Tweet अनुवाद:
'العربية / Al-ʿarabīyah |
लिंग रणनीति पद्धतियाँके द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.
अनुवादक: अपर्णा सिंहलसंगठन कार्यकर्ता के लिए टिप्पणियाँसंगठन कार्यकर्ता के लिए लिंग जागरूकता बढ़ाने और संतुलन को बढ़ावा देने के तरीकेसंक्षेप: यह एक परिचय है कुछ मुख्य मुद्दों और कुछ तरीकों का जो संगठन कार्यकर्ता कार्यक्षेत्र में ईस्तमाल कर सकता है. परिचय: यह दस्तावेज़, इस वेबसाइट पर अन्य बहुतों की तरह, कार्यक्षेत्र में संगठन कार्यकर्ता की तरफ केंद्रित है, और यह कोई पाठनीय या सैद्धांतिक लेख नही है. इसका उद्देश्य संगठन कार्यकर्ताओं का कुछ लिंग संबंधित मुद्दों से परिचय करवाना, और उनकी लिंग संबंधी जागरूकता बढ़ाने के लिए और उनके समुदायों और संस्थाओं को लिंग संतुलन और निष्पक्षता की ओर बढ़ाने के लिए, कौशल विकास में सहायता करना है. तंज़ानिया के लोकतान्त्रिक गणतंत्र की समाज विकास और स्त्री और बाल प्रशासन की मंत्री, माननीय मेरी नागू ने कहा है, "आप लिंग संतुलन के बिना सच्चा समाज विकास नहीं पा सकते, और इस संतुलन को पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व समाज की भागीदारी है" (व्यक्तिगत बातचीत, इस्तांबुल, 1996). स्पष्टतया, समाज कार्य लिंग संबंधित मुद्दों की जागरूकता बढ़ाने और कुछ पक्षपात को संतुलित करने का एक लाभदायक माध्यम है. विरुद्धतया, समाज कार्य लिंग संबंधित मुद्दों की जागरूकता बढ़ाने और लिंग संतुलन को बढ़ावा देने के बिना अधूरा होगा. लिंग और स्त्री-पुरुष भेद: स्त्रियों के दबाव के कुछ हठी समर्थक तर्क देते हैं की शब्द "लिंग" एक जायज़ शब्द नही है, यह केवल पारंपरिक सामाजिक ढाँचे को तोड़ने के लिए एक आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है. यह ग़लत है, और संगठन कार्यकर्ता के लिए "लिंग" शब्द के बारे में कुछ चीज़ें जान लेना उपयोगी होगा जैसे यह क्यों इस्तेमाल होता है और इसका क्षमता विकास, आमदनी उत्पादन और कम आमदनी के समुदायों को शक्तिप्रदान करने में क्या महत्व है . एक अच्छी शुरुआत होगी "लिंग" और केवल स्त्री-पुरुष के भेद में अंतर करना. लगभग, स्त्री या पुरुष होना जैविक है; लिंग सामाजिक है. जैविक विशिष्टतायें पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता से मिले अणु (जीन्स) द्वारा (प्रजनन के दौरान) प्रसारित होते हैं जबकि सामाजिक विशिष्टतायें संचार और ज्ञान प्राप्ति (के चिन्हों) द्वारा प्रसारित होती हैं (सामाजिक प्रजनन). लिंग केवल स्त्री पुरुष का भेद नही है, लिंग में, व्याकरण की तरह मुख्य अंतर पुलिंग एवम् स्त्रीलिंग में है. (आनुवांशिक शोध दिखाता है की हमारे दो से ज़्यादा सेक्स हो सकते हैं और शायद जे एवं य गुणसूत्रों के और उनसे संबंधी जीन्स के पाँच तक के जोड़े हो सकते हैं). "पुलिंग" और "स्त्रीलिंग " क्या संघटित करते हैं बहुत अनित्य है, और यह संस्कृति और इतिहास के हर काल के साथ बदलता है. इसका यह मतलब है की सामाजिक विशेषतायें (पुलिंग और स्त्रीलिंग) जो अलग अलग लोगों को लागू होते हैं, उनके जैविक विशिष्ठताओं के जवाब में, सांस्कृतिक रूप से मनचाही हैं, और एक विकास की विधि या सामाजिक बदलाव द्वारा बदली जा सकतीं हैं. (हमारी जैविक विशिष्ठतायें हमारी आनुवांशिक धरोहर से तय होती हैं, और ज़्यादा दिक्कत से बदली जा सकती हैं, जैसे की शल्यक्रिया, दवाओं या अन्य भौतिक तरीकों द्वारा). मानवाधिकार मुद्दा: हालाँकि मूल्य हर समुदाय, देश और समय में अलग होतें हैं, हम ये स्वीकार कर सकते हैं की ग़लत और सही के बारें में कुछ बहुत व्यापक धारणाओं में एकमत है. जातिवाद एक ऐसी धारणा है और यह आमतौर पे ग़लत मानी जाती है, हालाँकि कुछ लोग जो जातिवादी मूल्य रखते हैं उन्हें पहचाना जा सकता है. जातिवाद में प्रधान मूल्य यह है की कुछ लोग कुछ भौतिक लक्षणों से पहचाने जाते हैं (चमड़ी का रंग, बाल, हड्डी-ढाँचा) , और जातिवादी व्यक्ति यह मानता है की वो भौतिक लक्षण लोगों को एक श्रेणी में डालते हैं, और कुछ सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक और दूसरी अभौतिक विशेषताएँ अपनेआप ही उस श्रेणी के सब लोगों को लागू होती हैं. ठेठ जातिवादी यकीन और रुढ़िबद्ध धारणाएँ हैं, जैसे की (1) "सब अफ्रीकी मूल के व्यक्ति सुरीले होते हैं", (2) "सब गोरे जातिवादी होते हैं", (3) "सब यहूदी पैसों के मामले में चालाक होते हैं" या (4) "कुछ लोग अविश्वासनीय, व्यभिचारी, लोभी, अयथार्थ, या शक्ति के भूखे होते हैं"- वग़ैरह, वग़ैरह. यह रूढिबद्ध धारणायें कुछ लोगों के साथ कुछ चुनिंदा, नकारात्मक और पक्षपाती ढंगों से बर्ताव करने को सही ठहराने के लिए, या जो नियम उनकी सहभागिता सीमित करने के लिए बनाए जा रहें हैं, उन्हें सही ठहराने के लिए प्रायः उद्धृत् की जाती हैं. विश्लेषण करने पर यह सॉफ है की लिंग के आधार पर भेद-भाव या लैंगिकवाद तत्वतः जातिवाद के जैसा ही है. यह अभौतिक सामाजिक विशिष्ठतायों की, और कुछ जैविक विशिष्ठतायों वाले लोगों के प्रति बर्ताव की रुदिबद्धता है. अगर हम अंतरराष्ट्रीय करारनामें देखें जैसे की "मानव अधिकारों की घोषणा", हम वो विस्तृत मूल्य ढूँढ सकते हैं जिनकी तरफ हमें काम करना है. उनमें से एक भाव यह है की हर एक को सेवायों, अवसरों, क़ानून और नागरिक सहभागिता को पहुँच का अधिकार है, बिना जाती, लिंग, धार्मिक विश्वास और प्रथायों, या किसी और श्रेणी जो एक मानव जाती को बाँटति हो, पर ध्यान दिए हुए. फिर भी, हम जानते हैं की दूरवर्ती और अकेले, कम आमदनी वाले और असंतोषजनक ढंग से शिक्षित समुदायों में जहाँ हमें नियुक्त किया जाता है, यह मूल्य नहीं होते, और प्रायः उन्हें पता भी नहीं होते हैं. यह संगठन कार्यकर्ता और क्षमता विकास को सहेज बनाने वालों पर एक ज़िम्मेदारी का भार डालता है; ये मूल्य बतानें और समझानें की, और इस संगठन कार्य के अंतर्गत बदलाव कर्ता के रूप में ये सर्वव्यापी मूल्यों को लागू करने की ओर काम करने की ज़िम्मेदारी. आर्थिक और राजनैतिक मुद्दे: सभी मनुष्य अपने समाज और समुदाय में अलग- अलग तरह से और अलग-अलग मात्रा में योगदान कर सकते हैं. समुदाय और समाज उन योगदानों से उन विभिन्नतयों की वजह सेमज़बूत होते हैं, न की उनके बावजूद. यदि एक समूह की जानबूझ कर अपनी जनता के पचास प्रतिशत लोगों को उत्पादक गतिविधियों में से निकाल देने की आदत है, तो उसकी आर्थिक गतिविधियों की पचास प्रतिशत उत्पादन क्षमता खो जाती है. गुणा प्रभाव के कारण, यदि वो पचास प्रतिशत निवेश मिला लिया जाए तो उत्पादन पचास प्रतिशत से कहीं अधिक बढ़ जाएगा, शायद पाँच गुना तक भी. आधी आबादी का उनके लिंग के आधार पर निकाले जाना अर्थ व्यवस्था को पचास प्रतिशत से कहीं ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है. स्त्रियों और पुरुषों को बराबर तरह से किसी भी समाज या समुदाय के आर्थिक उत्पादन में शामिल करना आर्थिक समझदारी की बात है. .इस ही तरह, यदि एक समूह की जानबूझ कर अपनी जनता के पचास प्रतिशत लोगों को राजनैतिक फ़ैसलों में से (वो फ़ैसले जो पूरे समुदाय पर असर करते हैं) निकाल देने की आदत है, तो मुमकिन फ़ैसलों का दायरा कम हो जाता है. एक समुदाय या समाज को जो अपने आने वाले कल और अपनी संभावनाओं के बारे में ख़याल होता है, वह सीमित होता है. मूल्य खो जाता है. स्त्रियों को राजनैतिक फ़ैसलों में बराबर शामिल करना राजनैतिक समझदारी की बात है. इस घाटे को देखने और समझने का दूसरा तरीका ऐसे सोचना है की अगर पुरुषों को जानबूझ कर आर्थिक कामकाज या राजनैतिक फ़ैसलों में से निकल दिया जाए तो कैसा होगा. पुरुषों का योगदान स्त्रियों के योगदान से बेहतर या बड़ा है मान लेने के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नही है. जिन लोगों को आर्थिक या राजनैतिक कामों में पूरी तरह से योगदान देने से निकल दिया जाता है, जैसे की महिलायें, वे एक संस्था, समुदाय या समाज के निर्माण में एक मूल्यवान साधन हैं जिन्हें न तो उपेक्षित करना चाहिए और न ही भूलना चाहिए. इनके बिना ग़रीबी अधिक होगी. एक समुदाय जिसमें स्त्रियों और पुरुषों को उसकी राजनैतिक और आर्थिक ज़िंदगी में भाग लेने के बराबर मौके दियें जाते हैं, वह राजनैतिक और आर्थिक रूप से ज़्यादा मज़बूत, विविध, रचनात्मक, उपजाऊ और निष्पक्ष होगा. सांस्कृतिक मुद्दे: युगांडा के लिंग मंत्रालय की दो युवा महिलायों द्वारा करी जा रही एक सामाजिक कार्यशाला (हमारे समुदाय शक्तिप्रदान कार्यक्रम के लिए)में मैनें एक बूढ़े पुरुष को चिल्लाते सुना, "क्या तुम हमारी संस्कृति को मारना चाहते हो?" उन्हें विश्वास हो चुका था की यह पारंपरिक, और सांस्कृतिक रूप से सही था की स्त्रियाँ सब पुरुषों को खुद से उच्चतर समझें, और की महिलयों को सामाजिक फ़ैसले करने में शामिल नही होना चाहिए, और यह की उनका काम पुरुषों की सेवा करना है. बैठक के सामने एक युवती ने जवाब दिया, "नहीं." हम अपनी ही संस्कृति को मारने की कोशिश नहीं कर रहें हैं," "हम उसके सबसे अच्छे भागों को मज़बूत करना चाहते हैं और उन भागों को छोड़ देना चाहते हैं जो अब किसी काम के नहीं हैं." आपको, एक कार्यकर्ता के रूप में उनके लिए जवाब चाहिए जो संस्कृति के बचाव की दलील देते हैं, जो डरतें हैं की कुछ रिवाज़ और ढंग बदलनें से आप उनकी संस्कृति नष्ट कर दोगे. इस बात की समझ से शुरू कीजिए की संस्कृति क्या है. (संस्कृति के बारे में जानने के लिए यह लेख देखें, संस्कृति). संस्कृति एक जीवित वस्तु है(जीव), जैविक नहीं बल्कि सामाजिक. इसमे वो सारी चीज़ें आती हैं (ढंग, व्यवहार, मान्यतायें) जो सीखी जाती हैं ना की आनुवांशिक रूप से पाई जाती हैं. जीवित रहने के लिए उसका बढ़ते रहना और रूपांतरित होना, जीवों की तरह ज़रूरी है. बढ़ना और रूपांतरण मतलब है बदलना. बचा के रखना मतलब वह चीज़ मृत है. सार्डीन(एक प्रकार की मछली) को डब्बे में बचा के रखने के लिए मरना पढ़ता है...मर्तबान में पड़ा आचार मृत होता है. म्यूज़ीयम में रखी शिल्पकृतियाँ भी मृत होती हैं. वो बदलते नहीं हैं, यही उनकी सुरक्षा का उद्देश्य है. हम कार्यकर्ताओं के रूप में आपके रिवाज़ों और सांस्कृतिक धरोहर को इज़्ज़त देते हैं. हम अपनी संस्कृति को जीवित देखते हैं, न की मृत या ना बदलने वाली जैसे की लातिन भाषा. हमारी आदरणीय संस्कृति को जीवित रहने के लिए पनपना होगा और रूपांतरित होगा; इसलिए उसे बदलते नए वातावरण के साथ मिलने के लिए बदलना होगा. बदलाव अनिवार्य है. अगर बदलाव होना है, तो उसकी दिशा पर कुछ प्रभाव होना, उसके सांस्कृतिक ढंग से हमारे योगदान के बिना निर्धारित होने से बेहतर है. अगर हमारे नियम बदलने ही हैं, तो उनका सार्वलौकिक मानवाधिकार घोषणा की तरफ बदलना बेहतर है, न की शहरी जंगलों के नियमों की ओर. छोटे समय में, लिंग संतुलन बढ़ाना परंपरायों के विरुढ़ जाता नज़र आ सकता है , ख़ासकर वहाँ जहाँ महिलायें दबाई जाती रहीं है. जबकि अंततः, स्त्रियों और पुरुषों की बराबर सहभागिता एक ज़्यादा मज़बूत समाज और समुदायों का निर्माण करेगा, और इससे हमारी संस्कृति भी मज़बूत होगी, उपजेगी और जीवित रहेगी. उपर के चार भागों ने लिंग के सामाजिक और सांस्कृतिक रूप और समाज और समुदायों को मज़बूत करने के लिए लिंग संतुलन को बढ़ाने की ज़रूरत के बारे में बताया, और अब आगे के भाग आपको, समुदायों को ज़्यादा लिंग अपक्षपात तक पहुँचनें में मदद करने के लिए और उनका मार्गदर्शन करने के लिए अपनी रणनीतियाँ बनाने की ओर बढ़ाएँगें. जागरूकता बढ़ाना: हम एक ऐसी समस्या को हल नहीं कर सकते जो हमें पता ही नहीं है की वह है. याद रखिए की एक समाज और समुदाय के लोगों को अपनी दिक्कतें खुद ही सुलझानी चाहियें. जैसे की किसी भी समुदाय के विकास में, आप समुदाय को विकसित नहीं करते हैं, समुदाय खुद को विकसित करता है. आपका हस्तक्षेप, जैसे की मार्गदर्शन, उत्तेजन, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन कुछ दिशा दे सकते हैं परंतु बदलाव सदरयों को ही लाना होगा. काफ़ी सदस्य ये नहीं देखते हैं की सुलझाने के लिए कोई समस्या है, या नहीं देखना चाहते. काफ़ी सदस्यों को असमान दर्जे से फयडा हो रहा होता है और वे डरते हैं की कोई भी बदलाव उनके दर्जे, सम्मान, शक्ति या उनकी आर्थिक बढ़त को नीचे कर देगा. जिनको एसे निहित स्वार्थ होते हैं, वो कहेंगें की कोई दिक्कत नहीं है, या तर्क देंगें की पारंपरिक तरीकों और विश्वासों को बदलने से संस्कृति का नाश होगा. आपका पहली बात के लिए जवाब है वकालत, समुदाय के सारे सदस्यों को जागरूक करना. दूसरे के लिए, निहित स्वार्थों को कैसे सम्भोधित करना है, यह अगले भाग में शामिल किया जाएगा. श्रोतागण को जागरूक बनाने की सबसे अच्छी पहुँच उनको हिस्सेदार बनाने वाले तरीके इस्तेमाल करना है. याद रखें की हम सुन कर सबसे कम सीखते हैं, देख कर थोड़ा सा ज़्यादा और करने में हिस्सा लेके सबसे ज़्यादा. याद रखें की समुदाय के सदस्य एक योजना की ज़्यादा ज़िम्मेदारी तब लेंगें यदि वो उससे जुड़े फ़ैसले खुद लेंगें, और जब उन्हे ये ना लगे की यह उनपे बाहर से थोपा जा रहा है. उन्हें ऐसा लगना चाहिए की यह योजना या विधि उनकी अपनी है. यह समुदाय विकास के आधारीय मूल हैं जैसा की समझाया गया है कार्यकर्ता हस्तपुस्तक में. तो फिर समूह सभायों में आपका मौलिक तरीका, सॉक्रटेस की तरह सवाल पूछना है. सहभागियों को उपदेश या वर्णन मत करो. उनसे ऐसे सवाल करो जो उन्हें अपनी स्थिति, अपने समुदाय को लिंग संतुलन के विषय में देखने की ओर ले जायें, की वह अभी कैसा है और कैसा हो सकता है. फिर भी, गुप्त रूप से जागरूक और सहानुभूति वाले धार्मिक या अन्य नेताओं और राय बनाने वालों से मिलने, और उनको कुछ इस विषय में उपदेश देने के लिए या वर्णन करने के लिए प्रोत्साहित करने में कोई नुकसान नहीं है. लिंग संतुलन से संबंधित सवाल केवल ख़ास कार्यशालाओं को नहीं सीमित रहने चाहिए (इससे मुद्दा किनारे हो जाता है, और अक्सर जो समझ चुके हैं उन्हें ही उपदेश देने जैसा रह जाता है), बल्कि सब प्रबंध शिक्षण और समुदाय को अपनी योजनायें शुरू करने के प्रोत्साहन के साथ जोड़ने चाहियें. लिंग संतुलन को बढ़ावा देना: असली दुनिया में, बहुत बढ़ी और अनुचित असमानतायें हैं, जिनमे पुरुष कुछ स्थितियों में एकत्रित हैं और स्त्रियाँ कुछ स्थितियों में, ज़्यादातर पुरुषों के मुक़ाबले स्त्रियों के लिए ये स्थितियाँ प्रतिकूल हैं. लिंग संतुलन का एक लक्ष्य इन असमानतायों को ठीक करना है. (पचास प्रतिशत का एक कड़ा अंश हर स्थिति के लिए निर्धारित कर देना बहुत सख़्त होगा, और उसकी ओर काम करने से मुसीबतें सुलझने से ज़्यादा नई मुसीबतें खड़ी हो जाएँगी. ). यह देखने के बाद की लिंग संतुलन की दृष्टि रखना मानवाधिकारों के सर्वोत्तम मूल्यों के साथ मिलता है, और साथ ही साथ हमारी संस्कृति और उसके आर्थिक और राजनैतिक प्रणालियों को भी फ़ायदेमंद है, अब हमें यह पूछने की ज़रूरत है की उसकी ओर बढ़ने के लिए हमें क्या तरीके अपनाने चाहियें. यह एक ऐसा नुस्ख़ा तरीका जिससे एक ही तरह से सबको ठीक करने की कोशिश की जाए, अपनाने का समय नहीं है. हर स्थिति का विश्लेषण करना ज़रूरी है और फिर उसके अनुसार एक समाधान निकालने की ज़रूरत है. कॅटलीना टरजिल्लो, यू.न.सी.एच.स. की प्राकृतिक वास में महिलायें प्रोग्राम से संबंधित, ने इस लक्ष्य के सन्धर्भ में एक जानमाना नारा एस्तेमाल किया: "सारे संसार के विषय में सोचो, और काम स्थानीय स्तर पर करो" देखें यू.न.सी.एच.स. जब किसी भी सामाजिक बदलाव के बारे में सोचा जाता है, तो कुछ लोग ऐसे मिलेंगे जो बदलाव के पक्ष में होंगे और कुछ विरोध में. उधारणतः, यह मामला समुदाय की सहभागिता के विषय में कार्यकर्ता हस्तपुस्तक में उठाया गया था. बदलाव के विरोधी अक्सर वह लोग होते हैं जो सोचते हैनकी बदलाव होने से उनका कुछ छिन जाएगा. आश्चर्यजनक बात यह है की कभी कभी जो अभी नुकसान में हैं, वे भी बदलाव का विरोध करेंगें, क्योंकि वो भी सोचते हैं की उनका कुछ छिन जाएगा, चाहे वह आपके लिए मूल्यवान ना हो. कभी कभी जो लोग दबे हुए हैं, दास हैं या बंधित है, वे अपनी बेड़ियाँ नहीं खोना चाहते, क्योंकि उन्हें उनसे सुरक्षा मिलती है और उन्हें लगता है की ज़िम्मेदारी न उठाने और फ़ैसले ना लेने की आज़ादी उनसे छिन जाएगी. जो लोग सोचते हैं की बदलाव से उन्हे फायदा होगा, अपने अब तक समझ ही लिया होगा, की वे आपके और जो बदलाव चाहते हैं उनके सहयोगी हैं, या बन सकते हैं. आपकी रणनीतियाँ, इसलिए, ये दिखायें की जो प्रस्तावित बदलाव है वह सबको फायदा करेगा, उनको भी जो अभी सोचते हैं की वो कुछ खो देंगें. जो बदलाव है, उसे उसके विरोधियों के लिए लाभकर बनायो, और हो सकता है की वे अपना विरोध वापिस ले लें और बदलाव को सक्रिय रूप से समर्थन भी दे दें. यह विचार के रूप में आसान लगता है, परंतु करने में आवश्यक रूप से आसान नहीं है. एक और समान बात है जैसे मज़दूर संघ रचना. एक संघ बनाने से सभी सदस्यों को बेहतर आमदनी और कम करने की परिस्थितियाँ मिलने से फायदा होगा, मगर तभी अगर सारे या काफ़ी लोग संघ मे जुड़ें. एक बात आप जानते हैं, जैसा पहले कहा गया था, की संस्था, समुदाय या समाज, दोनों स्त्रियों और पुरुषों की सहभागिता से फ़ायदे में रहेंगें. किसी भी वर्ग के लोगों की सहभागिता पर रोक हटाने से हर तरह की आगत (राजनैतिक, सांस्कृतिक, तकनीकी, आर्थिक) ज़्यादा विविध, धनी और ज़्यादा रचनात्मक होगी. यह पूर्ण को शक्ति प्रदान करेगा (उसकी क्षमता बढ़ेगी) और उसके सदस्यों को भी फ़ायदा करेगा. उन लोगों को जो सामाजिक और राजनैतिक रूप से ज़्यादा जागरूक हैं, यह बात बतानी आसान होगी. इसलिए आपका सुग्राही कार्य, जैसा पहले कहा गया, सिर्फ़ असमानतायों पे ही न बात करे बल्कि लिंग संतुलन बढ़ाने से समाज और हर सदस्य को जो फ़ायदे होंगें, वे भी दिखायें. मूल्य ये है की सबको सम्मिलित करने वाली नीति पूरे (समुदाय, संस्था और समाज) और उसको बनाने वाले व्यक्तियों को भी फ़ायदेमंद होगी. लिंग को मुख्य धारा में लाना: बहुत सामाजिक बदलाव या विकास योजनायों की एक समान रणनीति होती है , बदलाव की शुरुआत एक क्षेत्र में करना और फिर उसकी सफलता को देखते हुए और सीखें सीखते हुए उसे पूरे समाज से जोड़ देना. आपके काम के लिए, संगठन कार्य, ग़रीबी घटाने, संस्थायों का क्षमता विकास, प्रबंध शिक्षण, स्वयंनिर्भरता के लिए प्रोत्साहन, के लिए यह तरीका ठीक नही होगा. लिंग संतुलन और जागरूकता को मुख्या धारा से जोड़ना आपके काम के शुरू में ही कर लेना सबसे अच्छा है और अंत तक करना चाहिए. पहले केवल कुछ ही हिस्सों में लिंग पर ध्यान देने में यह दिक्कत है, जैसा पहले कहा गया है, की यह मुद्दा किनारे हो जाएगा. अगर आप एक लिंग कार्यशाला आयोजित करते हो, तो काफ़ी संभव है की केवल वे सहभागी आएँगे जो पहले से समस्या के बारे में जानते हैं और समाधान चाहते हैं. अगर आप लिंग जागरूकता और संतुलन के प्रोत्साहन की रणनीतियों का खास विषय अपने सब शिक्षण सत्रों में शामिल करेंगें, और अपने और काम के साथ मिलाएँगें, तब ज़्यादा संभव है की आप ऐसे लोगों को शामिल करेंगें जिन तक आपका संदेश पहुँचना चाहिए. केवल एक ही समय लिंग पर ज़ोर देती हुई कार्यशाला काम आएगी जब आप शिक्षकों की शिक्षा आयोजित कर रहे होंगें या फिर जब आप क्षेत्र कर्मचारियों या स्वयंसेवकों को बता रहें हैं; तब आपको रणनीतियाँ बनानें पे ध्यान देना होगा ना की केवल जागरूकता बढ़ाना पे. ऐसे में आप एक लिंग रणनीति को लागू नहीं कर रहें हैं, बल्कि अपने कर्मचारियों और मददगारों को एक रणनीति बनानें में तैयार कर रहें हैं. इस बीच, अपनी सब क्रियाओं में, समुदायों को संगठित करना, समूह बनाना, प्रबंध शिक्षण, क्षमता विकास, ग़रीबी कम करना, आपको लिंग जागरूकता और संतुलन को सम्मिलित करना होगा. मुख्य धारा में जोड़ने के काम शुरू से करना होगा. निष्कर्ष: लिंग जागरूकता बढ़ाना और लिंग संतुलन प्रोत्साहित करना संगठन कार्य का, प्रभंध शिक्षण का, क्षमता विकास का और ग़रीबी कम करने का एक महत्वपूर्ण भाग है. आपको स्थिति के अनुसार रणनीतियाँ विकसित करनी होंगी, जो बदलाव का विरोध करेंगें उन्हें पहचानना होगा, उन्हें उनको होने वाले फ़ायदे के विषय में जागरूक कराना होगा, और यह सब अपने काम में शुरू से ही सम्मिलित करना होगा. कोई एक खास नुस्ख़ा या कुछ निर्धारित क्रियायें नहीं हैं जिनका पालन करना है. आपको परिस्थिति का विश्लेशण करना पड़ेगा, इस दस्तावेज़ में लिखे मूल्यों को इस्तेमाल करना पड़ेगा और फिर एक स्थिति अनुसार एक उपयोगी रणनीति बनानी होगी. ––»«––एक कार्यशाला: © कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
––»«–– |
मुख्य पृष्ठ |
लिंग |