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निरीक्षण के परे; मूल्यांकन

उपलब्धियों का मूल्यांकन

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

अनुवादक निर्मला रामकृष्णन


कार्यशाला पुस्तिका

निरीक्षण और मूल्यांकन में कई अंतर हैं; मगर उनमें काफ़ी समानताएँ भी हैं

मूल्यांकन का आशय:

मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिससे एक परियोजना की उपलब्धियों का आंकलन किया जाता है - मुख्यतः आयोजित कार्यक्रमों और समग्र लक्ष्यों के दृष्टिकोण से. इसमे आंकलन और जाँच किया जाता है, और इस लिए यह निरीक्षण से अलग है (निरीक्षण में परियोजना को ध्यान से देखा जाता है, और इसका सिर्फ़ विवरण किया जाता है).

मूल्यांकन का उद्धेश्य:

मूल्यांकन द्वारा एक परियोजना को अपने लक्ष्यों तक पहुँचने से रोकने वाले अड़चन और बाध्यताओं का पता चलता है और इस लिए यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण है. इसके बाद उन अड़चनों को सुलझाने के उपाय निकाले जा सकते है और उनके उपयोग से आगे बढ़ सकते हैं.

मूल्यांकन से परियोजना के आयोजन और कार्यान्वयन करनेवाले समाज सेवक, परियोजना के प्रत्यक्ष और परोक्ष हिताधिकारियों को मिलने वाले लाभ और लागत का, अनुमान लगा सकते हैं. उदाहरण के लिए, एक झरने या तालाब के संरक्षण की परियोजना का मूल्याणाक्न करने से पता चलता है कि पानी यहाँ से भरकर उसका उपयोग करनेवालों के लिए यह लाभदायक है, लेकिन जिनका ज़मीन इसके लिए बेकार होता है और जिनके फसल पानी इक्खट्टा होने से नष्ट होते हैं, उनके लिए यह लागत है.

एक परियोजना को चलाने के अनुभव से शिक्षा प्राप्त करने के लिए उस परियोजना का मूल्यांकन करना ज़रूरी हा. मूल्यांकन के द्वारा मिली इस शिक्षा को समाज के अन्य परियोजनाओं के आयोजन में उपयोग किया जा सकता है.

अंत में, मूल्यांकन के द्वारा हम यह जान सकते हैं कि एक परियोजना और उसके कार्यक्रम उनके अपेक्षित लक्ष्यों में किस हद तक सफल हुए हैं.

मूल्यांकन की प्रक्रिया:

मूल्यांकन 3 स्तर पर किया जाना चाहिए. परियोजना के कार्यान्वयन के 1) पहले 2) दौरान और, 3) पश्चात

परियोजना के पहले मूल्यांकन इन कारणों के लिए ज़रूरी है:

  • इस परियोजना के परिणाम और प्रभाव निर्धारित करने के लिए, जो समाज को एक समयावधि के लिए प्राप्त होंगे;
  • परियोजना के किस विकल्प को अंत में चुनना है - यह फ़ैसला करने के लिए; और
  • परियोजना को कैसे चलना है - इन फ़ैसलों के लिए.

परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान: मूल्यांकन एक निरंतर प्रक्रिया होना चाहिए और यह परियोजना के कार्यान्वयन के सभी कार्यों में किया जाना चाहिए. इससे आयोजन एवं कार्यान्वयन करने वाले समाज सेवकों को बदलते परिस्थितियों के अनुसार परियोजना के रणनीतियों का आंकलन करने का मौका मिलता है, ताकि निश्चित लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है.

परियोजना के समाप्त होने के पश्चात: यह परियोजना के आयोजन और कार्यान्वयन, और उसके परिणामों का पुनरीक्षण करने का मौका है. इससे इन कार्यों में सहायता मिलती है:

  • परियोजना के कार्यान्वयन में स्वाभाविक अड़चनों और बाध्यताओं का पता चलता है;
  • परियोजना के यथार्थ फ़ायदों और हिताधिकारियों की सही संख्या का आंकलन किया जा सकता है;
  • परियोजना के शक्तियों को जानकर, इसे दोहराया जा सकता है; और
  • परियोजना निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने में किस हद तक सफल हुआ, यह निर्धारित किया जा सकता है.
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समाज को विवरण देना:


समाज को विवरण देना

© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: २०.०७.२०११

 मुख्य पृष्ट

 निरीक्षण और मूल्यांकन