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सहायकों का प्रशिक्षण - सहयोगी समीक्षा के लियेकुशलतायें प्रदान करने के लिये कुछ प्रभावशाली तरीकेके द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.
translated by Shilpa Sharmaशिक्षक के लिये नोटससमाज को सह-सम्मत समीक्षा के लिये प्रेरित करने के लिये समाज सेवकों ऒर सहायकों का प्रशिक्षण कैसे किया जायअगर आपके मुख्य कार्यों में एक है सहायकों ऒर समाजसेवकों को समीक्षा के विभिन्न तरीकों से परिचित कराना, मिल कर समीक्षा के महत्व को समझाना, अपनी ज़रूरतों को आंकना, अपने समाज की मुश्किलों को समझना, ऒर अपनी सीमाओं को नज़्रर में रखना, तो आपको कई विशेष बातें ऒर मूल सिद्धान्त ध्यान में रखने होंगे कर के सीखना; (A) प्रशिक्षण के दौरान: निश्चय ही PRA/PAR के सूत्रों को समझाने के लिये आप जाने माने तरीकों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे: कक्षा में व्याख्यान, या फिर प्रेसेन्टेशनस (स्लाइडेस, चल-चित्र, विडिओ ), गोष्ठी. वाद-विवाद,छोटे दलों में चर्चा आदि हमारी सलह है कि ऐसे पारम्पारिक तरीकों का उपयोग सहयोगी रूप से किया जाय ऒर "खुद कर के सीखना"ही आपके प्रशिक्षण का मूल केन्द्र रहे. आप देखेंगे कि आपको ऒर आपके शिष्यों, दोनों को ही बहुत लाभ होगा अगर आप प्रशिक्षण के दॊरान ऐसी स्तिथि पैदा कर सकें जहां उनको सीखने के लिये खुद कुछकरना पडे़." ऐसा कई तरह से किया जा सकता है, जैसे (१) उन्हें अलग भूमिकायें दे कर, (२) खेल की स्तिथि बना कर, या (३) ऐसे कार्य जो मिल कर करने पडे़. किसी एक दल को कहा जा सकता है कि वह अपने को समाज का एक वर्ग समझें जिसके लिये उन्हें ही अपनी ज़रूरतों, साधनों, बाधाओं, ऒर प्राथमिकतायों की सूची बनानी है. यह सिर्फ एक खेल नही रहता, इससे एक ऐसी सूची तैय्यार होती है जो कि प्रशिक्षण के अन्य चरणों में बहुत उपयोगी सिद्द होती है इस क्रिया का नेतृत्व छात्र बारी बारी कर सकते हैं. अगर आप कक्षा में (जहां नियन्त्रण अधिक है), ऒर कार्य क्षेत्र में(जहां नियन्त्रण कम है), खुद कर के सीखने की क्रिया की तुलना करें तो आप पायेंगे कि दोनों के ही अपने लाभ ऒर कमियां हैं . अधिक नियन्त्रण की स्तिथि (नये लोगों के लिये बेहतर) में, बहुत हद तक स्तिथि का निर्माण आपके हाथ में है ऒर छात्र अपने को एक तरह से"सुरक्षित" वतावरण में पाते हैं. कार्य क्षेत्र में यद्यपि नियन्त्रण कम रहता है, किन्तु.छात्रों के लिये अनुभव अधिक सजीव ऒर वास्तविक होता है कर के सीखना; (B) कार्य क्षेत्र में: कार्य क्षेत्र में सीखना भले ही कम सुरक्षित लगता हो, किन्तु यहां से जो ग्यान प्राप्त होता है वह कहीं अधिक प्रभावशाली होता है. कार्य क्षेत्र का प्रशिक्षण कई रूपों में हो सकता है.
उदाहरण के लिये:
हरेक हालात में कार्य समाप्त होने पर उसकी चर्चा करना लाभदायक होता है. इससे छात्र के लिये शिक्षा ऒर भी गहरी हो जाती है. इसमें छात्र को अवसर मिलता है कि : (१) सारी क्रिया का विष्लेशण करे (२) अपने अनुभव के आधार पर पूरी क्रिया को जांचे (३) ऒर छात्रों से विषेष ऒर गहरे सवाल पूछे, ऒर (४) आगे के लिये मूल सुत्रों ऒर सिद्धन्तों को समझे. ऒर शिक्षक को भी अवसर मिलता है कि (१) वह छात्रों को ठोस घटनायों के अधार पर उन्हें अपने विचार जताये, ऒर (२) छात्रों का दिशा-दर्शन कर सके, (३) कि किस तरह चीज़ों को देख कर, उनका विष्लेषण करना चाहिये, ऒर कैसे उनकी रिपोर्ट बनानी चाहिये. प्रकाशित लेखों से सीखना: प्रकाशित लेखों से सीखना निश्चय ही इतना प्रभावशाली नही है जितना कि "खुद कर के" किसी कला को प्राप्त करना. किन्तु फिर भी कर के सीखी हुई कला को समझने के लिये ऒर उसे ऒर पक्का करने के लिये यह बहुत उपयोगी तरीका है. छात्र अक्सर लेखों के संदर्भ को बेहतर समझ सकते हैं ", अगर उसी विषय पर किसी घटना काअनुभव" उन्होनें हाल ही में किया हो. लेख (अन्य "करने" के तरीकों की तरह) कई स्तरों पर उपयोगी होते हैं - जब कोई छात्र समाज सेवक या सहायक बनने की शिक्षा लेता है. अरम्भ में इन्हें सरल रूप में, चित्रों द्वारा समझा कर, छात्रों को दिया जा सकता है. इस वेब साइट पर जो भी लेख हैं सभी इसी ष्रेणी में आते हैं. यह साधारण,सरल भाषा में होने चाहिये (जहां तक संभव, वहीं की भाषा), बिल्कुल साफ शब्दों मे. अगर चित्रों द्वारा भी बताया जाय तो बहुत लाभ होगा. जिन छात्रों का पहले ही क्षेत्र में अनुभव हुआ हो उनके लिये ऒर ऊंचे स्तर के लेख दिये जा सकते हैं. यह लेख ऒर ऊच्च ष्रेणी के हो सकते हैं. इनमें खास बातों का विवरण हो सकता है, कुछ असपष्ट चीज़ें बताई जा सकती हैं (जिनसे हो सकता है नये छात्र घबरा जायें). इसीलिये ध्यान रहे कि ऐसे लेख (भले समझ में आयें या न आयें) बिना सोचे समझे नये छात्रों को न दिये जायें. किसी भी सामर्थ्य बढ़ाने की विधी की तरह अगर छात्र कुछ संघर्श कर के पाते हैं तो उसे अधिक मूल्य देते हैं. छात्र को सिर्फ दिशा दिखाइये, और फिर उसे खुद ही करने दीजिये (विषय पर साहित्य ) खोज. शिक्षण से सीखना: यद्यपि "खुद कर के" सीखना, सीखने का सबसे अच्छा तरीका है, फिर भी किसी को कोई कला सिखाने की क्रिया भी खुद में ही एक बहुत अदभुत शिक्षा बन सकती है जैसे अगर किसी को कहा जाये कि वह कोई कला किसी ऒर को सिखाये, भले ही एक विद्यार्थी किसी दूसरे को कक्षा में ही सिखाये, तो देखा जायेगा कि सिखानेवाला अचानक ही बहुत गंभीर हो जाता है ऒर पूरी कोशिश करता है कि वह इस कार्य में सफल हो छात्रों को प्रोत्साहित करें कि वह सरल लेख लिखने की कोशिश करे, जैसे "कार्य कैसे करें" जिनमें सिर्फ मुख्य बातों का वर्णन हो. (इस तरह का कार्य भी सीखने की क्रिया में बहुत उपयोगी होता है). इन लेखों का उपयोग छात्र आपस में एक दूसरे पर कर सकते हैं. हर अंश के बाद पूछें कि उन्हें सारी कला और उसके सिद्धान्त समझ आये या नहीं. छात्रों को दूसरे छात्रों के लेख समझ आये या नही? हरेक छात्र के लेख की चर्चा सबके साथ कीजिये. शिक्षा देने की कला छात्र कई तरह से पा सकते हैं जिनमें एक यह भी है - शिक्षा की तैय्यारी करना और सच में दूसरों को शिक्षा देना. इन दोनों तरीकों (और अन्य तरीकों)को सीखने के लिये अपने छात्रों को प्रेरित कीजिये. उन्हें कहिये कि लेख ब्ल्कुल ही सरल और रोज़ की भाषा में होने चाहिये. जहां तक संभव हो शिक्षण का सभी सामान वहीं की भाषा में होना चाहिये उन्हें उत्साहित करने के लिये, उनके द्वारा तैय्यार किये गये लेख सब में बांटिये, वहां के पत्रों में प्रकाशित करने की कोशिश कीजिये, आदि जिससे छात्रों में उत्साह बढेगा . इससे छात्रों को प्रेरणा मिलेगी और उनमें उत्साह जागेगा कि वह ऐसा करते रहें सदा सीखते रहो: सदा अपने विद्यार्थियों को याद दिलायें कि यह महज एक पेशा नही है, कि इसके बारे में सीखना कभी बंद नहीं होता, कि यह जीवन का मकसद बनना चाहिये. "जब सीखना बंद हुआ, समझो मॊत आई ." ––»«––समाज सेवकों का प्रशिक्षण: अगर
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