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सहयोगी संचालन एवं सकारात्मक दृष्टिकोणजब गलती हो उसका सुधार कैसे किया जायके द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.
translated by Parveen Rattanप्रशिक्षणलेखयद्यपि जब भी कोई गलती करता है तो आलोचना स्वाभाविक है, किन्तु इससे समस्या सिर्फ़ बढ़्ती है, उसका हल नही निकलता.किसी भी संस्था के लिये, एक सकारात्मक दृष्टिकोण, समस्या को हल करने की कोशिश, अधिक उपयोगी और प्रभावशाली होती एक नकारात्मक दृष्टिकोण या समस्या खड़ी करने की तुलना में. यही सिद्धान्त समाज के सशक्तिकरण में भी लागू होता है. मुश्किलें हमेशा रहेंगी. यह ज़िन्दगी की सच्चाई है. गलती करना जीवन कि हक़ीक़त है गलती या भूल करना मनुष्य का स्वभाव है. हम सब गलती करते हैं. कुछ धार्मिक गुरु कहते हैं कि सिर्फ़ भगवान (या उस शक्ति को जिस नाम से भी हम जानें) ही सर्व-संपूर्ण है; गलती करना मनुष्य का स्वभाव है. इसका अर्थ है कि एक संचालक की भूमिका में हमें आभास होना चाहिये कि लोगों से भूलें होगी. इस सच्चाई को हमें मान कर चलना होगा. हमारा संचालन कितना प्रभावशाली है यह निर्भर करेगा कि हम इन गलतियों से कैसे पेश आते हैं. अगर गलती से हम परेशान हो जायें, या सिर्फ़ आलोचना में लग जायें तो हम गलती सुधारते नहीं हैं. उसे और बढ़ा कर देते हैं. सुधार के लिये हमें और सकारात्मक होना पड़ेगा. इसके लिये हमें गलती को पहचानते हुए भी लोगों के उपयोगी योगदान पर ज़ोर देना होगा. ऐसा करने से हम अपने समाज के लोगों का मनोबल, उनके आत्म-सम्मान और विश्वास को बढ़ाते हैं. याद रखिये, कि एक संचालक के पास सिर्फ़ एक ही साधन होता है - उसके लोग; उन्हें सशक्त बनायें. जब किसी व्यक्ति की आलोचना होती है, जब उसके योगदान को मूल्य नही दिया जाता, तो वह व्यक्ति कभी भी वफादार नही रह सकता, प्रेरित नही हो सकता, अपना पूरा परिश्रम नही दे सकता. लोग बेवकूफ नही होते. उन्हें मालूम होता है कि उनसे भूल हुई है. अगर उन्हें लगे कि फिर भी उन्हें अपने नेता का, अपने अभिभावक का साथ है तो वह और भी ज़्यादा कोशिश करेंगे. यह अच्छे संचालन का एक माना हुआ सूत्र है. इसे हम किस तरह से सहयोगी संचालन को बढ़ाने के प्रयास में ला सकते हैं? संचालन, समस्याओं को हल करने की प्रक्रिया है. अगर समस्यायें ही न हों तो संचालकों की ज़रूरत भी नही होगी. यह सबको समझाना ज़रूरी है (सिर्फ़ अपने नेता या अधिकारियों को नही) कि समस्याओं का हल सुझाना सबका कार्य है. समाजशास्त्र और संचालन के प्रशिक्षण, दोनों में ही, इस बात पर ज़ोर देना चाहिये. इसका एक तरीका है शब्दों के हेर-फेर से, जिससे समस्या को एक नई दृष्टि से देखा जा सकता है. उदाहरण के तौर पर, समस्या को एक कागज़ पर या बोर्ड पर लिख दें. फिर "समस्या" को काट दें और उसकी जगह "अवसर" लिखें. यह बहुत ही आसान तरीका है, पर इसका नतीजा बहुत ही अच्छा होता है. अधिकांश समाजसेवकों को मालूम है कि एक अच्छी कहानी, या किस्से का कितना मूल्य है. कलकत्ते की मशहूर मदर टरीसा, अपने सकारात्मक व्यवहार और दृष्टिकोण के लिये जानी-मानी थी. एक पत्रकार ने उनसे एक बार पूछा ─ आप ऐसे रहती हैं जैसे आपके पास कोई समस्या ही नही है; आप कैसे यह कर लेती हैं? "ओह, मेरे पास भी अनेक समस्याएं आती हैं," मदर टरीसा ने जवाब दिया, "पर जब भी वह आती हैं, मैं उनका नाम बदल देती हूं. मैं उन्हें उपहार कहती हूं," उन्होंने कहा. ऐसा प्रयोजन करें कि जिस व्यक्ति से भी गलती हुई है, वही उसके सुधार में भी भागीदार हो; और उसे शर्मिन्दगी बिल्कुल ना हो. अगर संचालक के रूप में हम इस प्रक्रिया में अपने लोगों का सहयोग चाहते हैं तो हमें संचालन के मूल-सूत्र अपने लोगों को भी सिखाने होंगे. इसका पहला सिद्धान्त चार मूल प्रशनों में दिया गया है, पर सकारात्मक दृष्टिकोण रखना, खास तौर से गलतियों की ओर, एक ऐसा मूल-मंत्र है जो हरेक छात्र के अंतरमन तक पंहुचना चाहिये. ––»«––अगर
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