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सबके सहयोग से लोगों का संचालन

व्यक्ति सिर्फ़ आर्थिक साधन नहीं हैं

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

translated by Parveen Rattan


प्रशिक्षणलेख

प्रशंसा पर ज़ोर, और आलोचना को दुरुपयोगी मान कर उसकी अवहेलना करना, अच्छे और सहयोगी संचालन का एक मूल सूत्र है

समाज सेवकों (जो अपने समय और परिश्रम का, बिना किसी वेतन के, समाज की योजनाओं को योगदान देते हैं) के संचालन में कई ऐसे अनुभव आते हैं जो कि किसी भी संस्था के कर्मचारियों के लिये भी उपयुक्त हो सकते हैं. कभी भी ऐसा मत सोचिये कि सिर्फ़ पैसे से ही लोगों से उत्तम काम लिया जा सकता है.

हमें याद रखना चाहिये कि यद्यपि लोगों का परिश्रम, उनकी सोच, उनकी ऊर्जा, सभी किसी भी कार्य के लिये मूल्यवान साधन हैं , फिर भी वही लोग मुख्य कारण हैं जिनके लिये हम सुविधायें बनाना चाहते हैं, जिनके लिये हम प्रय्त्न करते हैं कि उनका सशक्तिकरण हो, और वह खुद ही अपनी प्रगति और नियति का निश्चय करें. जब हम लोगों को समाज के कार्यों में लगाना चाहते हैं, तो वह अपना पूरा परिश्रम तभी लगा सकेंगे अगर वह अपने लिये निम्न भावनाओं के भार के नीचे न दबे हों.

जो लोग अपने प्रति संतुष्ट होते हैं, अपने से खुश होते हैं, वह अक्सर अच्छा काम करते हैं. एक अच्छे शिक्षक की निशानी यही है कि लोगों का संयोजन करते समय वह कोशिश करता है कि ऐसे तरीकों का उपयोग हो जिससे लोगों में अपने प्रति खुशहाली की भावना पैदा हो.

जब आप कुछ अच्छे नतीजे की अपेक्षा करते हैं, और गलत हो जाता है, तो संभव है कि स्वाभाविक रूप से ही, आप तुरंत लोगों की आलोचना करें. किन्तु आपने देखा होगा, कि लोग सुधरने के लिये तैय्यार तब होते हैं जब उनकी प्रशंसा की जाय, उन्हें मान दिया जाय, न कि जब उनकी आलोचना की जाय. तब उन्हें दुख होता है.

लोगों को अपने सामर्थ्य तक पहुचने में मदद कीजिये; जब कुछ ठीक करें उसका श्रेय दीजिये. दूसरे शब्दों में अच्छे काम को नज़रन्दाज़ न करें, उसे पहचाने, और आप पायेंगे कि लोग और भी अधिक परिश्रम करेंगे, और सुधरने की कोशिश करेंगे.

जब उनकी भूलों को आप नज़रन्दाज़ करेंगे, खुद-ब-खुद वह उन्हें सुधारने की कोशिश करेंगे. जब उनकी भूलों को आप नज़रन्दाज़ करेंगे, खुद-ब-खुद वह उन्हें सुधारने की कोशिश करेंगे. अन्य यंत्रों की तुलना में मनुष्य को न तो उतना तोड़ा-मोड़ा जा सकता है ओर न ही वह उतना विश्वस्नीय होता है. लोगों के साथ काम करने के लिये अधिक बुद्दिमत्ता, अधिक ऊर्जा, अधिक अनुभव की ज़रूरत होती है.

अगर हालात में स्थायी रूप से सुधार लाना हो, तो आपका समय, ध्यान, और रुचि अगर चीज़ों की जगह लोगों में हो तो बहुत लाभ होगा. सबसे मूल्यवान वह समय है जो हम लोगों में लगाते, जमा करते हैं.

ध्यान दीजिये "जमा." इसका अर्थ हुआ कि हम अपने समय ओर प्रय्त्न को सिर्फ़ "खर्च नही कर रहे, बेकार नही कर रहे", हम उसे "जमा कर रहे हैं," ओर इसका मतलब हुआ कि इससे हम कुछ ओर भी मूल्यवान धरोहर पा सकते हैं.

बहुत आसानी से हम यह देख कर हताश हो सकते हैं कि लोग क्या क्या नही कर सकते. अक्सर हम लोगों को दो श्रेणियों में बांट देते हैं; जीतने वाले ओर हारने वाले.

अगर हम ऐसा करें तो हम उन लोगों का सामर्थ्य खो देते हैं जिन्हे हम "हारने वाले" करार कर देते हैं. सभी में जीतने का सामर्थ्य है; कुछ लोग ’हारे हुए’ का चोला पहने होते हैं; उनके इस रूप से आप धोखा न खायें.

अगर हम थोड़ा समय ऐसे लोगों की मदद में लगायें, उन्हें किसी कार्य में जीत की महक दें, तो हम देखेंगे कि इससे अनेक फायदे होंगे. कभी कभी अपने को खुद से दूर करके, खुद अपने ही चाल चलन को देखना बहुत लाभदायक होता है. हम पायेंगे कि हम भी मनुष्य ही हैं. हम सिर्फ़ अपना चाल चलन ही नही, हम वह हैं जो इस चाल चलन का निर्णायक है.

अगर हम ओरों का संचालन करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें उसका संचालन करना होगा जो हमारे सबसे करीब है - खुद हम. स्वंय-संचालन ओरॊं के संचालन से पहले आता है.

सबकी इच्छायें होती हैं, ज़रूरतें होती हैं. जब वह उन्हे पूरा करने का प्रयत्न करते हैं तो उसे लक्ष्य कहते हैं. लक्ष्य से व्यवहार शुरु होता है; नतीजों से व्यवहार बना रहता है. इच्छा पूरी करने के लिये लक्ष्य की खोज से काम का आरंभ हो सकता है, पर उस काम के नतीजे पर निर्भर होगा कि लक्ष्य को पाने के लिये, कार्य वैसे ही चलता रहे.

संचालन और प्रयोजन का आरंभ मोटे तौर पर लक्ष्य निर्णय करने से होता है (सामान्य रूप में) या फिर किसी (खास रूप से). यह मत भूलें कि सिर्फ़ लक्ष्य का निर्णय करना काफी नही है. हमें ऐसे काम करने पड़ेंगे जिनसे हम अपने निशाने की तरफ बढ़ें.

जब लोग हताश हो जाते हैं तो उनका परिश्रम कम हो जाता है. आगे बढने के लिये उन्हें प्रेरणा की ज़रूरत होती है.

उन्हें कुछ नतीजे देखने की चाह होती है जिससे उन्हे मालूम हो कि वह सही दिशा में जा रहे हैं. सिर्फ़ सफ़ल नतीजों से ही लोग प्रेरित होते हैं. असफ़ल नतीजों से उनका परिश्रम और भी कम हो जाता है.

अधिकतर लोग तब और भी अच्छा काम करते हैं जब उनका निरीक्षण होता है. वह खुश होते हैं कि उनके काम में किसी को रुचि है, और वह दिखाना चाहते हैं कि वह अच्छा काम करते हैं. इसीलिये जब भी कोई संचालक या प्रबंधक आता है, तो सब ठीक से काम करते हैं vपर जब संचालक नहीं होता तब भी काम क्या उतना ही अच्छा होता है? एक संचालक की भूमिका में आपके लिये ज़रूरी यह नहीं कि आप के होते हुए काम कैसे होता है, पर ज़रूरी है जानना कि आप की गैर हाजरी में काम कैसे होता है.

एक अच्छे संचालक की निशानी है कि उसके कर्मचारी, चाहे स्वंयसेवक हों या वेतन पर, (दोनों के लिये हॊ यह सिद्धान्त लागू होता है), हमेशा ही अच्छा काम करते हैं, चाहे उनका निरीक्षण हो या न हो. किसी को भी आलोचना अच्छी नहीं लगती, और अगर उनसे गलती हो जाय तो वह नहीं चाहते कि उन्हें छोटा दिखाया जाय.

एक सफ़ल प्रबंधक जल्दी ही समझ जाता है कि कैसे जब कोई भूल करता है वह उससे सीखे और अपने कार्य को सुधारे जिससे दुबारा वही गलती न हो. जब कोई संचालक अपनी आलोचना का किसी प्रशंसा से अंत करता है, तब लोग अपने बर्ताव के बारे में सोचते हैं, संचालक के बर्ताव के विषय में नही.

सब जानना चाहते हैं कि वह कैसे कर रहे हैं. ऐसी जानकारी देना संचालक के लिये बहुत ही ज़रूरी है. ऐसी जानकारी पाकर, लोग प्रेरित होते हैं और वह और भी अधिक परिश्रम करते हैं और लगातार उसे कायम रखते हैं.

प्रभावशाली नतीजे निश्चल नहीं होते, एक क्रिया की तरह होते हैं जो उभरते रहते हैं, विकसित होते रहते हैं. अच्छे नतीजे मंज़िल नहीं यात्रा की तरह होते हैं. समाज की किसी योजना में संचालन के प्रयत्न को "एक आखिरी बार करना," ऐसा ही है जैसे आप कोशिश करें कि आप सदा के लिये खाना "बस एक ही बार में खा लें."

बेहतर काम करने की कोशिश करें, ऐसा ज़रूरी नही की वह पूर्ण रूप से आदर्श ही हो पहले से ही कोई कार्य बिल्कुल आदर्श रूप से हो, ऐसा ज़रूरी नही है. वह सुधारा भी जा सकता है.

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निर्णय लेने में कर्मचारियों और समाजसेवकों का सहयोग:


निर्णय लेने में कर्मचारियों और समाजसेवकों का सहयोग

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: ११.०८.२०११

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