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समाज की व्यवस्थ



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कर्म के लिये व्यवस्था

भूमिकायें और उत्तरदायित्व

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

translated by Parveen Rattan


प्रशिक्षण लेख

कोई भी जुट, अलग अलग उद्देश्यों के लिये, अलग अलग ढ़ंगों से संयोजित किया जा सकता है; आपको ऐसी संयोजना करनी चाहिये जिससे संस्था के सभी कार्य-क्रम प्रभावशाली हों

कई लोगों को समाज सेवक की यह बात - अलग उद्देश्यों के लिये अलग तरह के संयोजन- समझ नही आती है

यहां पर दो सबसे महत्वपूर्ण तरह के संयोजन हैं:
  1. सही निर्णय के लिये व्यवस्था
  2. कर्म के लिये व्यवस्था
निश्चित ही इन दोनों में निकट संबन्ध हैं .

जब आप समाज की अधिकारी समिति बनाने में मदद कर रहे थे, तब आप निर्णय लेने की व्यवस्था तैयार कर रहे थे

और, अब जब आप समाज के साथ निश्चय कर रहे हैं कि कौन क्या करेगा (जैसे किसी भी योजना में), आप कार्य पूरा करने की व्यवस्था कर रहे हैं. देखिये कर्म के लिये व्यवस्था.

यद्यपि कुछ दोहराव हो सकता है, कार्य के लिये संयोजन करते समय आप को कुछ ऐसे व्यक्ति चुनने चाहिये जो कुछ खास काम कर सकें. यह बहुत ज़रूरी है

अगर कोई कार्य निश्चित किया गया है (उदाहरण के लिये छत के पतरों को योजना स्थल तक पहुंचाना), तो उसे ऐसे ही सारे समूह के ऊपर नही छोड देना चाहिये. इस तरह हो सकता है कार्य कभी पूरा ही नही हो क्यों कि हर कोई सोच सकता है कि कोई और इसे पूरा कर देगा.

किसी एक व्यक्ति को बहुत ज़िम्मेदारियां भी नही देनी चाहिये, जैसे अधिकारी समिति का मुख्य. आवश्यक है कि सभी कार्य और उत्तरदायित्व दूसरे सदस्यों को भी दिये जायें (खास तौर पर उन्हें जो समिति में न हों) जहां तक संभव हो.

सबके सहयोग और योगदान के महत्व को जितना हो सके समझाइये. पक्का कीजिये कि जब किसी व्यक्ति को कोई कार्य दिया जाये, तो सबको यह बात मालूम हो. और अगर कोई कार्य समय पर पूरा नही हो तो वह व्यक्ति सारे समाज का जवाबदार हो

कोई भी सामूहिक कार्य (जिसमें आप मदद करते हैं) बिना सोचे समझे न हो अनायस ही न हो. यह पूर्व निश्चित होना चाहिये.

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वर्क शौप; कर्म के लिये व्यवस्था:


वर्क शौप; कर्म के लिये व्यवस्था

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
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आखरी अपडेट: ०५.०८.२०११

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