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'العربية / al-ʿarabīyah |
तकनीक के पक्ष मके द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.
translated by Parveen Rattanप्रबन्धक के लिये नोट्ससमाज को स्वयं की जांच अथवा समीक्षा के लिये प्रेरित करनाअनुमान और अञान: कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जो सिर्फ़ किसी सार्वजनिक स्थान को बना देखना चाहते हैं. आपके कार्य की कामयाबी बहुत लोगों पर निर्भर रहती है, जैसे नेता, पत्रकार, योजना संचालक. इन्जीनियर आदि कोई भी सुविधा (जैसे पानी का नल, शौचालय, विद्यालय, दवाखाना आदि) साफ़ नज़र आते हैं, उनका चित्र (किसी नेता के साथ) लिया जा सकता है और वह ठोस होते हैं. कामयाबी का पक्का सबूत इनसे मिल सकता है. किन्तु समाज के सदस्यों को समीक्षा के लिये तैय्यार करना इसके अलावा उनमें और सामर्थ्य पैदा करना ( जैसे योजना बनाने का प्रशिक्षण, संचालन, हिसाब किताब रखना, नियन्त्रण, रिपोर्ट्स बनाना, मरम्मत करना आदि) ठोस वस्तुओं की भांति दिख नही सकते. सामर्थ्य बढ़ाने का किस तरह चित्र लिया जा सकता है ? (मुझे याद है एक बार एक राजदूतावास का सचिव बहुत नाराज़ हो गया था क्यों कि एक दान देने वाली बड़ी संस्था का कोई अधिकारी ३ दिन के दौरे पर आ रहा था, और उन ३ दिनों में कोई ऐसा कार्यक्रम नियोजित नही था जिसमे समाज के सद्स्यों की भागीदारी दिखाई दे ). योजना संयोजकों को मालूम होता है, कि चाहे योजना लेख-पत्रों में कुछ भी लिखा हो, किन्तु उनकी सफ़लता का माप करते समय यही देखा जायेगा कि उन्होने क्या ठोस साधन बनाये हैं. फिर भी सब लोग यह मान कर नही चलते कि ठोस चीज़ॆं बनाना ही सबसे ज़रूरी है. ऐसे भी खुले विचार के लोग हैं जो समझते हैं कि सामर्थ्य बढाना भी उतना ही ज़रूरी है. हो सकता है कि आपको समाज को सब कार्यों में सम्मिलित करने के तकनीक के लाभ और ज़रूरत को समझाना पडे. "हमें क्या एक कुंआ और पानी का पंप बनाना चाहिये? और फिर देखें कि वह बेकार हो गया है सिर्फ़ इसलिये कि कोई भी उसकी देखभाल और मरम्मत की ज़िम्मेदारी नही लेना चाहता ?" आप सहज पूछ सकते हैं. क्यों समय लिया जाय? अगर शुरु में थोड़ा समय समाज को मिल कर काम करने में लिया जाय (समीक्षा में, योजना चुनने में, प्रबन्ध में, नियन्त्रण में, और सामर्थ्य बढ़ाने में) तो इससे समाज के सद्स्यों में एक सामूहिक धारणा पैदा होती है "सुविधाओं पर अपनेपन "की. इससे सबमें एक भाव पैदा होता है उन्हें सही सलामत रखने का (जैसे तोड़ फोड़ और जानवरों से बचाव), ज़रूरी मरम्मत आदि करने का. इससे सभी लोग उस सुविधा का सही उपयोग भी करते हैं और उनमें लालसा भी जगती है और अधिक शिक्षण की (जैसे साफ़ सफ़ाई के मूल सूत्र और तरीके). अगर सही रूप से देखा जाय तो आप पायेंगे कि सार्वजनिक सुविधाओं को बनाये रखने के लिये, अगर समाज के सदस्यों का साथ लिया जाय तो अधिक प्रभावशाली होता है. माना इसमें अधिक समय लगता है किन्तु यह सिर्फ़ जल्दी कोई सुविधा खड़ी कर देने से बेह्तर है. दुबारा जानकारी क्यों ली जाती है? एक और पहलू जो आपको समझाना पडे़गा, वह है लक्ष्य उस सारी जानकारी का जो आप समाज का मान-चित्र बनाते समय और साधन सूची तैय्यार करते समय सम्मिलित करेंगे. कई विरोधी लोग सवाल रखेंगे कि मान-चित्र और साधन सूची की क्या ज़रूरत है, खास कर जब एक पूरा सर्वे पहले ही हो चुका है. आपको तब बताना होगा कि इसका मुख्य लक्ष्य समाज को इस कार्य का हिस्सा बनाना है इससे समाज में उत्तर्दायित्व उत्पन्न होगा और साथ ही कार्य बीच में रुकेंगे नहीं योजना बनाने वाली संस्था को जो भी लाभ हो इस जानकारी से वह द्वितीय है. फिर भी मिलकर जो भी जानकारी हो वह सर्वे द्वारा प्राप्त जानकारी को और सुधार सकती है, उसमे जोड़ सकती है. किस तरह लोगों को अपनी बात समझाई जाय? यह सब ज़रूरी बातें आप उन सब लोगों को बता सकते हैं. जो सुनने के लिये तैय्यार हों; और इसके लिये सबसे अच्छा अवसर है जब कोई सार्वजनिक सुविधा के निर्माण से संबन्धित कोई दिवस हो हो सकता है यह "धन देने का अवसर हो," जहां मुख्य दाताओं को सम्मानित किया जा रहा हो, या "कोई आधार-शिला रखी जा रही हो," या जहां कोई मुख्य अतिथि निर्माण कार्य शुरु करे, या फिर "किसी कार्य के समापन पर," जहां वहां के नेता या अन्य मुख्य अतिथि रिबन आदि काट कर सुविधा का आम जनता के लिये खुला होना घोषित करते हैं, और उसके पूर्ण होने की खुशी में उत्सव मनाते हैं. ऐसे किसी अवसर पर आप एक छोटा प्रचार पत्र बांट सकते हैं जिसमें आप बता सकते हैं कि यह सिर्फ़ एक निर्माण योजना नहीं है, किन्तु एक सामुहिक प्रयास है पूरे समाज का और उनके सामर्थ्य का (समीक्षा, प्राथमिकतायें बनाना, संयोजन का शिक्षण, देख-भाल का नियन्त्रण और प्रगति की सूचना देना). इससे थोड़ी बड़ी, दो पेज तक की सूचना आप पत्रकारों के लिये तैय्यार कर सकते हैं (TV, रेडियो, समाचार पत्र, सरकारी समाचार अफ़सरों के लिये). अगर आप किसी ऐसे पत्रकार को जानते हैं जो इस विषय में रुचि रखता हो तो आप उसे अपने पत्र में सम्मिलित रूप से काम करने के लाभ के बारे में विस्तार से लिखने को कह सकते हैं और कि इसके फ़ायदे बहुत हैं, और जो समय अधिक लगता है वह इसकी तुलना में कुछ भी नही. अगर पत्रकारों से आपका अक्सर मेल होता है (जैसे कहीं दूर किसी वर्ग के दौरे पर या एक ही वाहन में साथ जाते समय), तो आप उन्हें विस्तार में इस प्रक्रिया के बारे में बता सकते हैं, और क्यों इसके लिये थोड़ा अधिक समय लगता है. आपकी सफ़लता इस पर निर्भर करेगी कि आप खुद कितनी अच्छी तरह इस विधि को समझते हैं, और उस पर कितना विश्वास रखते हैं. सिर्फ़ यह काफ़ी नही है कि आप सम्मलन के तकनीकों को समझा सकें. क्यों कि इस विषय के बारे में इतने अनुमान बनाये जाते हैं, जो हमेशा साफ़ नहीं होते. इसलिये ज़रूरी है कि क्रिया-शील तरीका अपनाया जाय आपके इस कार्य में आपको किन लोगों की विचारधारा सहारा देगी (राजनीतिञ, सरकारी अफ़सर, पत्रकार, इन्जीनियर आदि). ऐसे लोगों की सूची बनाइये जो संभवत (अञानवश) विरोधी होने के बजाय (समझ्दार) सहायक बन सकें. ऐसे लोगों को आप आवश्य अपने प्रचार-पत्र और समाचार लेख भेजें. आम बातचीत में भी जब भी आपको अवसर मिले इस विषय पर चर्चा करने की कोशिश करें. संक्षेप में यह एक सरल सा संबन्ध है: सबको साथ लेकर कुछ निर्माण करने से समय अधिक लगता है पर जो भी बनता है बहुत अधिक समय तक उपयोगी रहता है. यही बात आप अपने यहां हो रही योजनाओं को लेकर विस्तार में बता सकते हैं. अपने विचार सरल शब्दों में लिखें जिससे समझने में सुगमता हो. एक तरह से यह सम्मलन क्रिया के बिल्कुल विपरीत है; पहले लक्ष्य चुनते हैं और फिर चुने हुए लोगों तक इसे पहुंचाते हैं. यह आप पर निर्भर है. ––»«––समाज के विचारों को लेने के लिये समय रखना अगर
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