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 संसाधन




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सामुदायिक संसाधन अर्जन

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

और जोशुआ ऑग्वॅंग द्वारा

दीप्ति राणा द्वारा रूपांतरित


दिशा निर्देश

संक्षेप :

यह दस्तावेज़ संसाधन के व्यापक स्रोतों का वर्णन करता है जो एक समुदाय या सामुदायिक संगठन ( सी. बी ओ.) के पास संभवत: प्राप्त होते हैं | यह समुदाय या सामुदायिक संगठनों को सामुदायिक परियोजना के लिए पैसा या बिना पैसे के अंशदान एकत्रित करने के कई तारीख़े बताता है

सभी संसाधनों (चाहे पैसे के रूप में हो या वस्तु के रूप में हो) को दर्ज करना चाहिए ताकि सही आंतरिक और बाह्रा कीमत का हिसाब किया जा सके |

यह दस्तावेज़ उन स्रोतों का वर्णन नहीं करता जो की मुफ़्त या स्वैच्छिक दान हैं | उनका वर्णन इस सह दस्तावेज़ में है, निधि एकत्रित करना | यहाँ पर ऐसे स्रोतों का वर्णन है जहाँ पर संसाधनों को योजनाबंध परियोजना के लिए निश्चित किया जाता है, जैसे की स्थानीय, जिला और केंद्रीय प्राधिकारी वर्ग और सरकारें , प्रदाता एजेन्सी (एन. जी. ओ, द्वीपक्शिय और बहुपक्षीय ) और सत्तांत्रित निधि |

1. संसाधन अर्जन की भूमिका :

संसाधन दो तरह के होते हैं - आर्थिक और गैर आर्थिक, गैर आर्थिक निविष्टियों का हिसाब हम आर्थिक रूप में कर सकते हैं यदि उनका मूल्य सही हो तो, इस से समस्त संसाधनों का हम आर्थिक रूप में हिसाब कर सकते हैं |

यह दस्तावेज़ कम आय वाले समुदायों को सशक्त करने वाले दिशा निर्देशों का अहम हिस्सा माना जा सकता है | निधि एकतरण तकनीक का इस्तेमाल सामुदायिक संगठनों (सी. बी. ओ.) और स्थानीय एन. जी. ओ (गैर सरकारी संगठन) की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है | किसी भी समाज की प्रजातंत्रता की प्रक्रिया में इनका सहयोग होता है -- एक सक्षम एन. जी. ओ / सी. बी. ओ. आंदोलन, और दृढ़, नियोजित, भागीदार, प्रयुक्त समुदाय |

समुदायों और संगठनों को अपनी गतिविधियों के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है ख़ास कर पैसों की | इसीलिए संसाधन प्राप्त करना बहुत ज़रूरी होता है | यदि कोई कार्य उपयुक्त हो, और लौग उसका सच्ची में समर्थन करते हैं, तो आर्थिक सहायता भी मिल ही जाती है |

1.1 सजीवन और समुदाय संचालन प्रशिक्षण :

सजीवन का मतलब है की समुदाय को इकठ्ठा करके उस दिशा में लेकर चलना जिससे समुदाय वो कर सके जो वो करना चाहता है | अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए समुदाय को संसाधनों (या निविष्टियों ) का इस्तेमाल करना चाहिए |

समुदाय संचालन प्रशिक्षण, सजीवनता की परिभाषा को और बढ़ाता है, संचालन प्रशिक्षण के तरीकों को इस्तेमाल कर के वो समुदाय या सामुदायिक संगठनों के सामर्थ्य को बढ़ाता है, जिससे वो अपने निर्णय, योजना और विकास का प्रबंध आप कर सकें | संसाधन अर्जन और लागत की पुन: प्राप्ति संचालन प्रशिक्षण के भाग हैं |

यह संसाधन आर्थिक और गैर आर्थिक हो सकते हैं लेकिन हम गैर आर्थिक निविष्टियों का हिसाब आर्थिक रूप में कर सकते हैं यदि उनका मूल्य सही हो तो , इस से हम समस्त संसाधनों का हिसाब आर्थिक रूप में कर सकते हैं | यह दस्तावेज़ कई स्रोतों को जाँचता है जिससे सामुदायिक परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता मिल सके |

1.2 इस दस्तावेज़ का उद्देश्य :

यह दस्तावेज़ आपके लिए और हमारे लिए है | उपाय और दिशा निर्देश यह संदर्भ दिखाता है कि हमें / आपको क्या करना चाहिए, या आपको/ हमें क्या करने के लिए विवेचित करता है |

यह सख़्त नियम और विनियम नहीं हैं | कार्यक्षेत्र में इनका इस्तेमाल सूक्ष्मता और अनुनेयता के साथ करना चाहिए | हमें / आपको एक समुदाय के विशेष सांस्कृतिक और सामाजिक अभिलक्षण का ज्ञान होना चाहिए, और जिस समुदाय में हम/ आप काम करते हैं उसकी भावनाओं और मान्यताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए | इसीलिए हर समुदाय के विभिन्न अभिलक्षणों के हिसाब से हमें दिशा निर्देशों को थोड़ा बहुत उस समुदाय के हिसाब से सुधार लेना चाहिए |

1.3 राजकीय धन संसाधन हैं :

हम/ आप जब किसी सामुदायिक परियोजना की वितीय स्थिति के बारे में बात करते हैं, तो हमारा/ आपका तात्पर्य उस परियोजना की सफलता में लगने वाली पूंजी से होता है | यदि परियोजना के विशेष उद्देश्य या मनचाहे परिणाम को उत्पादन कह सकते हैं (जैसे कि कक्षा का निर्माण, कुएँ की मरम्मत करना) तो उस परियोजना में जो भी इस्तेमाल होता है उसे हम निवेश कहेंगे (जैसे कि ज़मीन, मज़दूरी , धन, निर्माण की सामग्री, औज़ार) | एक समुदाय या सामुदायिक संगठन को चाहिए की वो ऐसे निवेश की चीज़ों को पहचाने, ढूँढें और इस्तेमाल के लिए तैयार करें |

इन में से कुछ निविष्टियाँ नकद दान के रूप में होंगीं | और कुछ श्रम दान, स्वयंसेवकों के लिए भोजन, कुछ औज़ार, ज़मीन, कुछ परामर्श या प्रशिक्षण, सामग्री जैसे कि रेत आदि के रूप में होगी |

वैसे तो परोयोजना के लिए कोई भी गैर आर्थिक दान किसी भी आर्थिक मूल्य के साथ नहीं आता है, प्रंतु यह ज़रूरी है कि आप/ हम समुदाय को प्रोत्साहित करें कि वो ऐसे गैर आर्थिक दान को सही आर्थिक मूल्य दे |

सामुदायिक परियोजना की निविष्टियों के मूल्य का हिसाब करते समय, आर्थिक और गैर आर्थिक संसाधनों का मूल्य का हिसाब करना चाहिए ताकि आंतरिक वह ब्राह्वा संसाधनों को सही दर्ज किया जा सके |

2. सामुदायिक लागत की पुन: प्राप्ति का उद्देश्य :

संसाधन प्राप्त करना एक बहुत ही अहम गतिविधि है | जो यह गतिविधि निभाते हैं वो उस समुदाय या संगठन को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण सहयोगी होते हैं |

कोई भी संगठन बिना निधि के स्रोतों या गैर आर्थिक निविष्टियों के शीघ्र ही कार्य करना बंद कर देता है और कुछ समय उपरांत बंद हो जाता है |

2.1 सामान्य लक्ष्यों को ध्यान में रखें :

सामुदायिक निर्भरता का विरोध करना आपका प्रथम लक्ष्य है | आपके / हमारे हर कार्य का सबसे प्रथम लक्ष्य किसी भी समुदाय की निर्भरता को कम करने का होना चाहिए | किसी भी समुदाय या सामुदायिक संगठन को संसाधन प्राप्त करने का प्रशिक्षण देते समय सिखानेवाले को यह लक्ष्य हमेशा ध्यान में रखना चाहिए और उसी के मुताबिक काम करना चाहिए | एक दान कर्ता एजेन्सी को समुदाय को बिना कुछ किए कुछ भी नहीं देना चाहिए | अन्यथा यह निर्भरता को भढ़ावा देता है |

हमेशा समुदाय के सदस्यों को परियोजना का कार्यभार संभालने के लिए बढ़ावा देना चाहिए, हम/ आप उनकी सहायता अपनी निपुणता और कौशल से कर सकते हैं लेकिन काम उन्हे ही करना होगा | इसी विचारधारा का प्रयोग सामुदायिक परियोजना के वित्तपोषण वित्तीयन में करते हुए, हमें / आपको परियोजना की निविष्टियों को समुदाय के लिए प्राप्त करने का प्रस्ताव कभी नहीं करना चाहिए |

हम / आप एक मार्गदर्शक या शिक्षक होने के नाते उन्हे दिशा निर्देश दे सकते हैं जैसे कि पैसे और अन्य संसाधन कैसे एकत्रित करते हैं, कैसे लेखों / खातों को सरल और पारदर्शी रखा जा सकता है, और कैसे गैर आर्थिक दान को आर्थिक निविष्टियों में बदला जा सकता है |

आपको / हमें हमेशा इस बात पर ज़ोर देना चाहिए कि संसाधन प्राप्त करने का असल में कार्य समुदाय या सामुदायिक संगठन, जो उनके लिए काम करती है, का है और शिक्षक या मार्गदर्शक का नहीं |

हमेशा याद रखिए कि किसी भी समुदाय में स्वाभाविक एकता नहीं होती है | हर समुदाय में विभेद और विभाजन होते हैं |(1) हमें / आपको अपने हर कार्य के द्वारा एक समुदाय की एकता बढ़ाने में मदद करनी चाहिए |

फुटनोट (1): किसी भी समुदाय में विभाजन के कई कारण हो सकते हैं : जातियाँ, अनेक धर्म, वर्ग, आय, शिक्षा, ज़मीन का स्वामित्व, संस्कृति का निकास, उम्र, लिंग आदि | इन विभाज़नों में गुंजाइश करने का स्तर भी कई कारणों की वजह से अलग अलग हो सकता है |हमें / आपको इस तरह से काम करना है जिससे हम इन भेदभाव को कम कर सकें, सामुदायिक एकता और ईमानदारी को बढ़ायें, और सामुदायिक विभाज़नों को पराजित कर सकें |

जब भी हम / आप सामुदायिक परियोजना के लिए संसाधन प्राप्त करने की राय देते हैं, तो हमें / आपको एक समुदाय को किसी एक ही कार्यनिति को अपनाने के लिए ज़ोर नहीं देना चाहिए, कई कार्यनितियाँ समुदाय की एकता को भंग कर सकती हैं | हमें राय और परामर्श देना चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए की हम समुदाय के सदस्यों की बातें सुनें (ख़ासकर उनकी जो चुप रहते हैं) और अंदेशा लगायें की कोई कार्यनिति समुदाय की एकता को भंग तो नहीं कर रही |

2.2 हम निर्भरता के खिलाफ क्यूँ हैं ?

जैसे जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे हर साल सरकार के पास प्रतिव्यक्ति संसाधन कम होते जा रहे हैं | इसीलिए समुदायों का केंद्र सरकार पर मानवीय अवस्थापन सुविधाओं और सेवाओं के लिए निर्भरता अब साध्य नहीं है | यही हाल अंतरराष्ट्रीय प्रदाता: अमीर देश की सरकारों, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बेंक, अंतरराष्ट्रीय एन. जी. ओ'स, का भी है, उनके पास ग़रीब समुदायों को देने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, फिर चाहे वो पूरी दुनिया भर में कितना ही लाभदायक कारण क्यूँ ना हो |

हालाँकि एक समय में समुदाय का आत्म निर्भर होना अच्छा माना जाता था, यह मूल स्तर पर प्रजातन्त्र, मानवीय अधिकार, आत्मविकास और मानवीय गौरव को बढ़ावा देती है, अब यह इन सब से बहुत ज़्यादा माना जाता है | अगर समुदाय ज़्यादा से ज़्यादा आत्म निर्भर और शक्तिशाली नहीं बन जाते तो उनका विकास नहीं होगा और ग़रीबी और लाचारी उनको ख़तम कर देगी |

पुराना सरपरस्तता वाली रीति, जिसमे नेता और कर्मचारी उन्ही लोगों को ठेके और सामुदायिक सुविधाएँ देते थे जो उनकी मदद सत्ता में बने रहने में करती थी, इस रीति को बढ़ावा सहुलतों और सुविधेयों के प्रति प्रावधान वाली सोच देती है | एसे नेताओं को बदलना चाहिए या एसे प्रजातांत्रिक जनता के सेवकों को रखना चाहिए जो समुदाय की आत्मनिर्भरता में मदद करे |

जब कोई बाहर की संस्था, चाहे वो केंद्रीय सरकार हो, या अंतरराष्ट्रीय एन. जी. ओ या मीशण हो, किसी समुदाय में आकर मानव अवस्थापन के लिए सहुलतें बनाती है जैसे पीने के पानी की व्यवस्था करना आदि, तो यह स्वाभाविक है कि समुदाय के सदस्य उसे बाहर की संस्था की ही संपत्ति मानेंगे | जब वो संस्था वहाँ से चली जाएगी या उसके पास निधि शेष हो जाएगी, तो समुदाय के सदस्यों में, उस सहुलत को बनाए रखने में या उसकी मरमम्त करने में, कोई अभिरोचन नहीं होगा | यदि हम चाहते हैं कि समुदाय के सदस्य उस सहुलत को सफलतापूर्वक इस्तेमाल करें तो, उनमें इस सहुलत के प्रति एक ज़िम्मेदारी का भाव होना आवश्यक है, तभी तो वह सहुलत को बनाकर और संभालकर रखेंगे |

इस ज़िम्मेदारी के भाव को स्वामित्व अधिकार भी कहते हैं, जो समुदाय के मन में होना चाहिए | जब तक कोई समुदाय इस सहुलत की निर्णय सृजन प्रक्रम में शामिल नहीं है, और उसने इस के निर्माण के खर्चे में कोई योगदान नहीं दिया है, तब तक उसमें इस सहुलत क्र प्रति वो ज़िम्मेदारी या स्वामित्व का भाव नहीं आएगा | और तब तक वो उसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल या संभाल नहीं करेंगे |

यदि हम यह सोचें कि मानव अवस्थापन की साहुलतें बनाने के बाद उनमें मरमम्त की ज़रूरत नहीं पड़ेगी तो यह नामुमकिन है |

3. लागत की पुन: प्राप्ति के प्रकार :

एक समुदाय, परियोजना निर्वाहक, या किसी संगठन के पास अपनी गतिविधियों के लिए निधि प्राप्त करने के कई विकल्प होते हैं | हम समुदायों को यह सलाह देते हैं कि वह निधि के लिए कई तरह के स्रोतों की खोज करें, और ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल अपने देशी संसाधनों का करें | ऐसा करने से किसी एक प्रदाता पर निर्भरता कम होती है |

3.1 व्यवस्था शुल्क वह दान :

जो पैसा व्यवस्था शुल्क लगाने से मिलता है और जो पैसा दान में बिना किसी अपेक्षा से मिलता है, इन दोनों में एक अंतर है |

व्यवस्था शुल्क मूल लागत के रूप में भी हो सकता है, जैसे समुदाय के घरों का जल आपूर्ति का मूल्य | व्यवस्था शुल्क मात्रानुपाती दर के रूप में भी लगाया जा सकता है, जैसे एक निश्चित पानी की मात्रा के लिए निश्चित दाम लिया जा सकता है |

व्यवस्था शुल्क उन सेवायों के लिए सही है जहाँ पर उसका तरीका हर प्रयोक्ता को स्पष्ट दिखता है | ज़्यादातर व्यवस्था शुल्क इन सेवायों की मरम्मत और अनुरक्षण के काम के लिए एकत्रित किया जाता है |

3.2 दाता वह प्रदाता एजेन्सीस :

जो पैसा बिना किसी अपेक्षा के दिया जाता है वो या तो जनता के दान से मिलता है या प्रदाता एजेन्सीस से किसी विशेष कार्य के लिए मिलता है | लोक दान या जनता से मिला हुआ दान वो होता है जो सामुदायिक संगठनों द्वारा किसी विशेष गतिविधि के लिए निश्चित नहीं होता है | देखिए निधि एकत्रन.

प्रदाता एजेन्सीस वो संगठन हैं, जो अन्य कार्यों के साथ साथ, कार्यान्वित करने वाले संगठनों को निधि भी देती हैं | प्रदाता एजेन्सीस या तो बहुत बड़ी और परिष्कृत अधिकारीवर्ग हो सकती हैं जैसे, विश्व बैंक, यू. एन., अमीर देशों की सहायक एजेन्सीस या सरकारें आदि, या तो वह छोटी स्थानीय संगठन हो सकतें हैं जो की एक निश्चित स्थानीय परियोजना के लिए ही दान देतीं हैं |

3.3 सिद्धांतों में समानता :

इतने सारे संसाधनों के स्रोतों से निधि प्राप्त करने के सिद्धांत एक से हो सकते हैं परन्तु, उनसे संबंधित विशिष्ट तकनीक अलग हो सकती है | जनता से अप्रतिबद्ध दान प्राप्त करने के लिए किसी ना किसी तरह के आग्रह या अपील का सहारा लेना पड़ता है |

प्रदाता एजेन्सी से निधि प्राप्त करने के लिए ज़्यादातर परियोजना का विस्तृत अभिकल्प चाहिए होता है, और इस अभिकल्प को एक आपचारिक प्रस्ताव (पैसे के लिए दरख़्वास्त) के रूप में प्रदाता एजेन्सी के सामने प्रस्तुत करना होता है | यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात यह है की, उपरी कार्यवाही थोड़ी बहुत अलग हो सकती है परन्तु, अंतर्निहित सिद्धांत एक समान ही रहते हैं |

3.4 दान :

किसी व्यक्ति या समूह से किसी भी तरह का अंशदान दान कहलाता है | लौग, समूह, संगठन अपने समुदाय की सहायता के लिए किसी भी रूप में दान दे सकते हैं, जैसे कि पैसा, ज़मीन, उपाय, मज़दूरी, परामर्श देना या उपकरण देना आदि |

3.5 देशी वह विदेशी संसाधन :

देशी संसाधन यह वो होते है जो एक समुदाय जो सामुदायिक परियोजना का कार्यभार संभालती है उसी के भीतर प्राप्त होते हैं | विदेशी संसाधन वो होते हैं जो समुदाय के बाहर पाए जाते हैं |

विदेशी संसाधन अंतरराष्ट्रीय प्रदाता (जैसे सरकारें, गैर सरकारी संस्था, या यू. एन.) और राष्ट्रीय प्रदाताओं (जैसे केंद्रीय या जिला सरकार, या देशी एन. जी. ओ) से पाया जाता है |

यदि कोई समुदाय अपनी परियोजना के लिए ज़्यादा मात्रा में देशी संसाधन का इस्तेमाल करे तो वो अनाधीन होता है | हमारा लक्ष्य किसी समुदाय को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाना नहीं है (आर्थिक आत्मनिर्भरता तो संभव नहीं है ), परन्तु एक समुदाय की निर्भरता और लाचारी को कम करना है | यदि कोई समुदाय अपनी केंद्रीय या जिला सरकार और स्थानीय एन. जी. ओ. के साथ भागीदारी में हो (ना कि उनके नियंत्रण में हो ) तो उसे अन्योन्याश्रित माना जा सकता है |

यदि एक समुदाय के पास निविष्टियों के कई स्रोत होते हैं तो वो किसी एक प्रदाता के नियंत्रण में नहीं होता है यानी की वो अनाधीन होता है |

4. निधि के स्रोत :

एक समुदाय के पास निधि और संसाधन के कई संभवनीय स्रोत होते हैं | एक मार्गदर्शक होने के नाते आपको समुदाय के लिए संसाधन प्राप्त नहीं करने चाहिए, बल्कि उस समुदाय का मार्ग दर्शन करना चाहिए और उन्हे संसाधन स्वंय प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए |

4.1. प्रयोक्ता शुल्क और अनुरक्षण लागत :

स्वैच्छिक दान से भिन्न, जहाँ प्रदाता पैसा देने पर किसी लाभ की अपेक्षा नहीं करता है, शुल्क का भुगतान एक सेवा के प्रावधान को सूचित करता है |

मूल शुल्क वहाँ इस्तेमाल होता है जहाँ पर सेवा के लाभभोगी का निर्धारण करना हो और नियमत सेवा का शुल्क आवेशित करना हो जैसे की पानी |

मात्रानुपाती शुल्क वहाँ इस्तेमाल होता है जहाँ पर लाभभोगी को एक परिमित विशेषता की सेवा के लिए एक निश्चित दर आवेशित होता है जैसे कि एक जेर्री कैन पानी का निश्चित मूल्य होता है, और हस्पताल की सेवा का निश्चित दाम होता है | यह उसी तरह से है जैसे की किसी वस्तु की बिक्री करना, परन्तु यह बिक्री अधिकतर लाभ के लिए नहीं होती है, पर संगठन के अन्य निधि के स्रोतों से कम दर वाला है |

समुदाय या संगठन के लिए अन्य निधि के स्रोतों के जैसे, शुल्क ईमानदारी से लगाना चाहिए, वो पारदर्शी और ज़िम्मेदार होना चाहिए, और वो सही और न्यायोचित होना चाहिए |

4.2. परियोजना का परिरूप और प्रस्ताव :

प्रदाता एजेन्सीस ज़्यादातर चाहती हैं कि निधिकरण के लिए एक औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाए, जिससे परियोजना का सुयोजित और आकल्पित होने का आभास हो | कुछ प्रदाता एजेन्सीस के उदाहरण इस तरह से हैं |

4.3 सरकारी निविष्टियाँ :

इसमें संघीय, जिला और स्थानीय सरकारी स्रोतों से आंशिक निधिकरण शामिल है | इन स्रोतों में जिला विकास समिति की भागीदारी भी हो सकती है |

इस स्रोत के प्रस्ताव में सरकार द्वारा बनाए गये आवेदन के विभिन्न कार्यक्रमों का पालन करना आवश्यक है |

4.4 गैर सरकारी संगठन (एन. जी. ओ'स) :

इन में यह सब शामिल हैं - स्थानीय सामुदायिक संगठन, चर्च, अंतराष्ट्रीय एन. जी. ओ'स और अन्य एजेन्सीस, समूह या संगठन जो सरकारी नहीं हैं |

व्यापारिक संगठनों के मुक़ाबले में यह संगठन लाभ के लिए नहीं हैं | एन. जी. ओ'स से निधि प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव लिखने में निपुणता उपयोगी है |

4.5 राजदूत और उच्च नियुक्त कार्यालय:

राजदूतों के कार्यालय में लघु परियोजना निधि ( जैसे केनेडा फंड, जो केनेडा के उच्च नियुक्त के पास है, नीदरलेंड का छोटी परियोजनाओं का दफ़्तर ) होती है जो एन. जी. ओ और सी. बी. ओ. को उपलब्ध है | मार्ग दर्शक के रूप में हमें यह याद रखना चाहिए की हम खुद समुदाय के लिए यह निधि प्राप्त ना करें, बल्कि हम समुदाय के नेताओं को इनके बारे में बतायें और प्रस्ताव लिखने का प्रशिक्षण दें ताकि वह खुद निधि प्राप्त कर सकें |

ज़्यादा से ज़्यादा अमीर देशों की सरकारें स्थानीय, लघु सामुदायिक परियोजनाओं के लिए निधि अलग से रख देती है | आप अपनी शहर या प्रमुख शहर में जितनी भी विभिन्न देशों के राजदूतों के कार्यालय हैं, वहाँ से इन लघु परियोजना निधि प्राप्त करने की सूचना प्राप्त कर सकते हैं |

5. प्रभावशाली प्रस्ताव लिखने की तकनीकें :

दिशा निर्देशों और प्रशिक्षण वित्तरणों को मिलाकर इस शृंखला में कई दस्तावेज़ हैं, जो बताते हैं कि एक प्रभावशाली प्रस्ताव कैसे लिखें | यहाँ पर ज़ोर प्रभावशाली पर है क्यूंकी एक सुन्दर (मतलब देखने में आकर्षक और शिष्ट ) प्रस्ताव जब मनचाहा प्रभाव (यानी कि निधि अर्जन करना ) नहीं प्राप्त कर सकता तो वो बेकार है चाहे वो कितना ही सुन्दर क्यूँ ना हो |

जब भी परियोजना की योजना बनती है , तो हर बार सब से सलाह करके एक नया प्रस्ताव बनना चाहिए | कभी भी किसी पुराने या प्रतिरूप प्रस्ताव की नकल मत कीजिए, ऐसा करना आलस्य और मानसिक निर्भरता को बढ़ावा देता है |

प्रस्ताव का नक्शा एक तार्किक क्रम का पालन करता है, जहाँ हर पाठ पिछले पाठ से मेल खाता है, और शूरू से लेकर अंत तक एक ही विवाद के क्रम में चलता है | विस्तृत सूचनायें जो इस विवाद के क्रम को तोड़ती हैं उन्हे अतिरिक्त विषयों में डाल देना चाहिए | उसका नक्शा इस तरह से होना चाहिए :

समस्या (भूमिका )
समाधान ( लक्ष्य )
उद्देश्य (निश्चित, प्रमाण योग्य)
संसाधन ( संभवनीय, वास्तविक )
कार्यनितियाँ (बहुत सारी की सूची बनाकर किसी एक को चुनना )
निगरानी ( प्रगती आँकना )
सूचना (प्रगती संचारित करना )
संक्षेप ( सारांश ) ( पहले डालना )
अतिरिक्त विषय ( विस्तृत सूचना, आयव्ययपत्र , सूचियाँ )


देखिए प्रस्ताव और, प्रस्ताव के वितरण, ऊपर सिर्फ़ सामान्य दिशा निर्देश दिए गये हैं, प्रस्ताव की विस्तृत सूचना अलग हो सकती है | कुछ प्रदाता एजेन्सीस की अपनी विशेष आवश्यकतायें और संरूप होते हैं जिनका पालन करना पड़ता है | यह बहुत ज़रूरी है की हर पाठ एक दूसरे से संबंधित हो, और समस्त विशय एक लंबे वाद विवाद के रूप में चलता रहना चाहिए |

निष्कर्ष :

समुदायों को अपनी सामुदायिक परियोजना (आर्थिक संसाधनों का हिसाब मिलाकर) की योजना और कार्यान्वित करने में हम चाहे जैसे मर्ज़ी कार्यों से उनकी मदद और प्रोत्साहन करें, परंतु हमें निमनलिखित को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए और अपने कार्यों में इनका उपयोग करें :

  • सामान्य लक्ष्यों ( निर्भरता को कम करना ) को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए और उनको पूरा करने का प्रयास करना चाहिए ;
  • मार्ग दर्शक, सुझाना, प्रशिक्षण, प्रोत्साहन देना, सराहना, सूचना देना; और
  • वचन मत दो, प्रबंध मत करो और आदेश मत दो |

सामुदायिक परियोजना के वित्तपोषण की लागत का हिसाब सही और उचित होना चाहिए, और अनुमान जब भी लगायें तो उनके हिसाब में गैर आर्थिक सामुदायिक दान का अनादर ना करें |

जब कोई समुदाय किसी सामुदायिक परियोजना की शुरुआत करता है, तो हमें उन्हे अनेक ब्राह्वा संसाधनों को पहचानने में ( जिससे किसी एक प्रदाता पर निर्भरता ना हो) और अनेक आंतरिक संसाधनों (जिनका हमें एहसास अक्सर नहीं होता है ) को पहचानने और इस्तेमाल करने के लिए बढ़ावा देना चाहिए |

एक सामुदायिक परियोजना के लिए संसाधन प्राप्त करना बहुत ही आदरणीय और माननीय ज़िम्मेदारी है, इसे पूरे उत्साह, ईमानदारी और आत्मविश्वास के साथ निभाइए |

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
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आखरी अपडेट: २१.०८.२०११

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