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मिल कर समीक्षा करने के तरीके

PRA / PAR के तक्नीकों पर दोबारा नज़र

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

translated by Parveen Rattan


संयोजक के लिये निर्देश
PRA, जो संक्षिप्त रूप है (ग्रामीण सह-सम्मत समीक्षा), पहली नज़र में भ्रम में डाल सकता है, क्यों कि इसमे "गांव" का उल्लेख आता है, जब कि इसका प्रयोग शहरों में भी हो सकता है, क्यों कि इसका मूल लक्षय है "समीक्षा" या "परख" फिर भी कभी कभी यह योजना बनाने ऒर उसकी रूपरेखा तैय्यार करने के दौरान भी काम में आता है.

एक चीज़ जो इसमे नही बदलती है वह है सब कासम्मलन या भागीदारी." यह समाज के सदस्यों की भागीदारी हो सकती है (गांव या शहर के), या फिर किसी संस्था के सद्स्यों की.

उन सद्स्यों को बोलने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जिनकी अक्सर आवाज़ हमें नही सुनती. एक सहायक की भूमिका में आपका कार्य है इस क्रिया को ठोस रूप देना और उसे बढ़ावा देना, किन्तु इसमे किन विषयों की चर्चा होगी, यह निर्णय सिर्फ सद्स्यों का होना चाहिये. जानकारी एकत्र करना ऒर उसका विष्लेषण खुद सद्स्यों द्वारा ही किया जाता है, और आप इस क्रिया में सिर्फ एक सहायक होते हैं, नियन्त्रक नहीं.

मिल कर समीक्षा करने के तरीके:

सह-सम्मत समीक्षा के विभिन्न तरीके हैं. अपने काम के दौरान अपने अनुभव से, आप खुद भी अपने तरीके बनायेंगे, बदलेंगे, चुनेंगे .

शुरुआत के लिये यहां ऐसे ही कुछ तरीकों का उल्लेख है. इन्हें आप अपनी सुविधा और स्तिथि अनुसार बदल सकते हैं कि जिसका आधार हो सकता है जगह, समय, या समाज के सद्स्यों के निजी हालात आदि.

मान-चित्र बनाना:

समाज के हालात का चित्र बनाना शायद सबसे अच्छा तरीका है, आपको और समाज को इस काम की शुरुआत के लिये. सद्स्यों को एकत्र करके उनके साथ पूरे ईलाके की पैदल यात्रा करें, और उन्हें उस जगह का चित्र बनाने दें. इसमें सभी चीज़ों का उल्लेख होना चाहिये - सार्वजनिक सुविधायें, इमारतें, साधन, और बाधायें. उनके लिये आप यह चित्र न बनायें.

एक तरीका है कि सभी लोग अलग से अपने अपने मानचित्र बनायें और फिर बाद में मिल कर इनकी मदद से एक सामूहिक चित्र तैय्यार करें (जैसे किसी बड़े चार्ट पेपर पर) जिसमें सभी चित्रों का सम्मिष्रण हो. निवासियों द्वारा बनाये गये चित्रॊं से अक्सर बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाती है, जो कि कभी कभी वैग्यानिक ढंग से बनाये गये चित्रॊं से भी नही मिलती. इन चित्रॊं से लोगों का दृष्टिकोण नज़र आता है, और साथ ही बहुत सी जानकारी मिलती है वहां के लोगों के विषय में, उनकी ज़मीन के बारे में, उनके रहन-सहन के बारे में.

इन चित्रों और नमूनों के बीच में (जिनका उल्लेख अभी होगा), आप लोगों को ज़मीन पर ही लकड़ियों की मदद से अपने चित्र बनाने को कह सकते हैं. ऐसा करने से, आप देखेंगे, कि खुद ब खुद ही चित्र बनाने की क्रिया भी सामूहिक क्रिया बन जाती है.

नमूने:

अगर सद्स्य ज़मीन पर बनाये चित्र में पत्थर या लकड़ियां आदि जोड़ने लगें तो वह एक सरल से चित्र को एक ठोस नमूने का रूप दे देते हैं. आप उनके लिये यह काम कदापि न करें; उन्हें ही इसे करने के लिये प्रेरित करें. उन्हें देखते समय आप ध्यान दें कि वह लोग पहले कौन सी सुविधायें बनाते हैं, कौन सी बड़ी होती हैं, ऒर कौन सी छोटी.

इससे आप को कुछ अन्दाज़ हो जायेगा कि उनके लिये किन चीज़ों का महत्व अधिक है. अपने विचारों को लिख लें. यह आपको समाज को समझने में बहुत उपयोगी होंगे.

चित्र की एक प्रतिलिपि और उनके द्वारा बनाये गये नमूने को संभाल कर रखें. यह बाद में बहुत उपयोगी सिद्द होंगे, और दुबारा यात्रा के दौरान इनमें और भी जोड़ किये जा सकते हैं

समाज की विस्तृत सूची बनाना:

इस प्रकार की सूची बनाना,और सूची बनाने की क्रिया सहयोगी समीक्षा का शायद सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य भाग है.

समाज की विस्तृत सूची बनाने के कार्य की तुलना कभी कभी अनॊपचारिक इन्टरवियु लेने से भी की जाती है. अगर यह बिल्कुल ही अनौपचारिक हो जाय तो वह सिर्फ बिना मतलब की बातचीत हो रह जाती है. इसके विपरीत "विचारों के आदान-प्रदान " का कार्यक्रम बहुत ही नियमबद्ध होता है. (इस कार्यक्रम के बहुत लाभ हैं, खास कर के उस समय जब समाज अधिकारीकरण के लिये योजना की रूप-रेखा बनाई जा रही हो). सूची बनाने की क्रिया इन दोनों के मध्य में कहीं है. यहां चर्चा भी इतनी नियमबद्ध नही है, और सद्स्यों को मौका दिया जाता है कि वह अपने विचारों को विस्तार से पेश करें और उन पर गौर करें.

यहां आप पहले से ही चुने हुए प्रशनों के साथ काम नही करते, किन्तु फिर भी अच्छा होगा अगर आप कम से कम कुछ विषयों की सूची साथ रखें जिससे आप तय कर सकें कि कोई विषय छूट न जाय. इस सूची बनाते समय ध्यान रखें कि आप समाज के साधनों ऒर बाधाओं दोनों ही की सूची बनायें. सभी सार्वजनिक सुविधाओं का उल्लेख करें, जो सही तरह से काम कर रही हैं, ऒर वह भी जो नहीं काम कर रही हैं. संभावित अवसरों ऒर मुश्किलों को भी ध्यान में रखें, चाहे वह अभी हों या आने वाली हों. याद रहे कि यह समीक्षा है.

ऐसी सूची बनायें जिसमे समाज की क्षमताओं ऒर कमज़ोरियों, दोनों ही की जांच हो. आप का कार्य सिर्फ सदस्यों को सूची बनाने की क्रिया में मदद करनी है, उनके लिये सूची नही बनानी है.

ग्रुप में केन्द्रित चर्चा:

सद्स्यों में कई तरह के अनुभव और विचार हो सकते हैं, या हो सकता है उनमें झिझक भी हो अपने विचार बाहर के लोगों के सामने पेश करने में, या खुद अपने लोगों के बीच में भी वह सब विचार न कहना चाहें. ऐसे हालात में केन्द्रित चर्चा उपयोगी हो सकती है. यहां पर अच्छा होगा अगर आप सहायक का काम अकेले न करें. दो या तीन सहायकों के साथ काम करें, जिनमे से एक तो चर्चा को दिशा दे, ऒर बाकी जो कहा जा रहा हे उसे नोट करें

चर्चा के लिये कुछ विषय ही चुने जाने चाहिये विस्तृत सूची में से. पहले अलग अलग रुचि के सद्स्यों केल लिये आप अलग कक्षा लें और उनके विचार नोट कर लें, उसके बाद उन सब लोगों को एक साथ बुलायें ऒर तब उनके खास खास रुचि के विषयों की चर्चा करें. यहां सावधानी बरतनी ज़रूरी है. यद्यपि आप अलग अलग रुचि के वर्गों को मान्यता देते हैं, आप कभी यह न चाहेंगे कि उन वर्गों के बीच की दूरी पहले से भी अधिक हो.

देखिये प्रशिक्षण लेख, एकता संगठन.

आप यह भी नही चाहते कि सभी वर्ग मिट कर एक हो जायें; आपका लक्ष्य तो सिर्फ इतना है कि लोगों में एक दूसरे के प्रति सहयोग हो, सुहानुभूति हो, समझ हो, ऒर अपने भेदों के साथ रहने की सहनशक्ति हो. छोटे दलॊं में केन्द्रित चर्चा करने से आपको अवसर मिलता है अलग रुचि के वर्गों के साथ अलग अलग काम करने का-- खास तौर से उनके साथ भी जिन्हें दूसरों के साथ मिलाना मुश्किल लगता हो; किन्तु आपका प्रयत्न रहना चाहिये कि आप सभी वर्गों को साथ ला सकें

रुचि-अनुसार क्रम:

जब आप समाज में अलग अलग रुचि के सद्स्यों के साथ काम कर रहे हैं, तब आप अलग अलग वर्गॊं को अपनी प्राथमिकतायों की सूची बनाने को कह सकते हैं. इसके बाद सभी वर्गों को एकत्र करके इन सूचियों की जांच करें

यह एक अच्छा तरीका है लोगों की झिझक मिटाने का, ऒर इससे चर्चा भी विषय पर केन्द्रित रहती है.

धन-अनुसार क्रम:

यह एक अच्छा तरीका है जानने का कि समाज के सद्स्यों के लिये (१) गरीबी का अर्थ क्या है, (२) उनकी नज़र में सच्मुच गरीब कौन हैं, ऒर (३) अमीर कौन हैं. यह कार्य सही ढ़ंग से तब ही होता है जब आप और वहां के लोगों के बीच में काफी अपनापन और समझ आ जाये.

इसके लिये एक अच्छा तरीका है कि आप हरेक परिवार के नाम से एक कार्ड बनायें. फिर कुछ वहीं के लोग चुनें. ऒर उन्हें कहें कि इन कार्डों को अलग अलग रखें उन परिवारों की खुशहाली ओर माली हालत के अनुसार, ऒर इस वैभाजन की वजह भी दें (कारण) कि ऐसा उन्होने क्यों किया है. वह सद्स्यों का ऐसा विभाजन क्यों करते हैं, किन श्रेनियों में करते हैं, ऒर इसके लिये क्या क्या कारण देते हैं, इन सबसे उस समाज के लोगों की सोच ओर वर्गीकरण के विषय में बहुत जानकारी मिल सकती है.

मौसम अनुसार और ऐतिहासिक बदलावों का चित्रण:

एक छोटे समय के दॊरान आपकी नज़र से कई बदलाव बच निकल सकते हैं - जैसे मौसम या ऐतिहासिक कारणों से जो बदलाव होते हैं.

इसके लिये आप कई चित्रांकन के तरीकों का उपयोग कर सकते हैं जिनसे कई विषयों के बदलाव की जानकारी मिल सकती है, जैसे: वर्षा, मज़दूरी, खेती (मछली पकड़ना, शिकार, भेड़ चराना) आदि, आग के लिये लकड़ियां चुनना, बीमारी, नौकरी के लिये बाहर जाना, खाद्य भंडार, ऒर कई ऒर ऐसी चीज़ें जो समय के अनुसार बदल सकती हैं. आपके बनाये हुए चित्रों को आधार बनाकर अच्छी चर्चा हो सकती है बदलाव के कारणों के विषय पर, ऒर इनका क्या असर होता है लोगों पर.

बड़े पैमाने पर संस्था का चित्रण:

अपको पहले बताया गया था कि समाज सेवक को एक सामाजिक वैग्यानिक की भांति होना चाहिये, एक कर्मठ सामजिक वैग्यानिक. समाज के रीति रिवाजों की जानकारी एक छोटे समय में पाना बहुत मुश्किल है. अमीरी गरीबी के जटिल संबन्ध, पारिवारिक समस्यायें, राजनीतिक दांव पेंच आदि, यह सब एक छोटे दौरान में नही समझे जा सकते. ऐसे हालात में सामूहिक ऒर भागीदारी समीक्षा बहुत काम में आती है.

समाज के कुछ कम जटिल संबधों को जानने के लिये एक ऒर तरीका है - कि आप कुछ लोगों को एक Venn (वेन्न चित्र) बनाने को कहें. यह बहुत ही आसान क्रिया है जिसमे यह लोग गोलचक्कर बनाते हैं, ऒर हर एक चक्कर समाज के एक अलग दल या अंग का होता है. ऒर इस क्रिया में हरेक चक्कर का आकार उस दल की महत्ता की जानकारी देता है - जितना बड़ा आकार उतना महत्वपूर्ण दल, ऒर जितना छोटा आकार उतनी कम उसकी महत्ता. इसके अलावा अगर दो चक्करों का आकार एक दूसरे कॊ काटता हो (यानि एक ही जगह पर दो चक्करों की परिधि हो) तो इससे मालूम होगा कि इन दोनों दलों में कितना सहयोग ज़रूरी है.

कौन सा तरीका कब उपयुक्त है:

PRA/PAR के तकनीक सबसे उपयोगी तब होते हैं जब आप समाज की समीक्षा चाहते हैं ऒर खास रूप से सद्स्यों द्वारा समीक्षा करवाना चाहते हैं. यह तरीके अधिकारीकरण की प्रक्रिया में हर एक चरण के लिये उपयुक्त नही हैं.

जैसे मान लीजिये कोई विषेष कला सिखाने की ज़रूरत मानी गई हो. ऐसे में प्रशिक्षण (कला सिखाने के लिये) भी भागीदारी हो सकता है, इस अर्थ में कि लोग खुद कर के सीख रहे हैं, पर ज़रूरी नही कि यहां PRA/PAR के तरीकों का उपयोग हो.

सद्स्यों को कोई बात समझाने के लिये हम अलंकारों, कहावतों, कहानियों आदि का उपयोग भी करते हैं. एक ऐसी कहावत है, "मुर्गी से दूध मत मांगो, ऒर न ही गाय से अन्डे."

इसी तरह PRA/PAR के तकनीकों से हम सिर्फ मिलकर समीक्षा करना चाहते हैं, ऒर कुछ नही.

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: ०६.०८.२०११

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