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निरीक्षण, आयोजन और कार्यान्वयन

निरीक्षण को परियोजना के हर स्तर पर समाहित करना

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

अनुवादक निर्मला रामकृष्णन


कार्यशाला पुस्तिका

निरीक्षण हर परियोजना का, उसके आरंभ से समाप्ति तक, एक अनिवार्य अंग है.

हर परियोजना में कई संसाधनों का निवेश करके कुछ समस्याओं का हल ढूँढा जाता है - यह एक निश्चित समय और स्थान पर होता है. यह संसाधन हैं - समय, धन या पूंजी, सामग्री और मानव क्षमता. एक परियोजना कई स्तर से गुज़रकर ही अपने लक्ष्यों तक पहुँचती है. निरीक्षण हर एक स्तर में होना चाहिए और यह हर स्तर के साथ समाहित होना चाहिए.

एक परियोजना के 3 बुनियादी स्तर या चरण यह हैं:
  • आयोजन (प्लॅनिंग) (परिस्थिति का विश्लेक्शण करना, समस्या को पहचानना, लक्ष्यों का निर्धारण करना, रणनीति बनाना, कार्यक्रम रूपित करना एवं बजट बनाना);
  • कार्यान्वयन (संघटन, संसाधनों का प्रयोग और नियंत्रण और परियोजना का प्रचालन); तथा
  • मूल्यांकन.

परियोजना में हिस्सेदार हर व्यक्ति या संस्था को परियोजना का निरीक्षण करना चाहिए. एक परियोजना को सक्षम ढंग से चलाने के लिए, यह बेहत ज़रूरी है कि जो लोग इसके आयोजन और कार्यान्वयन से संबद्ध हैं, वे शुरू से ही परियोजना के सभी सम्भन्धित स्तरों के लिए तैय्यरी कर लें.

"समाज सेवक की विवरण पुस्तिका" में हमने कहा कि आयोजन और संचालन के महत्वपूर्ण सवाल यह हैं: (1) हमें क्या चाहिए? (2) हमारे पास क्या है? (3) हमारे पास जो है, उसका हम किस तरह से प्रयोग कर सकते हैं जिससे हमें जो चाहिए उसे हम प्राप्त कर सकें? और (4) ऐसा करने पर क्या हो सकता है? इन सवालों को थोड़ा सा बदल भी सकते हैं.

तो सवाल ऐसे हो जाते हैं:

हम कहाँ हैं?
हमें कहाँ जाना है?
हम वहाँ कैसे पहुँच सकते हैं?
वहाँ पहुँचने से क्या होता है?

परिस्थिति विश्लेषण और समस्या की पहचान:

यहाँ हमें यह सवाल पूछना है: हम कहाँ हैं (हमारे पास क्या है?)

परिस्थिति विश्लेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम एक समाज या समुदाय के सामान्य विशिष्टताओं और समस्याओं को पहचानते हैं. यह समाज के कुछ विशेष समूह के बारे में हो सकता है - उदाहरण के लिए, महिलाएँ, युवक, मज़दूर, कारीगर, किसान, व्यापारी या विकलांग व्यक्ति.

इस प्रक्रिया में हम वह सब जानकारी इक्खट्टा करते हैं जिसके द्वारा हम एक समुदाय को और उसके लोगों को समझ सकते हैं. इस समुदाय में इसके पहले क्या हुआ, अब क्या हो रहा है और आयेज क्या होने की संभावना है - हम इसी समुदाय के अनुभव से यह सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

एक समुदाय को समझने के लिए जो जानकारी प्राप्त किया जाता है, उनमे ये शामिल हैं:
  • जनता की विशिष्ताएँ (उदाहरण के लिए लिंग, उम्र, जाति, धर्म और परिवार की संख्या);
  • राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना (उदाहरण के लिए सामूहिक परिषद और स्थानीय समिति);
  • व्यवसाय या आर्थिक कार्य (कृषि, व्यापार, मछली पकड़ना);
  • सांस्कृतिक परंपरा (उत्तराधिकार, कुल या परिवार संरचना), परिवर्तन (विवाह और अंत्येष्टि के रिवाज़, ख़तने का रिवाज़);
  • स्थानीय, ज़िल्ला और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के और सामूहिक संस्थाओं (NGOs) के जारी कार्यक्रम एवं परियोजनाएँ;
  • सामाजिक-आर्थिक मूलभूत सुविधाएँ या सामुदायिक सुविधाएँ (जैसे विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, सड़क); और
  • सामूहिक संस्थाएँ (बचत और उधार व्यवस्था या बैंक, महिला समाज, स्वयंसेवी संघटन इत्यादि) और उनके कार्यक्रम.

परिस्थिति विश्लेषण और समस्या को समझने के लिए जो जानकारी एकत्रित किया जाता है, वह कई तरीकों से सामूहिक नेताओं के सहभागिता द्वारा किया जाना चाहिए. इससे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि समाज और उसकी समस्याओं के बारे में प्राप्त यह जानकारी सही, विश्‍वसनीय और व्यापक है.

कुछ ऐसे तरीके यहाँ दिए गये हैं:

  • दस्तावेज़ों की समीक्षा;
  • सर्वेक्षण;
  • लोगों से अलग-अलग तौर पर, विशिष्ट समूह के साथ पूरे समुदाय के साथ चर्चाएँ;
  • भेंट;
  • ध्यान से देखना;
  • लोगों को ध्यान से सुनना;
  • विचार विमर्श;
  • अनौपचारिक बातचीत;
  • समाज के संसाधन, सेवाओं और सुधार के अवसरों की सूची;
  • समाज के मार्ग और नक्शे को समझना; और
  • समस्या तरू (समस्याओं को एक तरू के रूप में नियमित करना).

एक समस्या का हल निकालने की हर कोशिश के पहले स्थिति विश्लेषण करना बहुत ही ज़रूरी है, क्योंकि:

  • यह समाज के गतिविधियों को समझने का अवसर देता है;
  • यह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थितियों को स्पष्ट करने में मदद करता है;
  • यह हमारे परियोजना के सभी कार्यक्रमों में जनता की सहभागिता का पहला अवसर है;
  • इसके द्वारा सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान को निर्धारित कर सकते हैं; और
  • इसके द्वारा लक्ष्य बनाने, योजना तैयार करने और कार्यान्वयन करने के लिए ज़रूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

स्थिति विश्लेषण लगातार किया जाना चाहिए ताकि परियोजना के कार्यान्वयन, निरीक्षण और फिर से योजना बनाने के लिए जो अतिरिक्त जानकारी चाहिए, वह उपलब्ध हो. स्थिति विश्लेषण और समस्या की पहचान का हर स्तर पर निरीक्षण किया जाना चाहिए - इससे यह सुनिश्चित होता है कि समाज और उसकी समस्याओं के बारे में जो जानकारी प्राप्त है वह सही और संषोदित है.

चूँकि इस प्रक्रिया के हर पहलू और स्तर पर निरीक्षण को समाहित किया जाना ज़रूरी है, अभी इस हर एक पहलू को गौर से देखें और यह समझें कि इनका निरीक्षण करने के लिए क्या ज़रूरी है.

लक्ष्य और उद्धेश्य निर्धारित करना:

लक्ष्य निर्धारण में यह सवाल पूछा जाता है - "हमें कहाँ जाना है"? (हमें क्या चाहिए?).

परियोजना के कार्यान्वयन में लगने के पहले, आयोजन और कार्यान्वयन करने वाले लोग और हिताधिकारियों को एक साथ इस परियोजना के लक्ष्य और उद्धेश्य निर्धारित कर लेना चाहिए. सहभागिता के साथ यह करने के तरीकों के लिए विचार विमर्श देखें.

लक्ष्य, एक समस्या का समाधान करने के लिए क्या किया जाए, इसका एक व्यापक कथन है. लक्ष्य यह बताता है कि एक परियोजना से क्या उम्मीद रखी जा सकती है. लक्ष्य एक समस्या से उभरता है और परियोजना के अंतिम मंज़िल की ओर संकेत करता है. उद्धेश्य एक लक्ष्य के सीमित भाग हैं और प्राप्त किए जाने के लिए, इन्हें निश्चित और स्पष्ट होना ज़रूरी है.

उद्धेश्य "SMART" होने चाहिए. यानि:

Specific (निश्चित): क्या, कहाँ, कब और कैसे परिस्थिति में बदलाव लाया जाएगा - यह स्पष्ट करना है;
Measurable (परिमेय या मापने योग्य): लक्ष्य और लाभ को परिमाणित किया जा सकता है;
Achievable (साध्य): उद्धेश्य प्राप्त किए जा सकते हैं
     (समाज के पास कितने संसाधन और क्षमता है, इस जानकारी के साथ)
Realistic (यथार्थवादी): उद्धेश्य में विवरित लाभ के स्तर को पहुँचा जा सकता है; और
Time bound (समयबद्ध)कितने समय में हर उद्धेश्य पूरा होगा, यह व्यक्त हुआ है.

एक परियोजना के उद्धेश्यों को प्राप्त करने के लिए, समाज के पास क्या संसाधन हैं और बाहरी स्रोत से कैसे संसाधन मिल सकते हैं - यह निर्धारित करना ज़रूरी है. अप्रत्यक्ष संसाधन प्रकट करना देखें.

परियोजना के आयोजक, कार्यान्वयन करने वाले और सामूहिक नेताओं को यह निर्धारित करना है कि परियोजना को चलाते समय क्या अड़चनें आ सकती है और इनका कैसे मुकाबला किया जाना चाहिए. अड़चनों और अनुकूल शक्तियों की हद के आधार पर यह निर्णय किया जा सकता है कि यह परियोजना शुरू करनी चाहिए या नहीं.

लक्ष्य और उद्धेश्य एक परियोजना का निरीक्षण और मूल्यांकन करने के आधार हैं. परियोजना की सफलता और हार का आँकड़ा लगाने के ये मानदंड हैं.

संरचना और रणनीति तैयार करना:

यहाँ तीसरा महत्वपूर्ण सवाल पूछा जा रहा है - "वहाँ कैसे पहुँचें?" (हमारे पास जो है, उसकी मदद से हमें जो चाहिए वह कैसे प्राप्त करें?).

परियोजना के आयोजक और कार्यान्वयन करने वालों (समूह और सहायक शक्तियों) को यह निर्णय करना है कि वह इस परियोजना को कैसे अमल में लाने वाले हैं - यह रणनीति है. रणनीति पर सहमत होने के लिए यह ज़रूरी है कि परियोजना को चलाने के लिए आवश्यक सभी मद (निवेश) को निर्धारित कर लें और निश्चित कर लें कि कौन से अलग-अलग लोग और समूह इसमें भाग लेने वालें हैं और उनके क्या भूमिकाएँ हैं. इन समूह और व्यक्तियों को - जो परियोजना में विशेष भूमिका निभाते हैं - उन्हे "कर्ता" कहते हैं.

इन रणनीति और संरचना को बनाने के लिए ये सब करना ज़रूरी है:

  • कार्यान्वयन के दौरान जो कार्य करने हैं, उसके बारे में बात करें और सहमति प्राप्त करें;
  • समूह के अंदर और बाहर विविध कर्ताओं को निर्धारित करना; और
  • परियोजना के कार्यान्वयन के लिए ज़रूरी समान और खर्च को निर्धारित करना और उनका वितरण करना.

अपने निर्णय सही हैं, यह निर्धारित कर लेने के बाद प्रबंधक को सभी कर्ताओं से बात करनी चाहिए और परियोजना का कार्यान्वयन कैसे किया जाए - इस बात में सहमति प्राप्त कर लेनी चाहिए. इसे कार्य सूची की योजना कहते हैं. (हमें जो चाहिए उसे कैसे प्राप्त करें?) कार्य सूची आवश्यक कार्यों का विवरण है जिसमे इन कार्यों को कई स्तर पर निर्दिष्ट किया गया है और इन्हे किस समय पर संपन्न करना है, इसका अनुमान भी लगाया गया है.

एक अच्छे कार्य सूची को बनाने के लिए कार्यान्वयन करने वालों को यह सब करना है:

  • परियोजना को अमल में लाने के लिए ज़रूरी सभी कार्यों की सूची बनाएँ;
  • इन कार्यों को उस क्रम में लगाएँ जिस क्रम में इन्हे अमल लाना है;
  • कर्ताओं और उनको नियत उतरदायित्व को दिखाएँ; और
  • हर कार्य को पूरा करने के समय को दिखाएँ.

कार्य सूची परियोजना के कार्यान्वयन के लिए एक मार्गदर्शक है और इसके आधार पर परियोजना का निरीक्षण किया जा सकता है. अतः यह इन सब में मदद करता है:

  • परियोजना को समय पर पूरा करने में;
  • सही कार्य सही क्रम में करने में;
  • यह पहचानने में कि कौन किस कार्य के ज़िम्मेदार हैं; और
  • यह निर्धारित करने में कि परियोजना का कार्यान्वयन कब शुरू की जाए.

आयोजन और कार्यान्वयन करने वालों को इस बात पर सहमत होना है कि परियोजना के निरीक्षण संकेतक क्या होंगे. निरीक्षण संकेतक परिमाणात्मक और गुणात्मक लक्षण (कसौटी) हैं जो परियोजना के कार्यों और उद्धेश्यों की उपलब्धि का मूल्यांकन करते हैं. हर कार्य के उद्धेश्य किस हद तक उपलब्ध हुए हैं - यह संकेतक दिखाते हैं. निरीक्षण संकेतक सुस्पष्ट, उपयुक्त और तटस्थ भाव से सत्यापनीय होने चाहिए.

निरीक्षण संकेतक चार किस्म के होते हैं - वे हैं:

  • निवेश (इनपुट) संकेतक: परियोजना के अंदर क्या जाता है इसका विवरण करते हैं (उदाहरण के लिए, कितने ईंट निर्माण स्थान पर लाए गये हैं या कितना पैसा खर्च हुआ है);
  • निर्गम (आउटपुट) संकेतक: परियोजना कार्य को विवरित करते हैं (जैसे कि कितनी कक्षाओं का निर्माण हुआ है);
  • नतीजा संकेतक: परियोजना या कार्य के परिणाम का विवरण है (जैसे कितने विद्यार्थी पाटशाला आ रहे हैं); और
  • प्रभाव संकेतक: समूह के परिस्थिति में बदलाव का मूल्यांकन करता है (जैसे समूह में आशिक्षता घटना).

संरचना और रणनीति को लिखित करने से परियोजना के निरीक्षण में सहायता मिलती है क्योंकि परियोजना के कार्यान्वयन में क्या होने वाला है यह स्पष्ट हो जाता है. आयोजन को यह ज़ाहिर करना है कि किसका निरीक्षण होना चाहिए, किसे निरीक्षण करना चाहिए और यह निरीक्षण कैसे किया जाना चाहिए.

कार्यान्वयन:

कार्यान्वयन का निरक्षण चौथा महत्वपूर्ण सवाल पूछता है - "ऐसा करने पर क्या होगा?"

कार्यान्वयन वह चरण है जब आयोजित सभी कार्यों को पूरा किया जाता है. परियोजना के कार्यान्वयन के पहले, कार्यान्वयन करने वालों को (परियोजना समिति या प्रबंधक के नेतृत्व में) अपने शक्तियों और कमज़ोरियों (आंतरिक ताकतें), अवसर और चेतावनी (बाहरी ताकतें) को पहचान लेना चाहिए.

शक्ति और अवसर सकारात्मक ताकतें हैं और इनका परियोजना में सही और पूरा उपयोग किया जाना चाहिए. कमज़ोरी और चेतावनी परियोजना के कार्यान्वयन में बाधा डालने वाले विघ्न हैं. परियोजना को चलाने वालों को इन पर काबू पाने के उपाय सोच लेनी चाहिए.

कार्यान्वयन के इस चरण में परियोजना को कार्यक्रम के अनुसार सही समय पर पूरा करने के लिए निरीक्षण महत्वपूर्ण है. यह एक सतत प्रक्रिया है और इसे परियोजना के शुरू होने से पहले से ही स्थापित किया जाना चाहिए.

निरीक्षण के कार्यों को भी कार्य सूची में डालना है और इसमे सभी हिस्सेदारों को शामिल करना चाहिए. अगर कोई भी कार्य सही तरीके से नही जा रहे हैं, तो समस्या को पहचानने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि उन्हे सुलझा सकें.

सभी कार्य तय किए हुए कार्यक्रम के अनुसार पूरा हो, इसके लिए निरीक्षण ज़रूरी है. इसके द्वारा कार्यान्वयन करने वालों को अपने उद्धेश्यों की उपलब्धि को मापने में सहायता मिलती है. यह इस ज्ञान के आधार पर है कि परियोजना को जिस प्रक्रिया से चलाया जाता है, इसका असर उसके उपयोग, परिचालन और अनुरक्षण पर होता है.

परियोजना का कार्यान्वयन संतोषजनक रूप से हुआ है या नहीं यह जानने के लिए कार्यान्वयन करने वालों को अपने आप से ये सवाल पूछना चाहिए - "कितने अच्छे से वहाँ पहुँचे?" (पहुँचने पर क्या करें?)

संबंध का सारांश:

यहाँ निरीक्षण, आयोजन और कार्यान्वयन में जो गहरा संबंध है, वह दिखाया गया है.
यह प्रमाणित करता है कि:
  • आयोजन उन तरीकों का विवरण करता है जिनके द्वारा कार्यान्वयन और निरीक्षण किया जा सके;
  • परियोजना की कार्य सूची कार्यान्वयन और निरीक्षण की मार्गदर्शक है; और
  • निरीक्षण कार्यान्वयन और परियोजना के आयोजन के लिए ज़रूरी जानकारी प्रधान करता है.

आयोजन, कार्यान्वयन और निरीक्षण में एक गहरा और एक दूसरे को मज़बूत बनाने वाला (मददगार) रिश्ता है. तीनों में एक को अलग से नहीं किया जा सकता है और तीनों में एक को करते समय बाकी दोनों को ध्यान में रखना ज़रूरी हो जाता है.

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समाज सेवा और आयोजन का निरीक्षण:


समाज सेवा और आयोजन का निरीक्षण

© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: २०.०७.२०११

 मुख्य पृष्ट

 निरीक्षण और मूल्यांकन