्वयं के प्रति क्रियाओं करने के लिये सशक्त बनाना है। पहला भाग समुदाय पर ही केन्द्रित किया गया है, और समुदाय मे जागरूकता लाने के बाद समुदाय द्वारा निर्धारित स्वयं सहायता गतिविधियों का आयोजन और सन्साधन जुटाना ईसमे शामिल होता है।

दूसरा भाग रूढ़िवादी सामुदायिक विकास को एक कदम आगे ले जाता है और प्रबंधन का प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है। यह प्रशिक्षण कौशल के हस्तांतरण से परे है, और संस्थागत पुनर्गठन के लिए एक तंत्र के रूप में समुदाय के आयोजन के लिये प्रयोग किया जाता है। तीसरा भाग समुदाय के राजनीतिक और प्रशासनिक वातावरण पर कैन्द्रित होता है और अधिक आत्म निर्भरता और समुदायों में भागीदारी को सक्षम करने के लिए केंद्रीय और स्थानीय सरकारों और अधिकारियों, और गैर सरकारी सन्गठ्नो की मदद करता है।

इधर प्रस्तुत प्रशिक्षण सामग्री सभी प्रभावित वर्गो के लिये है जो इस रणनीति द्वारा उत्पन्न उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं।

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आखरी अपडेट: २१.०८.२०११

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