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कार्यक्रम बनाने के लिये सुझाव

सहयोगी संचालन के लिये एक मुख्य साधन

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

translated by Parveen Rattan


गर्ट लुडकिंग को समर्पित


तकनीकी संदर्भ

सारांश:

यहां कुछ सुझाव और सूत्र दिये गये हैं एक वर्ष या छ: महीने का कार्यक्रम बनाने के लिये. यह लेख सहयोगी संचालन के संदर्भ में लिखा गया है. आपको ऐसा वातावरण बनाना होगा जहां कर्मचारी और संचालक दोनों मिल कर कार्यक्रम बना सकें.

इसके लिये सबसे अच्छा समय है किसी भी जांच के कुछ दिनों बाद. सालाना कार्यक्रम (AWP) के लिये इसका अर्थ हुआ सालाना परख (AR) के कुछ दिनों बाद. सबसे ज़रूरी है कि कार्यक्रम बनने के तुरंत बाद उसे सब सद्स्यों में बांटना चाहिये. सहयोगी संचालन के लिये पारदर्शी होना बहुत ज़रूरी है. बहुत मानों में कार्यक्रम एक प्रस्ताव की तरह ही होता है, सिर्फ इसके कि हो सकता है कि बजट शायद पहले ही बना ली गयी हो, या फिर कार्यक्रम पर निर्भर हो.

अन्य योजनायों की तरह, चाहे ग्रुप में हों या न हों, पहले सोचिये (१) कि आप कहां पंहुचना चाहते हैं, और वहां पंहुचने के लिये आपको क्या क्या करना होगा, और (२) फिर संचालन के चार मुख्य सवालों को को ध्यान में रखकर उनके आधार पर अपनी चर्चा और सोच को आगे बढ़ाईये. कार्यक्रम सिर्फ एक साधन है किसी भी समय-बद्ध योजना के लिये (चाहे छ:महीने की या १२ महीने की) जिसमें समस्याऒं को उभारा जाता है और उनका हल निकाला जाता है. संचालन का यह आम साधन है. जब कर्मचारी संचालन में सहयोग देते हैं तो उन्हें यह सीखना पड़ता है. योजना बनाने का वातावरण पैदा करते समय आप स्वाभाविक रूप से एक सीखने का वातावरण भी बना देते हैं.

१.परिचय

इस परिचय में दो भाग हैं:
  • इस लेख का कौन उपयोग कर सकता है
  • कार्यक्रम क्या नहीं हैं.

१.१:इस लेख का कौन उपयोग कर सकता है

यहां दी गई रूपरेखायें प्रबंधकों ऒर संचालकों को ध्यान में रख कर, जो अपने कर्मचारियों या अन्य साथियों के साथ काम करते हैं, बनाई गई हैं. पर कार्यक्रम बनाने की कला ऐसी है, कि यहां दी गई सलह किसी के लिये भी उपयोगी हो सकती है, चाहे वह संचालक हों, योजना बनाने वाले हों, या फिर कार्यकर्ता हों किसी सरकारी या गैर सरकारी महकमे के.

अगर आप अपने कर्मचारियों को योजना बनाते समय सहयोगी बनाते हैं तो उन्हें इस लेख से बहुत मदद मिलेगी, यह समझने के लिये कि संचालन की क्रिया में किस तरह से भाग लिया जाता है. कोई भी योजना संस्था को मार्ग दिखाने का काम करती है ऒर इसको तैय्यार करने में अगर कर्मचारी भी शामिल हों, तो वह उसे "अपनाते"हैं ऒर उसे सच्चाई में उतारते हैं.

१.२ कार्यक्रम क्या नहीं होते:

शुरु से ही कार्यक्रम बनाने के विषय में दो भ्रांतियां हटा लेनी चाहिये: (a) एक, कि कार्यक्रम में बजट मुख्य होती है, ऒर (b) कि कार्यक्रम में कार्य-सूची मुख्य होती है. इन गलत धारनायों पर बनी योजनायें जब अस्वीकृत होती हैं तो कई बार संचालक हताश भी हो जाते हैं.

धन राशि देने वाली संस्थायें अक्सर धन देने से पहले पूरे कार्यक्रम की जांच करती हैं. इससे भ्रांति पैदा हो सकती है कि बजट ही (या सिर्फ बजट) कार्यक्रम का मुख्य भाग है. बजट ज़रूरी तो है ही, किन्तु बजट का हर अंश युक्तिसंगत होना चाहिये. बजट के समर्थन में जो कहा जाता है वही कार्यक्रम का केन्द्र होता है (ऒर बजट इस के साथ लगाई जाती है) ऒर यही इस लेख का विषय भी है.

दूसरी गलतफहमी जो होती है वह है कि कार्यक्रम की विषय सूची ही योजना है. संचालक काफी प्रयत्न के बाद कार्यक्रम की पूरी विषय सूची तैय्यार करता है. यह सूची मददगार ज़रूर होती है पर योजना नही होती (यानि इससे यह नही मालूम होता कि उद्देश्य क्या है, क्यों है, और कैसे पाया जायेगा). इसके अलावा ऐसी सूची यद्यपि उपयोगी होती है, किंतु कई बार असली जीवन मॆं पाया जाता है कि इसमे फेर बदल हो जाता है. ज़रूरी काम, या कोई मेहमान (जैसे दान देने वाले या अन्य सम्मानित व्यक्ति) आ जाते हैं, जिनसे पहले तय की गई गति-विधियों को बदलना पड़ता है. इसीलिये, एक जड़, अटल सूची की जगह अगर ऐसा कार्यक्रम बनायें जिसमें हर उद्देश्य एक निश्चित समय तक पूरा हो, तो काम करने में सुविधा होगी और यह तरीका एक जड़ सूची की तुलना मॆं आपको सुविधा-अनुसार काम करने की आज़ादी भी देगा

एक बार जब यह दो भ्रांतियां हट जायें तब आपके लिये सही योजना-कार्यक्रम बनाना संभव है. ऐसा करने के लिये एक तरीका यहां दिया गया है

२.योजना कार्यक्रम क्या है?

योजना कार्यक्रम एक दलील है; एक सीमित समय में, किसी कार्य में निर्णायकों का समर्थन पाने के लिये, और उसे पूरा करने के लिये जो जो करना पड़ेगा, उन सबका वर्णन है. इस विषय के तीन मुख्य भाग हैं:
  • योजना कार्यक्रम क्यों लिखना चाहिये?
  • दलील क्या है ?
  • योजना कार्यक्रम की अवधि.

२.१ योजना कार्यक्रम क्यों बनाना चाहिये?

इसके कई उद्देश्य होते हैं. पर अक्सर मूल उद्देश्य हम भूल जाते हैं; कि यह संचालन का एक साधन है जिससे हम अपने कार्य को सही रूप से पूरा कर सकते हैं, और इसकी सहायता से समय समय पर निश्चय कर सकते हैं कि हम अपनी राह से भटक नही रहे. धन देने वाली एवं अन्य सहयोगी संस्थायें भी इस योजना के आधार पर ही धन देती हैं (और शायद इसीलिये हम पहला उद्देश्य भूल जाते हैं; कुछ संचालक इसे एक उपयोगी साधन की जगह इसे एक बाधा भी समझते हैं). क्यों कि इस योजना कार्यक्रम की प्रतिलिपियां कई लोगॊं में बांटी जा सकती हैं - जिन्हे भी इसके बारे में जानने का अधिकार हो - इससे सब कुछ साफ और पारदर्शी रहता है.

कुछ अर्थों में यह एक प्रस्ताव की तरह भी होता है. अंतर सिर्फ इतना होता है कि कार्यक्रम का आधार होता है ऐसी योजना जिसकी सहमति मिल चुकी है, और इसमें एक सुनिश्चित समय की गति-विधियों का वर्णन होता है. इसमें निश्चय करते हैं (लक्ष्य) उन समस्याओं का जिनका समाधान चाहिये, उन्हें अंशों में विभाजित करके अलग अलग लक्ष्य बनाते हैं, क्या साधन चाहिये, क्या बाधायें सामने आयेंगी, उन्हें हटाने के तरीके, और लक्ष्य तक पहुंचने के लिये क्या क्या करना होगा सबका विस्तार से वर्णन होता है. किसी भी प्रस्ताव में भी यही सब होता है, पर योजना की पूरी अवधि के लिये, और प्रस्ताव में यह सब लिखा जाता है प्रस्ताव की सहमति पाने के लिये.

योजना कार्यक्रम के आधार पर ही धन और अन्य साधन दिये जाते हैं. स्वीकृति के बाद योजना कार्यक्रम एक मार्ग-दर्शक बन जाता है, जिसके आधार पर लक्षय तक जाने के लिये कार्य सुनिश्चित किये जाते हैं, और सब गति विधियां, उद्देश्य, कार्य आदि सभी को साफ तरह से नज़र आते हैं.

इस तरह योजना कार्यक्रम सभी वर्गों की ज़रूरतें पूरी करता है (जिनको इससे लाभ होगा), संचालक, संयोजक, अधिकारी-समितियां, दान देले वाली संस्थायें, और अन्य संस्थायें जो बिना ऐसी योजना के भी काम करती हैं .

२.२: दलील क्या है?

योजना कार्यक्रम एक दलील है. (१) दलील का अर्थ होता है युक्तिसंगत कथन, जिसमें कोई भी बात स्वाभाविक रूप से ही पहले कही गई बात से निकलती है. यहां दिये गये अंशों में ऐसे ही कथन हैं जो मिल कर पूरी दलील बनाते हैं.

टिप्पणी (१): यहां इस शंका में न पड़ें कि "दलील" का अर्थ विवाद से है. तर्क-शास्त्र में दलील का अर्थ होता है युक्तिसंगत कथन जिनसे एक तर्कसंगत निश्चय तक पहुंच सकते हैं.

दलील को सरल रखने के लिये, योजना कार्यक्रम के मुख्य भाग में सिर्फ दलील ही रखी जाती है, और इसकी विस्तृत जानकारी लेख के अंत में दी जाती है.

योजना कार्यक्रम को अगर दलील की तरह लिया जाय तो कहा जा सकता है: (a) कोई समस्या है (जो विषेश कारणों के लिये चुनी गई है); (b) उसका हल चाहिये; (c) हल योजना कार्यक्रम है जिसमे लक्ष्य और उन कार्यॊं का वर्णन है जो हमें करने पड़ेंगे; (d) रण नीति इस पर निर्भर होगी कि समस्या क्या है, हमारे पास क्या साधन हैं, और हमें कौन सी बाधायें पार करनी होंगी. हमारे लक्ष्य (जब पूरे हो जायें) योजना के फल हैं, और साधन (जब उनका उपयोग हो) योजना के बीज हैं, और हमारी नीति का उद्देश्य है कि कैसे इन बीजों को हम फल में बदलें.

२.३:योजना कार्यक्रम की अवधि कितनी होनी चाहिये?

योजना की सबसे सहज अवधि ६ या १२ माह की होती है. ३ महीने बहुत कम होते हैं अगर हम विचार करें कि योजना बनाने में ही कितना समय लग जाता है. और २४ महीने बहुत लंबा समय होता है क्योंकि इस समय में बहुत कुछ बदल जाता है, और एक साल के अंदर लक्ष्य एवं ज़रूरतें भी बदल सकती हैं. इसीलिये हर साल के बाद आंकलन होना चाहिये.

किंतु यह कोई अटल नियम नही है. कुछ खास कारण ऐसे हो सकते हैं जिनकी वजह से योजना कार्यक्रम ३ महीने से कम, या ६ महीने से अधिक भी हो सकता है.

३: योजनाकार्यक्रम का ढ़ांचा और विषयसूची

इस भाग में बताया गया है कि कार्यक्रम में क्या होना चाहिये, और उसे कैसे बनाना चाहिये. इसमे इन विषयों का वर्णन है:
  • सारांश
  • परिचय और पृष्ठ्भूमि (समस्यायें)
  • लक्ष्य और उद्देश्य (फल)
  • साधन और बाधायें (कर्म या कार्य)
  • नीति और कार्य (कर्म से फल तक)
  • परिशिष्ठ या जोड़ (बजट, कार्यक्रम और अन्य).

३.१ सारांश:

इसे सबसे अंत में लिखें और सारांश ही बनायें परिचय नहीं. यह एक या दो पैरा का ही होना चाहिये, तकरीबन आधे पृष्ठ का. (देखिये सूत्र प्रस्ताव या रिपोर्ट लिखने के).

परिचय और पृष्ठ्भूमि

किसी छोटे कार्यक्रम के लिये परिचय और पृष्ठ्भूमि, दोनों को एक ही अध्याय में डाला जा सकता है. अगर कोई लंबा कार्यक्रम हो (जो पढ़ा भी जायेगा) तो इन्हें दो अलग अध्यायों में लेना चाहिये.

पहले परिचय में योजना के बारे में संक्षेप में लिखना चाहिये. यह बहुत ही साधारन सी बात लगती है, किंतु कई संचालक बहुत ही लंबे और पेचीदे परिचय देते हैं, जिनसे पढ़ने वाला ऊब जाता है, और योजना के मुख्य भाग तक पहुंचता ही नही है. प्रस्ताव में जो बातें कही गई हैं उन्हें दोहरायें नहीं ; सिर्फ उन्हीं बातों को लें जो कार्यक्रम की अवधि से संबंध रखती हैं.

फिर पृष्ठभूमि में एक तर्कसंगत दलील होती है जिससे लक्ष्य (उद्देश्य) चुने जाते हैं जो कि योजना के दौरान पाये जायेंगे. इस भाग में उन समस्याओं का उल्लेख होता है जो योजना कार्यक्रम के दौरान सामने आयेंगी. पृष्ठभूमि भी संक्षेप में ही होनी चाहिये; इसमें उन्ही विषयों की चर्चा होनी चाहिये जो इस समय लक्ष्य के चुनाव का समर्थन करें.

पृष्ठभूमि में ज़रूरी हैं:
  1. पिछले ३ महीने या ६ महीने की रिपोर्ट से जानकारी और सुझाव
  2. कोई भी ऐसे बदलाव जिनसे योजना पर असर पड़ा हो या पड़ने की संभावना हो
  3. अन्य योजनायों के कुछ ऐसे नतीजे जिनकी वजह से योजना की रूपरेखा में फेर बदल करने की ज़रूरत हो
  4. उचित लेखों या अन्य किसी योजना प्रस्तावों में से संबंधित अंश
  5. कोई भी ऐसे उचित संदर्भ जिनसे इस अवधि में लक्ष्य चयन का समर्थन हो.

योजना प्रस्ताव पत्र (या कोई भी लेखन जिसमें आपके कार्यक्रम के उद्देश्य का समर्थन हो) काफी लंबा हो सकता है और इसके कई उद्देश्य हो सकते हैं. अपके कार्यक्रम के दौरान ज़रूरी नही है कि इसके सभी उद्देश्य पूरे हों. पृष्ठभूमि में ही आपको साफ कर देना चाहिये कि आपने क्यों कुछ को चुना है, और कुछ को नहीं.

ध्यान रहे कि आप मूल लेख की भूमिका को दोहरायें नहीं (जैसे योजना पत्र, कार्यक्रम विवरण, प्रस्ताव पत्र, या नीति पत्र इत्यादि); वह जानकारी पूरी योजना के लिये आवश्यक हो सकती है पर ज़रूरी नही कि आपके कार्यक्रम की अवधि के लिये भी लागू हो. पृष्ठभूमि में सिर्फ वही जानकारी होनी चाहिये जो कि साफ तौर पर कार्यक्रम की अवधि में आपके उद्देश्य से सबंध रखती हो.

३.३: लक्ष्य और उद्देश्य:

CMP मार्गदर्शन (3) में कहा था , लक्ष्य, उद्देश्य और नतीजे अलग अलग पर संबंधित हैं. लक्ष्य काफी विस्तृत होता है, किसी समस्या का समाधान निकालना. लक्ष्य कभी भी पूरी तरह से नही पाया जा सकता, और न ही इसे आंकने का कोई तरीका होता है, क्योंकि लक्ष्य एक माने में निराकार ही होता है. पर लक्ष्य से हमें उद्देश्य की दिशा का इशारा मिल जाता है जो कि ठोस होता है और मापा जा सकता है. उद्देश्य लक्ष्य से ही उभरते हैं.

टिप्पणी (३): इस विषय पर देखिये "योजना बनाने के सूत्र," जहां लक्ष्य और उद्देश्य के अंतर का और विस्तार से वर्णन है.

योजना कार्यक्रम एक तर्कसंगत रूप से बनना चाहिये- परिचय से पृष्ठभूमि से लक्ष्य से उद्देश्य तक. इसमें पृष्ठभूमि में बताया जाता है कि विषय कैसे चुने गये, लक्ष्य से साफ होता है कि समाधान क्या है, और उद्देश्य से साफ होता है कि कैसे हम जानेंगे कि लक्ष्य तक पहुंच गये हैं, कैसे अपनी प्रगति मापेंगे.

आपके लक्ष्य जो कि योजना कार्यक्रम की पृष्ठभूमि में दी गई समस्याऒं का समाधान हैं, यहां साफ रूप से दिये जाने चाहिये और फिर इनसे उद्देश्य बनाये जायेंगे.

यह उद्देश्य आपके योजना पत्र में से ही चुने जाने चाहिये (या जैसे पहले बताया गया है, ऐसे ही किसी अन्य लेख से), या फिर ऐसा भी हो सकता है कि यह किसी नई समस्या से उभरें जिसका वर्णन पृष्ठभूमि में किया गया हो. उद्देश्य लक्ष्य से आते हैं. यह साफ तरीके से लिखे जाने चाहिये और हरेक उद्देश्य के लिये एक समापन अवधि भी तय की जानी चाहिये. देखिये SMART.

ज़रूरी नही है कि योजना पत्र के सभी उद्देश्य आपके कार्यक्रम के भी उद्देश्य बन जायें. सिर्फ उन्हें ही लें जो कि कार्यक्रम की अवधि में आते हों और जिनका पृष्ठभूमि में उल्लेख हो (समस्याओं का चयन) जैसा की ऊपर बताया गया है.

कार्यक्रम के चुने गये उद्देश्य (या नतीजे, अगर वह उद्देश्य से भी स्पष्ट हों ) योजना कार्यक्रम के मुख्य अंश हैं. इन्हीं के बल पर हम अपने परिश्रम और धन का सही उपयोग कर पाते हैं. यह कार्यक्रम के केन्द्र-बिंदु हैं. इनसे मालूम पड़ता है कि समय के अंत तक हम कहां पहुंचना चाहते हैं.

३.४: साधन और बाधायें:

परिचय और पृष्ठभूमि की तरह, साधन और बाधायें का विषय भी एक या दो अध्यायों में होना चाहिये -- निर्भर रहेगा कि योजना कार्यक्रम कितना बड़ा है.

फिर बाधायों के अंश में उन सब बाधायों का वर्णन होना चाहिये जिन्हे हमे दूर करना होगा अपने उद्देश्य तक पहुंचने के लिये. यह भी बताइये कि यह कैसे हो सकता है

और साधन के अंश में होने चाहिये सभी (संभवl) साधन या कार्य जिनसे हम अपने चुने हुए उद्देश्य तक जा सकते हैं. सिर्फ धन राशि के विषय में न अटक जायें; इसकी विस्तृत जानकारी अंत में रखें जहां बजट हो. अन्य साधनों को उतना ही महत्व दें जैसे लोग और उनका परिश्रम (उदाहरण, समाजसेवक), सहयोगी (व्यक्ति अर संस्थायें), सलहकार, सामग्री, अन्य सामान, जो बेचा जा सकता है, और ऐसा कुछ भी जो उद्देश्य तक जाने में आपकी मदद कर सकता है

३.५: नीति और कार्य:

अन्य भागों की तरह इस अंश को भी एक या दो अध्यायॊं में बयान किया जा सकता है. इस अंश में वर्णन है कि किस तरह कार्य को फल मे बदला जा सकता है. जो नीति वाला भाग है इसमें बताना चाहिये कि किस तरह आप अपने साधनों द्वारा बाधायों को हटायेंगे और किस तरह इनकी (साधनों) की मदद से आप अपने उद्देश्य को पायेंगे.

सभी अच्छे कार्यक्रमों में कई अलग अलग नीति प्रस्ताव रखे जाते हैं, और फिर उनमें से एक का चुनाव होता है; कारण भी दिये जाते हैं. अगर आपका कार्यक्रम छोटा है, तो इस अंश को आप छोड़ भी सकते हैं. आप को ही निर्णय करना है कि इसे छोड़ें या नहीं.

सही मानों में, परिश्रम कर्म होता है कर्म फल नहीं. इसलिये परिश्रम नीति का अंग होता है क्यों कि इसी की वजह से कार्य फल में बदलता है. इसे ऐसे समझें - उद्देश्य और लक्ष्य फल होते हैं (नतीजा) योजना के, और साधन (जो हम उपयोग करते हैं) योजना में बीज की तरह. हरेक कार्य नीति से साफ तौर से निकलना चाहिये, जिसमें कार्य और नतीजे का संबंध साफ हो. इस भाग का हर कार्य ऐसा होना चाहिये कि उससे एक फल (लक्ष्य, उद्देश्य), तक पहुंचने का मार्ग साफ तौर से नज़र आता हो.

३.६: परिशिष्ठ या जोड़.बजट और कार्यक्रम

आपके योजना कार्यक्रम के मुख्य अंश ऊपर ३.१ से ३.५ तक दिये गये हैं. इस भाग का उद्देश्य है कार्यक्रम के समर्थन में कुछ और आंकड़ों और दलीलों का जोड़. बजट और दिन-चर्या की गतिविधियां कुछ ऐसी ही चीज़ें हैं.

यह बजट यहीं पर आनी चाहिये, मुख्य भाग में नहीं. यद्यपि बजट बहुत ही आवश्यक है, फिर भी यह मुख्य दलील नही है, सिर्फ दलील के सहयोग का एक अंश है. यह पहला जोड़ हो सकता है. बजट का हर भाग किसी एक उद्देश्य से संबंधित होना चाहिये (नतीजे). कुछ बजट के विषय (जैसे वाहन, डाक, फोन आदि) सब नतीजों में बराबर बांटे जाने चाहिये, क्यों कि यह सब से संबंध रखते हैं. कोई भी ऐसी वस्तु नही होनी चाहिये जो कार्यक्रम के किसी भी विषय से संबंध न रखती हो .

कार्यक्रम को दिन-चर्या में विभाजित करना ज़रूरी नही है. कुछ लोगों की राय है कि हर दिन की योजना बनानी चाहिये. हमारी राय है की हर उद्देश्य की समापन अवधि निश्चित की जानी चाहिये (या नतीजे जो आने चाहिये) क्रमांक वश, और हरेक के लिये उचित समय दिया जाय; जैसे कि एक उद्देश्य किसी एक तारीख तक समाप्त होना चाहिये. यह अधिक तर्कसंगत लगता है . इसमे कार्य करने की कोई एक तारीख निश्चित नही की जाती.

अगर मुख्य लेख-पत्र में कुछ और विवरण (लिस्ट आदि) हैं (कार्यक्रम की दलील), तो उन्हें भी यहीं पर रखें जहां वह मुख्य दलील से ध्यान न हटायें. पर यह ज़रूरी नही है. जहां उचित हो लेख में इन संदर्भों का उल्लेख करें. ऐसा कुछ भी नहीं रखें जिसका उल्लेख मुख्य भाग में न हो. इस तरह इस भाग में हर ऐसी चीज़ आ जाती है जो कि मुख्य दलील का समर्थन करती है, किंतु अलग भाग में है इसलिये दलील से ध्यान नहीं दूर करती, और पढने वाले को हर अध्याय युक्तिपूर्ण अर तर्कसंगत लगता है.

४.कार्यक्रम का बहाव

कार्यक्रम के ढ़ांचे, इसके परिशिष्ठ और इसके निर्माण पर गौर करें. यह पूरे कार्यक्रम के महत्वपूर्ण अंग है, खास रूप से बजट, पर यह अंत में रखे गये हैं इसकी भी एक खास वजह है. योजना कार्यक्रम में कई अध्याय होते हैं (परिचय, पृष्ठभूमि, उद्देश्य, लक्ष्य, फल, साधन, बाधायें, नीति, कार्य). इन सब के मिश्रन से एक दलील बनती है, और हर एक अध्याय दूसरे से संबंधित है.

  • पृष्ठभूमि में समस्या का निर्णय होता है; फिर
  • उद्देश्य से समाधान का निर्णय होता है); फिर
  • लक्ष्य (नतीजे) बनाया जाता है जो मापा जा सके; और फिर
  • साधन और बाधायें देखी जाती हैं जिनसे निर्णय होता है कि लक्ष्य तक जाने के लिये क्या उपयोगी है; अंत में
  • नीति बनती है जिससे निर्णय होता है कि कैसे कार्यों को फल में बदला जा सकता है.
जिस तर्क से यह सब अंग जुड़ते हैं उन्हीं से एक दलील बनती है.

दलील आसानी से समझ आनी चाहिये, सरल शब्दों में लिखी जानी चाहिये, और एक तर्क से दूसरे तक सहजता से ही पहुंचनी चाहिये. और आंकड़े आदि, आर्थिक सूक्ष्मता के विषय (बजट) और अन्य विवरण अंत में आते हैं.

याद रहे, पूरा योजना पत्र एक ही दलील है, जिसमें हर अध्याय संबंधित है. अंत में दलील के समर्थन में ऐसे संदर्भ रखते हैं जो कि मुख्य दलील से ध्यान न हटाये.

५.अंत में:

किसी भी योजना के लिये योजना कार्यक्रम बनाना बहुत ज़रूरी है. इसका रूप एक तर्कसंगत दलील होती है जिसमें मुख्य भाग में अलग अलग अध्यायों में समर्थन में दलीलें दी जाती हैं और अंत में अन्य समर्थन की जानकारी होती है.

इस लेख में योजना कार्यक्रम के विषय में जानकारी दी गयी है, और इसके साथ ही आप पढ सकते हैं रिपोर्ट लिखने और प्रस्ताव लिखने की युक्तियां.

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: ०७.०८.२०११

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