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समाज की व्यवस्थ



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उनके प्रशिक्षकों के लिये दिशा-दर्शन

के द्वारा फिल बार्टले, पीएच.डी.

translated by Parveen Rattan


प्रशिक्षकों के लिये दिशा-दर्शन

आम व्यक्ति को किस तरह समाज का प्रबन्धक बनाया जा सकता है

अगर समाज को मज़बूत करने में उसका सही संयोजन सबसे महत्वपूर्ण है, तो ये कला हम उन व्यक्तियों को कैसे दे सकते हैं जो यह सीखना चाहते हैं? जो लोग समाज सेवक बनने की क्षमता रखते हैं उनके लिये इस अंश के शिक्षन लेख, मुख्य सिद्दान्तों को समझने में और इसकी कला प्राप्त करने में बहुत उपयोगी होंगे. अगर आप उनका शिक्षण कर रहे हैं तो आप जानना चाहेंगे कि इन लेखों का कैसे उपयोग करना चाहिये.

हमेशा की तरह हमारी सलह है कि आप ज़रूर प्रशिक्षण के तरीके, अंश को देखें जिसमें आम मार्ग-दिशायों की चर्चा है. इस अंश का केन्द्र है व्यवस्था की कला पैदा करना. यह कला एक अनोखा मिष्रण है दो भिन्न कलाओं का ─ ट्रेड युनिअन संयोजन की कला और वरिश्ठ अधिकारियों की प्रशिक्षण कला. हमारी राय में आपको एक और अंश विशेष रूप से देखना चाहिये विभागीय (वर्गीय) साक्षरता. इसमें हमारी सलह है कि प्रशिक्षकों को अंध रूप से रूड़िवादि या परम्परागत तरीके नही उपयोग करने चाहिये, किन्तु मूल तत्वों से शुरु करके उनसे नये तकनीक नये समाधान निकालने चाहिये

क्रिया प्रशिक्षण

इस छोटे से लेख में हम सिखाते हैं कि समाज के सद्स्यों को अगर योजना बनाना सिखाना है तो, यह सच में योजना बनाकर ही सिखाया जा सकता है. यह वही सिद्दान्त है जो आपको समाज सेवकों के प्रशिक्षण में उपयोग करने चाहिये

अपने विद्यार्थियों को याद दिलायें कि पारम्परिक शिक्षन संस्थायों में एक निश्चित पाठ्यक्रम (कोर्स) होता है, और उनकी प्रगति का माप करने के लिये देखा जाता है कि परीक्षा में वह किस तरह करते हैं (या अपने दिये हुए कार्य कैसे करते हैं ). उनकी परख होती है, और परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिये जो भी उन्होंने सीखा है, उन्हें सही रूप से लिखना होता है. और क्रिया प्रशिक्षण में, इसके विपरीत, हमारे शिष्यों की परख के लिये जांचा जाता है कि उनके कार्य, शिक्षण के बाद कैसे हैं; न कि यह देख कर कि वह परीक्षा मे किस तरह करते हैं या किस तरह के लेख लिखते हैं,जिसमे सिर्फ़ उनकी परीक्षा देने की क्षमता बाहर आती है

इसे अपरम्परागत प्रशिक्षण कहते हैं

कहने का तात्पर्य है कि हम अपने कार्यकर्तायों को कहते हैं कि समाज के सद्स्यों को अपने आप कार्य करके सीखना चाहिये न कि स्कूल की भांति परीक्षायें देकर. उनकी परख के लिये जांचिये कि वह क्या करते हैं न कि उन्हें कितना याद है. उनकी शिक्षा का उद्देश्य बनाइये कि वह खुद समाज के किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये स्वयं योजना बना सकें. उन्हें स्वयं को संयोजित करने दीजिये (अपने शिक्षक की मदद से जो कि समाज के कार्यों में उनका सहायक है) कि वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें (इसे एक नया रूप दीजिये "योजना"). उनके शिक्षण की सफ़लता नापने के लिये देखिये कि वह कितनी सफ़लता से अपना लक्ष्य पाने के लिये अपने को संयोजित कर सकते हैं

अपने ग्रुप (जुट) को मानने दीजिये कि वह पूर्ण समाज हैं. फिर उन्हें स्वयं ही तय करने दीजिये की उनके समाज में क्या बदलने की ज़रूरत है, उसके लिये उन्हें कैसे स्वयं को व्यवस्थित करना चाहिये, और उसके अनुसार एक पूरी योजना की रूप-रेखा बनायें

इस योजना को आधार बनाकर चर्चा कीजिये जिससे साफ़ हो जाये की (१) निर्णय के लिये व्यवस्था और (२) कार्य के लिये व्यवस्था, में क्या अन्तर है. इसी चर्चा में उनसे ही समझिये कि किसी भी योजना बनाने के, और उसके लिये व्यवस्था करने के, मुख्य सिद्दान्त क्या हैं

प्रशिक्षण वर्क-शौप में जांच का आधार है कि सद्स्य कितनी अच्छी तरह कोई योजना बनाते हैं. आपके पूरे कार्य में. उनकी परख का आधार होगा कि वह कितनी सफ़लता से समाज के अन्य सद्स्यों को कोई सामाजिक योजना बनाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं

अधिकारी समिति की स्थापना

यह भाग अत्यन्त मनोरंजक, और फिर भी उपयोगी हो सकता है. इसके लिये कम से कम २० लोग होने चाहिये.

अगर आप चाहें तो इसे या तो "योजना कार्य प्रणाली" और "प्रयोजन रूप-रेखा" वाले अंशों के बाद कर सकते हैं या उन्हीं के साथ मिला सकते हैं. इस हालत में यह पूरा शिक्षण अंश पूरे दिन तक चल सकता है.

इसको ऐसे समझिये जैसे सारा ग्रुप एक नाटक कर रहा हो और दर्शक कोई न हो. (अगर कोई बडे मेहमान भी आयें तो उन्हें इस खेल में शामिल कर लेना उचित होगा, और उन्हें सिर्फ़ दर्शक न रहने दें; अगर वह सिर्फ़ दर्शक बने रहे तो बाकी लोगों को झिझक मह्सूस होगी और उनकी नई और रचनात्मक विचारधाराओं में बाधा पडेगी).

इसमें ग्रुप का कार्य है अपने को ही पूरी संस्था समझना, एक अधिकारी समिति का चयन करना जो एक पूरी योजना तैयार करे, और उसकी रूप-रेखा ऐसी हो कि हर एक सद्स्य उसमें सक्रिय भाग ले सके.

सोचना कि यह सब कैसे होगा प्रशिक्षण का उतना ही महत्वपूर्ण अंश है जितना कि भूमिकायें निभाना. जैसा कि इस तरह के खेल शिक्षण में अक्सर होता है बाद में चर्चा और विचार करना ज़रूरी है कि इस अंश में क्या क्या हुआ. इसमें से निश्कर्ष निकालिये कि ऐसे कौन से सबक हैं जो कि आपके काम आयेंगे जब आप सचमुच ही समाज सेवा की व्यवस्था में लगेंगे.

किसी एक व्यक्ति को भूमिका के लिये चुनना और उसके एक या दो "सलह्कार" चुनना उपयोगी होगा. यह "सलह्कार" बीच बीच में खेल को रोक कर उसे सलह देंगे, और अगर समय हुआ तो उसे सिखायेंगे कि वह अपनी भूमिका को कैसे और मनोरंजक, नाट्कीय, और मज़ेदार बनाये.

कोई मौलिक स्थिति सोचिये जिस पर ग्रुप काम कर सके. इसमें आप ऐसे प्रतिनिधि चुनें, जैसे कोई मुखिया या सलह्कार, या फिर सरपंच या मेयर. जो भी उस इलाके में हो सकता है जहां समाजसेवक काम करेगे. जितने ग्रुप में सद्स्य हों उसके मुताबिक दो या तीन लोग यह भूमिका निभायेंगे और एक या दो व्यक्ति सलह्कार बनेंगे

फिर आप समाज में हर तरह के सद्स्यों के बारे में सोचिये. खास तौर से ध्यान रखिये कि आप उन लोगों को इस प्रतिक्रिया में शामिल करें जो अक्सर छूट जाते हईं. जैसे कि कई पिछड़ी जगहों में औरतें, अपंग,निम्न वर्ग के लोग, अल्पसंख्यक इत्यादि के साथ होता है. पश्चिमि समाज में यह बुज़ुर्ग लोग या फिर अपराधी वर्ग के लोग भी हो सकते हैं

एक मूल सिद्दान्त – जो आपको सबको सिखाना चाहिये, कि जहां तक हो सके उन्हें ऐसी भूमिका निभानी चाहिये जो उनकी असली ज़िन्दगी से दूर है " जैसे किसी आदमी कोऔरत" की भूमिका. या फिर एक सेहतमन्द व्यक्ति कोअपंग" की भूमिका. या एक शर्मीले. शान्त व्यक्ति को एक ऐसे राजनीतिग्य की भूमिका जो अपनी कुर्सी का नाजायज़ उपयोग करे सिर्फ़ अपने ही भले के लिये

इससे हम इस प्रक्रिया के एक और पक्ष पर पहुंचते हैं. ऐसे लोगों की भूमिका भी बनाइये जो कि किसी भी कार्य में बाधा डालते हैं "मंकी रेन्च फेंकना"(१) ऐसे सद्स्यों की भूमिका रखिये जो समाज की प्रक्रियाओं का उपयोग, अपना निजी मतलब पूरा करने के लिये करते हैं. उदाहरण के लिये जैसे किसी स्कूल का प्रमुख समाज को समझाने की कोशिश करे कि उनकी सबसे बड़ी ज़रूरत एक नया विद्यालय है.

नोट: कहावत "मशीनरी में मंकी रेन्च फेंकना"से तात्पर्य है कुछ ऐसा करना जिससे काम में बाधा पड़ॆ; यह कारीगरों और मेकनिक्स में बहुत प्रचलित है. मंकी रेन्च खुद में बहुत ही उपयोगी साधन है जिससे पेच कसे जाते हैं, किन्तु अगर गलत जगह फेंका जाये, या चलती मशीन मे फेंका जाय तो बहुत नुक्सान कर सकता है.

समाज सेवक की भूमिका के साथ कम से कम दो सलह्कार होने चाहिये, या दो समाज सेवकों को मिल कर उसे संयोजित करने का कार्य देना चाहिये. यह ऐसे व्यक्ति होने चाहिये जो हर बाधा डालने वाले व्यक्ति का सामना कर सकें. इसके लिये मनोबल और अनुभव, दोनों ही आवश्यक हैं.

एक और तरीका जो आप अपना सकते हैं किसी भ्रष्ट नेता या मुखिया (की भूमिका), किसी को दें जो कोशिश करे ऐसे हालात बनाने की जिनसे कुछ भी साफ़ न हो, और इसका फायदा उठा कर वह समाज की व्यवस्था को अपने निजी लाभ के लिये उपयोग करे.

एक और भूमिका आप सोच सकते हैं किसी अत्यन्त ही आलसी व्यक्ति की. किन्तु यहां पर फर्क सिर्फ़ इतना होगा कि वह कहेगा कि वह आलसी है, जब कि असली ज़िन्दगी में ऐसे लोग गायब ही हो जायेंगे

कोशाध्यक्ष की भूमिका की चर्चा पूरे ग्रुप के साथ कीजिये. ऐसे दो व्यक्तियों को ध्यान में रखिये जो यह भूमिका कर सकें. एक शिक्षक जिसे हिसाब किताब रखने का अनुभव हो, पर जो किसी और इलाके का हो, जिसके इस समाज के साथ कोई बंधन या लगाव न हो, न ही समाज का उस पर कोई दबाव हो जिससे वह ईमानदार रहे. (ऐसे लोग अक्सर सिर्फ़ धन तक अपनी पहुंच चाहते हैं और अवसर मिलते ही उसे गबन कर जाते हैं). दूसरी ओर एक बूढ़ी, अनपढ औरत जिसे गिनती आती है पर पढना लिखना नही, किन्तु जिसे सब जानते हैं, सब विश्वास करते हैं. वह समाज के लिये भला चाहती है और वही करेगी जो सबके हित में हो.

इस ग्रुप का मुख्य कार्य है, इन सभी भूमिकायों द्वारा, एक समिति को चुनना और निर्णय लेना कि इस समिति में कौन कौन होगा. ग्रुप को याद दिलाइये कि बहुत समाजों में चुनाव की प्रक्रिया लोगों को अलग करती है, बांट देती है, और सामुहिक चर्चा और विचारों के आदान-प्रदान के बाद जो निर्णय लिये जाते हैं वह अक्सर सब को मन्ज़ूर होते हैं, मिलाते हैं.

इस प्रक्रिया से सामूहिक निर्णय लेने में एक और फायदा है कि सभी अपने तर्क दे सकते हैं और सब लोग उनपर गौर कर सकते हैं. इस प्रक्रिया से जो संवाद पैदा होता है उसी से सद्स्य इस क्रिया की बारीकियां समझ सकते हैं जो उनके लिये असली स्तिथियों में बहुत लाभदायक सिद्द होंगी

इस पूरी चर्चा का विषय होना चाहिये ऐसी अधिकारी समिति का चयन करना जो समाज की चुनी हुई अधिकारिकरण (सामर्थ्य) प्रक्रिया को सार्थक रूप से चला सके

इसी अंश को आप बढ़ा भी सकते हैं; इसमें आप "समाज की योजना कार्य-प्रणाली तैयार करना" और "पहली योजना रूप रेखा बनाना" जोड़ सकते है

स्तिथि परखना (निरीक्षण)

>इस अंश (सह-सम्मत समीक्षा) को उचित रूप से दो अन्य भागों के बीच में आना चाहिये - "अध्यक्ष समिति की स्थापना" और "योजना कार्य प्रणाली बनाना". समाज के कार्यों में समीक्षा या निरीक्षण के बाद ही योजना बनानी चाहिये.

इस कला में प्रवीण होने के लिये, PRA या PAR की विधियों, की समझ और अभ्यास अत्यंत आवश्यक है. यह Sussex और Columbia विश्वविद्यालयों में निर्मित हुई थी.अगर आप को कोई PRA/PAR विषेश्ग्य मिल सकता है जो प्रशिक्षण में आपकी मदद कर सके तो यह सब से बेह्तर होगा.

यह एक अच्छा मौका है सद्स्यों को कक्षा से बाहर एक फ़ील्ड़ ट्रिप (अध्य्यन यात्रा) करने का. इसके लिये (शिक्षण शुरु होने से पहले ) आपको कुछ सप्ताह चाहिये जिसमे आप समाज के अध्यक्ष और अन्य सद्स्यों से मिलें. यह किसी ग्राम या फिर किसी शहर में हो सकता है. प्रशिक्षण के दौरान, पूरे ग्रुप को आस-पड़ोस में घूम कर इलाके की जांच करने दीजिये

इसे सिर्फ़ घूमने का मौका मत समझिये. ग्रुप के सद्स्यों को पहले से ही बता दें कि उन्हें खुद को इस इलाके का ही सद्स्य और भाग समझ्ना है. थोडे़ समय के लिये वह अपनी अन्य भूमिकायें भूल जायें और सिर्फ़ अपने को इस नये समाज का ही हिस्सा मान कर चलें.

उन्हें समझाइये कि यात्रा के दौरान उन्हें अपने विचार नोट करने हैं और यात्रा के बाद सबको मिलकर एक निष्कर्श पर पहुंचना है जिसमे सभी विषयों का उल्लेख हो -- जिनसे आप प्रभावित हुए हों या जो भी कमज़ोरियां आपने देखी हों. अच्छी बातों में वह सभी साधन और तत्व आयेंगे जो कि समाज की योजनायों में उपयोगी हो सकते हैं. खामियों में शामिल होंगी वह सब चीज़ें जिन्हे मरम्मत की ज़रूरत है या वह सार्वजनिक सुविधायें जो बेकार पड़ी हैं

अगर आप चाहें तो उसी समाज के किसी अनुभवी समाज सेवक को पद-यात्रा के बाद की चर्चा में शामिल कर सकते हैं. अगर ऐसा करें तो जब ग्रुप अपने निष्कर्श लिख रहा हो तो उसे एक और साधन के रूप में ही उपयोग करें. इस समय उसे ग्रुप को कुछ प्रस्तुत करने को न कहें.

सद्स्यों को कहें कि वह अपने विचारों को लिखें और साथ ही उस इलाके का एक मान चित्र भी बनायॆं.

जितने सद्स्य हों उन्हें ४ या ५ लोगों के ग्रुप्स में बांट दें. हर एक छोटे ग्रुप का कार्य होगा कि वह किसी अलग पहलू पर अपने निष्कर्ष तैयार करे. उन्हें चेतावनी दे दीजिये कि उनका कार्य यहां चर्चा करना नही है - उन्हें मिल कर अपने पहलू के लिये एक पूरी समीक्षा तैयार करनी है. उन्हें कागज़, कलम, बोर्ड आदि जो भी चाहिये हो दीजिये.

फिर सब सद्स्यों को साथ बुला कर उन्हें सम्मिलित रूप से एक सम्पूर्ण समीक्षा बनानी है. इसके बाद ही सब मिल कर इस समीक्षा की चर्चा और उस पर विवाद कर सकते हैं. यह ज़रूरी नही है और अगर समय हो तो ही करना चाहिये. इस प्रक्रिया का सब से महत्वपूर्ण भाग समीक्षा लिखना है. अगर बहुत अधिक चर्चा हो तो उबाने लगती है.

बाहर के PRA/PAR विशेषग्य को यात्रा के पहले या बाद में, कभी भी बुलाया जा सकता है.

सामाजिक योजना कार्य-प्रणाली और प्रयोजन रूप-रेखा

अक्सर निवासियों में (खास रूप से ग्रामीण इलाकों में), और नये समाज सेवकों में भी, योजना कार्य प्रणाली और योजना रूप रेखा का अन्तर स्पष्ट नही होता. यह इसलिये भी होता है क्यों कि कई जगह यह प्रथा रही थी कि समाज विकास अधिकारी खुद पूरी योजना तैयार करते थे और समाज के सद्स्यों को सिर्फ़ मुफ़्त मेहनत के लिये ही बुलाते थे.

इन्ही कारणों के लिये कई इलाकों में समाज सेवा का विरोध भी होता है. खास रूप से उन क्षेत्रों में जहां गुलामी रही हो, क्यों कि यहां समाज सेवा का मतलब ही मजबूरी की गुलामी हो गया था.

आप को पक्का करना होगा कि सभी सद्स्यों को बिल्कुल साफ़ हो कि अगर उन्हें दवाखाना चाहिये, या फिर कोई विद्यालय, या पानी की सहूलियत, या मकानों के वाजिब और सही किराये, तो यह सब उनको खुद ही करना पडेगा. उन्हें ही इसके लिये स्वयं को व्यवस्थित करना होगा और खुद ही इसके लिये योजना बनानी होगी, समाज सेवक को नहीं. यह काम इतना आसान नही है, क्यों कि अक्सर निवासी योजना बनाने की ज़िम्मेदारी नही लेना चाहॆंगे और तब समाज सेवक को लगेगा कि इससे तो सरल है कि वह खुद ही यह कार्य कर ले. किन्तु यह बिल्कुल गलत होगा.

जब आप यह अंश शुरु करें तो जो पहले अधिकारी समिति चुनते समय लोगों को भूमिकायॆं दी थी वही से जारी रख सकते है. कुछ भूमिकायें बदल भी सकते हैं. अगर आशा अनुसार सद्स्यॊं ने अनपढ बूढी औरत को चुना था, न कि पढे लिखे बाहर के व्यक्ति को, तो इन लोगों को अब आप नई भूमिकायें दीजिये. जो व्यक्ति अपने मतलब के लिये प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे है, उन्हे तो रखिये ही, और साथ ही कुछ और लोग ले लीजिये जिनके कुछ और अपने ही इरादे हों.

जैसे एक नई भूमिका ऐसे व्यक्ति की हो सकती है जो किन्ही भी कारणों के लिये इस पूरी समाज स्वावलंबन की प्रक्रिया के विरुद्द है, और जो कहता है कि तब तक रुकना चाहिये जब तक सरकार (या कोई विकास संस्था) उनके लिये यह सब नही करती. असल जीवन मॆं ऐसे विचार उन्ही लोगों के होते हैं जिनको पुराने ढंगों को कायम रखने में निजि लाभ होता है. यह अक्सर वहीं के नेता या अन्य अधिकारी हो सकते हैं जो वोटों के लिये या फिर अपनी निजि प्रगति के लिये दिखाना चाहते हैं कि वह कुछ कर रहे हैं और इसलिये लोगों को स्वावलंबी नही बनने देते.

अब अधिकारी समिति को कमरे के अगले हिस्से में बिठा दीजिये, और बाकी सब को कहिये कि वह समाज के आम सद्स्य हैं जो समिति में नहीं हैं. वह सब देख तो सकते हैं. किन्तु जब तक उन्हॆं समिति का कोई सद्स्य खुद नही बताता कि क्या चर्चा हो रही है उन्हें मालूम नही कि समिति क्या निर्णय ले रही है.

समिति ही यह निर्णय भी लेगी कि वह बाकी लोगों को अपने निर्णय कब बतायेगी.

समय समय पर समाज का एक आम सद्स्य आगे आकर अधिकारी समिति के सम्मुख बोलने की ईजाज़त मांगता है, और किसी निर्णय के पक्ष में या विरोध में अपने विचार पेष करता है. इसमें सब तरह के लोग शामिल होते हैं - वह जो समाज के भले की सोचते हैं, और वह जो अपने ही मतलब की सोचते हैं

इस क्रिया के प्रथम अंश में समिति को एक सामूहिक योजना बनानी है. इसे आप पंच-वर्षीय योजना करार दें. योजना का आधार ४ विषयों पर होना चाहिये जो पोस्टरस पर लिख कर दीवारों पर लगवा दीजिये. यह कोई ज़रूरी नही कि यह बहुत कलात्मक ढंग से हो. इस पंच-वर्षीय योजना में कोई सामाजिक योजना भी शामिल की जा सकती है. यह भी ज़रूरी नही कि योजनायें सिर्फ़ भौतिक विष्यों पर केन्द्रित हों, जैसे साक्षरता पर भी केन्द्रित हो सकती हैं

अगर चाहॆं तो एक और भूमिका जोड सकते हैं (सलह्कार) जिले या वर्ग के योजनाकार. यह लोग चाहेंगे कि वर्ग की योजनायें पूरे समाज की योजनायों के अनुसार हों, जब कि अधिकारी समिति चाहेगी कि अगर प्रजातान्त्रिक रुख अपनाया जाय तो समाज को वर्ग की समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिये. इस संवाद को आप नाटक के रूप में प्रस्तुत कर के इस प्रक्रिया का सद्स्यों के साथ विष्लेशन कर सकते हैं

योजना बनाने वाले अंश के बाद थोड़ा आराम लेने दें. इस अंश के बाद कोई चर्चा ज़रूरी नही है. इस समय अगर चाहें तो एक छोटा चलचित्र या विडियो भी दिखा सकते हैं फिर खाने के बाद अगले दिन ही दूसरा अंश शुरु करें

योजना की रूप-रेखा बनाने में, और योजना बनाने में काफ़ी समानतायें हैं. जितना संभव हो सद्स्यों को अलग अलग भूमिकायें निभाने का मौका दें. इससे सद्स्यों को बहुत लाभ होगा

अगर आप को लगे कि इस विषय पर और लेख उपयोगी होंगे तो एक अंश सिर्फ़ "योजना की रूप-रेखा" पर है जो आपके लिये उपयोगी होगा प्रयोजन रूप-रेखा.

कर्म के लिये व्यवस्था

यह इस अंश का अन्तिम भाग है, और इसका उद्देष्य है सद्स्यों को जताना कि हर संस्था का एक साफ़ लक्षय होना चाहिये जिसके आधार पर निश्चय किया जाना चाहिये कि संस्था की व्यवस्था कैसी हो.

इस वेब साइट पर कई जगह आप पायेंगे कि इस बात पर जोर दिया गया है कि संस्था की व्यवस्था ही उसकी शक्ति है. यह उसकी क्षमता के १६ कारणों में से एक है. देखिये "सामर्थ्य को मापना"

अगर आपके विद्यार्थी जवान हों, सेहत ठीक हो, तो आप खेलों द्वारा भी यह सब सिखा सकते हैं. सबके साथ इस विषय पर चर्चा कीजिये और कोई छोटे खेल की तैयारी कीजिये - जैसे फ़ुट्बौल या हैन्डबौल. दो दल चुनिये, बराबर ( जहां तक आप की जानकारी हो) क्षमतायों और शक्ति के. एक दल को कहा जाता है कि उनमें कौन कोच है, कौन गोली, कौन किस किस जगह पर खेलेगा. और दूसरे दल को हिदायत दी जाती है कि उनमें हर व्यक्ति हर जगह पर खेल सकता है, कोई भी पूर्व निश्चित भूमिका नही है और कोच (जो खेल नही रहा है) कोई सलह नही दे सकता. खेल शुरु करें पर याद रखें कि खेल बहुत असंतुलित हो. खेल समाप्त होने पर सब को एकत्रित कर के कुछ समय के लिये दोनों दलों की व्यवस्था पर चर्चा कीजिये.

समाज के बहुत से सद्स्य यह मान कर चलेंगे कि उनको सिर्फ़ एक अधिकारी समिति की व्यवस्था करनी है. वह भूल ही जाते हैं कि उनको इस बात की भी व्यवस्था करनी है कि जो भी योजना चुनी जाये वह पूरी भी हो. संभव है कि कार्य पूर्ण करने की ज़िम्मेदारी जिसे दी जाये वह मुख्य समिति का ही एक अंश हो. उसके सद्स्य कुछ नये और कुछ चुनी गयी समिति में से हो सकते हैं.अधिकारी समिति का मुख्य लक्ष्य है समाज की प्रगति को दिशा देना और निश्चय करना कि वह कैसे अपने लक्ष्य पर पंहुचेगा. और कार्य समिति का एकमात्र लक्ष्य है योजना पूर्ण करना. दोनों समतियों का लक्ष्य अलग अलग है, इसलिये इनमे लोगों की भूमिकायें अलग अलग होती हैं.

इसका मतलब है कि सभी को मालूम होना चाहिये कि किन कार्यों के संपूर्ण होने पर कहा जा सकता है कि योजना पूर्ण हुई. भूमिकायें देते समय समिति के सद्स्यों कॊ साफ़ होना ज़रूरी है कि वह ऐसी व्यवस्था करें जिससे योजनायें पूरी हो सकें - दिशा निश्चय करने के लिये व्यवस्था अलग होती है. यही कर्म के लिये व्यवस्था है. कोई भी कार्य पूरा करने के लिये बहुत छोटी छोटी बातों को ध्यान मॆं रखना ज़रूरी है और निश्चय करना होता है कि कौन क्या करेगा.

योजना की रूप-रेखा में विस्तार से हर एक भूमिका और उसके उत्तर्दायित्व का वर्णण होना चाहिये. कार्य के दौरान कार्य समिति को नियमित रूप से मिलना चाहिये और अधिकारी समिति की बैठकों से भी ज़्यादा (उदाहरण के लिये जैसे निर्माण कार्य), और हर सद्स्य को नियमित रूप से अपनी ज़िम्मेदारियों की प्रगति के बारे में सब को जानकारी देनी चाहिये.

अगर आप चाहें तो इसे ऐसे ही जारी रख सकते हैं - पहले योजना कार्य प्रणाली बनाना, रूप रेखा तैयार करना, फिर उसके बाद कार्य समिति का निर्माण, और योजना पूरी करना; दूसरा तरीका है अधिकारी समिति बनाना जो कि समाज की प्रगति के लिये दिशा मार्ग निष्चय करे.

सभी अंशों का समन्वय करने के अनेक तरीके हो सकते हैं (इसे आप अपने कक्षा के सद्स्यों की सलहलेकर भी कर सकते हैं) .

अंत में

इन पांच अंशों, और खास रूप से इस अंश (प्रबन्धकों का निर्माण)की मदद से आपके लिये संभव हो जायेगा कि आप आम व्यक्तियों को भी प्रबन्धक बना सकें. यह प्रक्रिया स्व-चलित भी हो सकती है-- यानि खुद ही लोग समझें कि किस भूमिका के लिये क्या गुण चाहिये, और वह उसे निभा सकेंगे या नहीं. और जो लोग न कर सकें वह अपने आप ही पीछे हट जायेंगे

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© कॉपीराइट १९६७, १९८७, २००७ फिल बार्टले
वेबडिजाईनर लुर्ड्स सदा
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आखरी अपडेट: ०५.०८.२०११

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